नहीं, नहीं, उनकी तैयारी की बात नहीं है। उनकी तैयारी तो पूरी थी ही। जिन्हें यह डर था कि शायद बहुमत न मिले, उनके सूटकेस तैयार थे और जिन्हें अपने जीते हुए विधायकों को शिकारियों से बचाए रखना था, उनके रिजाॅर्ट तैयार थे। हालांकि नौबत किसी की भी नहीं आयी। एक इस माने में तो देश की जनता अवश्य ही जागरूक हो गयी है कि अब वह त्रिशंकु की तरह हवा में लटकती विधानसभा नहीं चुनती। अब आधी-अधूरी सरकार नहीं बनाती। पूरी बनाकर देती है। लगता है उसे भी घोड़ामंडी का सजना पसंद नहीं है। वैसे भी जब जनता ही मंडी और बाजार जाने के काबिल नहीं रही तो वह पार्टियों और नेताओं को भी क्यों इस काबिल रखे। लेकिन बाद में अगर ऐसी सरकार टूटती है तो उसका न तो इल्जाम जनता पर लगाया जा सकता है और न उसका श्रेय जनता को दिया जा सकता है। जनता की भूमिका खत्म हो चुकी होती है। अगर इल्जाम ही लगना है तो जिनकी सरकार टूटी, उस पार्टी की काहिली पर लगाया जा सकता है और श्रेय देना है तो सरकार को तोड़नेवाली पार्टी की चंटई को दिया जा सकता है।
असल में अब पार्टियों का श्रेणीकरण कुछ इस तरह होना चाहिए कि फलां-फलां पार्टियां काहिल और फलंा-फलां पार्टियां चंट-चालाक हैं। स्मार्ट सिटी तो चाहे न बनी हों पर कुछ पार्टियां जरूर स्मार्ट हो गयीं। बताते हैं कि जो पहले स्मार्ट थीं, वे काहिल हो गयीं और जो पहले कायल थी वे स्मार्ट हो गयीं। यह सुनकर सेठ लोग चुपके-चुपके हंसते हैं कि देखो न हमें कोई इल्जाम दे रहा और न ही हमें कोई श्रेय दे रहा है।
खैर, हम तो उस तैयारी की बात ही नहीं कर रहे। हम तो उस तैयारी की बात कर रहे हैं जिसका बड़े जोर-शोर से आह्वान किया जा रहा था कि टैंक फुल करवा लो- पेट्रोल और डीजल महंगा होने वाला है। गैस का सिलेंडर भरवा लो, गैस महंगी होने वाली है। पता नहीं, हो सकता है कि बुल्डोजर वालों ने अपने टैंक फुल करवा रखे हों। अब साइकिल तो साहब तेल से चलती नहीं और झाड़ू लगाने के लिए भी शरीर का तेल तो निकाला जा सकता है, पर टैंक फुल करवाने की जरूरत नहीं होती। हाथी को भी टैंक फुल करवाने की जरूरत नहीं रहती, पर भैया पेट तो भरा होना चाहिए। अब हाथी का पेट तो भरा या नहीं, पता नहीं, पर सांड का पेट जरूर भरा होगा। क्योंकि लगता है किसान सो गया था। हालांकि आह्वान तो जागते रहने का ही था, पर भैया प्रेमचंद तो बहुत पहले पूस की रात कहानी में बता गए कि जरा-सी गर्मी मिलते ही नींद पर कहां काबू रहता है। पूस की रात के जमाने से लेकर आज तक किसानों की फसलों को आवारा जानवर यूं ही चरते रहे हैं। जो भी हो, आपने टैंक फुल कराया या नहीं। अभी अगर तेल की कीमतें बढ़ी नहीं हैं तो यह मत समझना कि बढ़ेंगी नहीं।