महेंद्र वर्मा
मनुष्य ने पिछली कुछ सदियों में ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व विस्तार किया है। इस विस्तार ने बहुत-सी पारंपरिक मान्यताओं को बदला है। गैलीलियो से लेकर स्टीफन हॉकिंग्स तक और कणाद से लेकर आर्यभट्ट तक अनेक ज्ञान ऋषियों ने अपनी बौद्धिक क्षमता से दुनिया को अनेक भ्रमात्मक ज्ञान से मुक्त किया है। दो हजार साल पहले तक ज्ञान के मूलतः दो ही क्षेत्र थे-धर्म और दर्शन। एक धार्मिक नेता जो कुछ कह देता था वही ज्ञान माना जाता था। हजारों साल पहले जो आस्था ज्ञान बताया गया या लिखा गया, वह आज भी उसी रूप में, बल्कि कई संदर्भों में विकृत रूप में, प्रचलित है और उन समूहों द्वारा स्वीकारा जाता है जो अनुयायी हैं। किंतु ज्ञान के उपासकों ने पाया कि धर्म के अतिरिक्त संसार में जानने के लिए और भी बहुत कुछ है। इसी संदर्भ में शोधकर्ताओं ने पाया कि दुनिया के जिन क्षेत्रों में धार्मिकता अधिक है वहां नए ज्ञान को भलीभांति सीखने के प्रति रुचि कम होती है। यूनेस्को सहित बहुत-सी संस्थाएं मानव विकास से संबंधित विभिन्न घटकों का वैश्विक सर्वेक्षण करती रहती हैं। यूनेस्को द्वारा जारी किए गए मानव विकास प्रतिवेदन में 188 देशों के शैक्षिक सूचकांकों की सूची दी गई है। इस सूची के अवलोकन से यह निष्कर्ष निकलता है कि दुनिया के जिन देशों में धार्मिकता अधिक है वहां की साक्षरता का दर भी कम है और जिन देशों में धार्मिकता कम है वहां की साक्षरता अधिक है।
हमारा देश धार्मिक मान्यताओं वाला देश है। यहां स्वयं को अधार्मिक कहने वालों की संख्या 1 प्रतिशत से भी कम है। आश्चर्य की बात तो यह है कि विश्व शैक्षिक सूचकांक में भारत 112वें क्रमांक में है जो थाइलैंड, मलेशिया, तुर्की, और ईरान जैसे देशों से भी नीचे है। यूनेस्को द्वारा जारी शैक्षिक सूचकांक की सूची को देखें तो यह ज्ञात होता है कि कम शैक्षिक उपलब्धि वाले देश मुख्यतः अफ्रीका, दक्षिण एशिया और खाड़ी में स्थित हैं। यही वे देश हैं जहां धार्मिकता अधिक है। एक बात और, अधिक धार्मिकता वाले देशों की आर्थिक दशा भी कमजोर है। खाड़ी के कुछ देश तेल के भंडार के कारण अमीर हैं, न कि अपनी ज्ञानात्मक क्षमता के कारण। ज्ञान के इतिहास पर गौर करें तो हम पाते हैं कि जिन देशों में वैज्ञानिक, गणितीय और दार्शनिक ज्ञान की परंपरा की शुरुआत हुई, उनमें भारत और अरब देशों के नाम भी शामिल हैं। वर्तमान स्थिति के आधार पर कहा जा सकता है ज्ञान के आधार पर पिछड़े देशों और इनमें रहने वाले समुदायों को अपने पिछड़ेपन के कारणों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।
साभार : शाश्वत-शिल्प डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम