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बचत उत्सव मनाने की तार्किकता

जीएसटी दरों में बदलाव

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देश में सस्ती वस्तुओं का दौर शुरू हो गया है और नागरिक बाजार जाते हुए राहत की सांस ले सकते हैं। अब यह सांस कितनी राहत भरी है, इसके बारे में विचार करना पड़ेगा।

केंद्र सरकार की तरफ से संकेत मिले कि देश जीएसटी महोत्सव मनाए। दरअसल, किसी भी वस्तु के उत्पादन की लागत पर निश्चित लाभ के अनुसार उत्पादक जो कीमत तय करता है, उस पर अब तक जीएसटी अर्थात वस्तु एवं सेवा कर की चार दरें लगती रही हैं। ये थीं 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। लालकिले की प्राचीर से वादा था कि आम आदमी के लिए कीमतों का और उससे पैदा महंगाई का युग बदल दिया जाएगा। महंगाई को विदा कर दिया जाएगा। जीएसटी की चार दरों के स्थान पर केवल दो दरें रह जाएंगी। हां, इसके साथ जो विलासिता वस्तुएं हैं, उन पर 40 प्रतिशत कर रहेगा।

कहा जा रहा है कि देश में 375 से ज्यादा वस्तुएं सस्ती कर दी गईं अर्थात 99 प्रतिशत वस्तुएं 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब के अंतर्गत आ गईं। अब 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत दो टैक्स स्लैब रह गए हैं। 12 और 28 प्रतिशत टैक्स स्लैब हटा दिये गए हैं। निस्संदेह कर भार में कमी हुई है। इसका मतलब यह कि देश में सस्ती वस्तुओं का दौर शुरू हो गया है और नागरिक बाजार जाते हुए राहत की सांस ले सकते हैं। अब यह सांस कितनी राहत भरी है, इसके बारे में विचार करना पड़ेगा। रोजमर्रा की चीजें घी, पनीर, मक्खन, दूध और आइसक्रीम आदि सस्ते हो गए हैं। टीवी, वाशिंग मशीन और एसी आदि भी सस्ते हो जाएंगे। कहा जा रहा है कि नागरिकों को डेढ़ लाख करोड़ रुपये की बचत दे दी गई है। इसीलिए आमंत्रण है कि आओ जीएसटी बचत उत्सव मनाएं।

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बहरहाल, आम आदमी के लिए कीमतों का कोई नियमित चक्रव्यूह कीमत नियंता रच रहे हैं तो इसकी भी पड़ताल कर ली जाए। पहली बात समझ लीजिए कि इन 375 वस्तुओं को 54 वस्तुओं के वर्ग में बांध दिया गया है। यहां घटी हुई कीमतें दिखाई जाएंगी। सरकार का हुक्म है कि हर बेची जाने वाली कीमत पर पुरानी कीमत और अब घटी हुई नई कीमत की स्लिप लगाई जाए। यह सावधानी इसलिए क्योंकि जिन दुकानदारों के पास पुरानी एमआरपी का सामान स्टॉक में है, उनकी स्लिप भी वही कीमत दिखाएगी। इसलिए अब घटी हुई कीमतों का स्टिकर लगाना जरूरी है। आदेश है कि पुराना स्टॉक होने के बहाने आप घटी कीमत देने से बच नहीं सकते। 22 सितंबर के बाद बिक्री योग्य हर सामान नई घटी कीमतों पर ही बेचा जाएगा। चौकसी रखने वाले अधिकारी देखेंगे कि इन आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं। बिल बनाएंगे तो आपको साफ दिखेगा कि कीमत कटौती का पूरा लाभ आपको मिला है या नहीं, क्योंकि इस बिल पर नई दरों के आधार पर टैक्स घटा है या नहीं, इसकी जांच हो जाएगी।

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अब उम्मीद तो यही है कि कीमतें घटने के कारण सस्ती हुई इन वस्तुओं की खपत बढ़ेगी। महंगाई घटेगी। इससे प्रोत्साहित होकर निवेशक उत्पादन बढ़ाएंगे और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। लेकिन जैसे ही यह कानून लागू हुआ तो शेयर मंडियों की पहली प्रतिक्रिया सूचकांक के गिरने की थी। कारण यही है कि मांग तो बाद में बढ़ेगी लेकिन फिलहाल तो कीमतें कम होने से घाटा बढ़ गया। सरकार ने पुरानी एमआरपी पर खरीदी वस्तुओं की क्षतिपूर्ति करने का जो वादा किया है, उसका भुगतान भी दफ्तरी कार्रवाई के बाद आने वाले दिनों में होगा।

वैसे जीएसटी की इस कटौती के बाद सोना, चांदी, पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर, स्मार्टफोन, लैपटॉप की कीमतों पर असर नहीं होगा। कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिन पर या तो पहले ही टैक्स कम है या उन पर जीएसटी लागू नहीं होता। अब यदि दुकानदार पुरानी एमआरपी पर सामान बेचता है तो सरकार ने उसके विरुद्ध शिकायत करने के लिए टोलफ्री नंबर दे दिया है। लेकिन आम राय यह है कि मंडियों को नए कानून से समायोजित होने में देर लगती है। कभी इस इंतजार में नौकरशाही ढीली पड़ जाती है और कंपनियां इस घटी हुई दरों काे समायोजित कर लेती हैं।

बहरहाल, यदि जीएसटी घटने का असर स्वदेशी वस्तुओं की मांग बढ़ने के रूप में होता है तो यह शुभ है। इस प्रकार की कर कटौती से लाया गया सस्ता युग दीर्घकालीन नहीं रहता। अत: जरूरी है कि जो भी सुधार लागू किया जाए, उसके सभी भागों के संतुलन की ओर ध्यान देना भी सही आर्थिक नीति है। सस्ता युग लाना है तो केवल कर घटाने से काम नहीं होगा, उत्पादन लागत का संतुलन भी जरूरी है, जो उत्पादकता के उपकरणों की लागत को घटाने से होगा। वह लागत तभी घट सकती है, अगर डिजिटल युग, रोबोटिक युग और कृत्रिम मेधा के उपकरणों का इसके लिए इस्तेमाल किया जाए। शायद अंतर्राष्ट्रीयकरण के इस युग में पूरी तरह स्वदेशीकरण पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, लेकिन देश आत्मनिर्भर तो हो ही सकता है। एक आत्मनिर्भर देश में जहां कच्चे माल की कीमतों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जा रहा है, बेकारों को नया रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है, तो फिर बेशक कर कटौती के इस उत्सव का अर्थ सार्थक हो जाता है।

केंद्र सरकार की तरफ से संकेत मिले कि देश जीएसटी महोत्सव मनाए। दरअसल, किसी भी वस्तु के उत्पादन की लागत पर निश्चित लाभ के अनुसार उत्पादक जो कीमत तय करता है, उस पर अब तक जीएसटी अर्थात वस्तु एवं सेवा कर की चार दरें लगती रही हैं। ये थीं 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत। लालकिले की प्राचीर से वादा था कि आम आदमी के लिए कीमतों का और उससे पैदा महंगाई का युग बदल दिया जाएगा। महंगाई को विदा कर दिया जाएगा। जीएसटी की चार दरों के स्थान पर केवल दो दरें रह जाएंगी। हां, इसके साथ जो विलासिता वस्तुएं हैं, उन पर 40 प्रतिशत कर रहेगा।
कहा जा रहा है कि देश में 375 से ज्यादा वस्तुएं सस्ती कर दी गईं अर्थात 99 प्रतिशत वस्तुएं 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब के अंतर्गत आ गईं। अब 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत दो टैक्स स्लैब रह गए हैं। 12 और 28 प्रतिशत टैक्स स्लैब हटा दिये गए हैं। निस्संदेह कर भार में कमी हुई है। इसका मतलब यह कि देश में सस्ती वस्तुओं का दौर शुरू हो गया है और नागरिक बाजार जाते हुए राहत की सांस ले सकते हैं। अब यह सांस कितनी राहत भरी है, इसके बारे में विचार करना पड़ेगा। रोजमर्रा की चीजें घी, पनीर, मक्खन, दूध और आइसक्रीम आदि सस्ते हो गए हैं। टीवी, वाशिंग मशीन और एसी आदि भी सस्ते हो जाएंगे। कहा जा रहा है कि नागरिकों को डेढ़ लाख करोड़ रुपये की बचत दे दी गई है। इसीलिए आमंत्रण है कि आओ जीएसटी बचत उत्सव मनाएं।
बहरहाल, आम आदमी के लिए कीमतों का कोई नियमित चक्रव्यूह कीमत नियंता रच रहे हैं तो इसकी भी पड़ताल कर ली जाए। पहली बात समझ लीजिए कि इन 375 वस्तुओं को 54 वस्तुओं के वर्ग में बांध दिया गया है। यहां घटी हुई कीमतें दिखाई जाएंगी। सरकार का हुक्म है कि हर बेची जाने वाली कीमत पर पुरानी कीमत और अब घटी हुई नई कीमत की स्लिप लगाई जाए। यह सावधानी इसलिए क्योंकि जिन दुकानदारों के पास पुरानी एमआरपी का सामान स्टॉक में है, उनकी स्लिप भी वही कीमत दिखाएगी। इसलिए अब घटी हुई कीमतों का स्टिकर लगाना जरूरी है। आदेश है कि पुराना स्टॉक होने के बहाने आप घटी कीमत देने से बच नहीं सकते। 22 सितंबर के बाद बिक्री योग्य हर सामान नई घटी कीमतों पर ही बेचा जाएगा। चौकसी रखने वाले अधिकारी देखेंगे कि इन आदेशों का पालन हो रहा है या नहीं। बिल बनाएंगे तो आपको साफ दिखेगा कि कीमत कटौती का पूरा लाभ आपको मिला है या नहीं, क्योंकि इस बिल पर नई दरों के आधार पर टैक्स घटा है या नहीं, इसकी जांच हो जाएगी।
अब उम्मीद तो यही है कि कीमतें घटने के कारण सस्ती हुई इन वस्तुओं की खपत बढ़ेगी। महंगाई घटेगी। इससे प्रोत्साहित होकर निवेशक उत्पादन बढ़ाएंगे और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। लेकिन जैसे ही यह कानून लागू हुआ तो शेयर मंडियों की पहली प्रतिक्रिया सूचकांक के गिरने की थी। कारण यही है कि मांग तो बाद में बढ़ेगी लेकिन फिलहाल तो कीमतें कम होने से घाटा बढ़ गया। सरकार ने पुरानी एमआरपी पर खरीदी वस्तुओं की क्षतिपूर्ति करने का जो वादा किया है, उसका भुगतान भी दफ्तरी कार्रवाई के बाद आने वाले दिनों में होगा।
वैसे जीएसटी की इस कटौती के बाद सोना, चांदी, पेट्रोल, डीजल, गैस सिलेंडर, स्मार्टफोन, लैपटॉप की कीमतों पर असर नहीं होगा। कुछ ऐसी वस्तुएं हैं जिन पर या तो पहले ही टैक्स कम है या उन पर जीएसटी लागू नहीं होता। अब यदि दुकानदार पुरानी एमआरपी पर सामान बेचता है तो सरकार ने उसके विरुद्ध शिकायत करने के लिए टोलफ्री नंबर दे दिया है। लेकिन आम राय यह है कि मंडियों को नए कानून से समायोजित होने में देर लगती है। कभी इस इंतजार में नौकरशाही ढीली पड़ जाती है और कंपनियां इस घटी हुई दरों काे समायोजित कर लेती हैं।
बहरहाल, यदि जीएसटी घटने का असर स्वदेशी वस्तुओं की मांग बढ़ने के रूप में होता है तो यह शुभ है। इस प्रकार की कर कटौती से लाया गया सस्ता युग दीर्घकालीन नहीं रहता। अत: जरूरी है कि जो भी सुधार लागू किया जाए, उसके सभी भागों के संतुलन की ओर ध्यान देना भी सही आर्थिक नीति है। सस्ता युग लाना है तो केवल कर घटाने से काम नहीं होगा, उत्पादन लागत का संतुलन भी जरूरी है, जो उत्पादकता के उपकरणों की लागत को घटाने से होगा। वह लागत तभी घट सकती है, अगर डिजिटल युग, रोबोटिक युग और कृत्रिम मेधा के उपकरणों का इसके लिए इस्तेमाल किया जाए। शायद अंतर्राष्ट्रीयकरण के इस युग में पूरी तरह स्वदेशीकरण पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, लेकिन देश आत्मनिर्भर तो हो ही सकता है। एक आत्मनिर्भर देश में जहां कच्चे माल की कीमतों पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जा रहा है, बेकारों को नया रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है, तो फिर बेशक कर कटौती के इस उत्सव का अर्थ सार्थक हो जाता है।
लेखक साहित्यकार हैं।
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