कृषि आधारित विकास मॉडल पर निर्भर रहकर पंजाब की आर्थिकी तीन दशकों तक खूब फली-फूली। अब राज्य की अर्थव्यवस्था में पुनः जान फूंकने के लिए नई सरकार को एकीकृत तीन-इंजन वाला विकास मॉडल अपनाना चाहिए। 1990 के दशक में किए गए बाजारवादी आर्थिक सुधारों की वजह से पंजाब की आर्थिक बढ़त जाती रही। पड़ोस के पहाड़ी राज्यों में दी गई टैक्स-छूट अवधियों की वजह से पंजाब की आर्थिक स्थिति पर बाजार-शक्तियों का कहर और टूटा। इस नीति के नकारात्मक असर को कम करने के लिए राज्य सरकार को सलाह दी गई कि वह नव-उद्यमी की भूमिका अपनाए।
विगत में खूब वाहवाही पाने वाले पंजाब मॉडल को मूलभूत बदलावों की जरूरत है। ऐतिहासिक रूप से, विकास दर और प्रति व्यक्ति आय में सिरमौर बनकर पंजाब की आर्थिकी का उद्भव 1960 के दशक के मध्य से शुरू हुआ था। विकास का यह प्रारूप अनिवार्य रूप से एकल-क्षेत्र मॉडल था, जिसमें कृषि को विकसित करने पर बल देना राष्ट्रीय कार्यक्रम था। दुर्भाग्यवश न तो केंद्रीय सरकार व न राज्य सरकार ने पंजाब के लिए ऐसी नीति अपनाई जो खेती से इतर देखती। नीति-निर्धारण में गैर-कृषि क्षेत्रों की अनदेखी वाली अदूरदर्शिता और इनको तरक्की कर रहे कृषि क्षेत्र से न जोड़ने के परिणाम स्वरूप ‘विपरीत विकास’ के लक्ष्ाण पैदा होते गए। मौजूदा समय में पंजाब ठहर चुके कृषि उत्पादन, संकट में फंसे कृषक, कमजोर पड़ते औद्योगिक क्षेत्र और धीमे विकास वाले सेवा-क्षेत्र के मिश्रण से अपनी आर्थिकी पर मारक असर झेल रहा है। पंजाबी युवाओं के लिए सम्मानयोग्य रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हैं। पिछले समय में सूबे की आर्थिक हालत बिगड़ती गई। इसलिए वर्तमान मॉडल के परिणाम हमें नया मॉडल अपनाने को चेताते हैं, जो कि ग्रामीण आर्थिकी, औद्योगिक और सेवा-क्षेत्र के आपस में गुंथे तीन प्रचालकों (इंजनों) पर आधारित हो। इस अंतर-क्षेत्र जुड़ाव को सुदृढ़ करने से विकास को प्रोत्साहन मिलेगा, रोजगार के नए अवसर बनने और सूबे के कराधान में इजाफा होगा।
एक ‘दृष्टिकोण दस्तावेज’ तैयार करके इस मॉडल पर काम शुरू किया जाए, जिसमें ज्ञान और डिजिटल तकनीक सहित विकास के रिवायती और नए इंजनों का समावेश हो। ‘दृष्टिकोण दस्तावेज’ हेतु मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाला पंजाब राज्य योजना बोर्ड मुफीद संस्थान है। अनुसंधान-आधारित त्रि-क्षेत्र मॉडल बनाने के लिए यह बोर्ड आगे क्षेत्रवार कार्यकारी समूह बनाए।
विकास का पहला इंजन अर्थात कृषि में विविधता वाला फसल-चक्र अपनाकर ग्रामीण आर्थिकी को सुधारा जा सकता है। सूबे की ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास फिलहाल एकतरफा और अधिकांशतः खेती तक सीमित है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विविधता यानी पशु-पालन, वनीय उपज, खनन का समावेश करने से विकास एवं रोजगार के नए स्रोत बनेंगे। हालांकि, आगे चलकर कृषि विकास का मुख्य स्रोत नहीं रहेगी तथापि फसल-विविधता, कृषि-विशेष को बढ़ावा, जल-प्रबंधन तकनीक और नई फसलों के लिए विपणन सुविधाएं बनाकर कृषि-आर्थिकी में काफी मूल्य-संवर्धन किया जा सकता है।
चौथी औद्योगिक क्रांति (इंडस्ट्री 4.0) विश्वभर में तेजी से पसर रही है। इस ‘इंडस्ट्री 4.0’ की अगुवाई स्मार्ट तकनीकी के प्रयोग से की जा रही है, खासकर आधुनिक डिजिटल तकनीक जैसे कि आर्टिफिशल इंटेलीजेंस, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, 3डी प्रिंटिंग, रोबोटिक्स, क्लाउड कम्प्यूटिंग, मोबाइल डिवाइसिस, स्मार्ट सेंसर, क्वांटम कम्प्यूटिंग इत्यादि। ज्यादातर उद्योग इंडस्ट्री 4.0 का हिस्सा बनकर तरक्की कर रहे हैं और यह पंजाब की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से भी फायदेमंद है। इसको बहुत हल्के कच्चे माल की जरूरत होती है इसलिए परिवहन में पैसा बचता है।
यह उद्योग मुख्यतः डिजिटल तकनीक एवं ज्ञान-परिचालित हैं इसलिए पढ़े-लिखे युवाओं को सम्मानजनक रोजगार मुहैया करवाएंगे। पंजाब के पास नए उद्यमी पैदा करने की काफी क्षमता है, बशर्ते व्यावहारिक नीतियां बनाई जाएं। इंडस्ट्री 4.0 बनाने के लिए उच्च शिक्षण संस्थाएं और उद्योग क्षेत्र का मिलकर काम करना फलदायी होगा। हालांकि, पंजाब में यह दोनों अलग-अलग काम कर रहे हैं। इनका युगम बनाने के लिए नई सरकार को ऐसा एक संस्थानक तंत्र बनना होगा, जिससे कि प्रयोगशाला में विकसित तकनीक उद्योग में परिवर्तित हो सके और उद्योग के लिए प्रयोगशाला में प्रासंगिक अनुसंधान हो। यूनिवर्सिटियों की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से सरकार को उनके आस-पास तकनीकी पार्क स्थापित करने चाहिए।
पंजाब के पास तकनीक-परिचालित ग्रामीण औद्योगिकीकरण के लिए बहुत उपजाऊ सामाजिक एवं आर्थिक माहौल मौजूद है। तीन कृषि बिलों के विरुद्ध चला आंदोलन ग्रामीणों का दृढ़ संगठनात्मक कौशल दर्शाता है, जब उनका सोशल मीडिया का सुयोग्य इस्तेमाल करना, किसान यूनियनों के बीच स्थानीय से लेकर वैश्विक सहयोग बनाना और नेटवर्क देखने को मिला। काफी तादाद में किसान कृषि से जुड़े व्यवसाय जैसे कि आढ़तिया के रूप में काम करते हैं। इस किस्म की सामाजिक पूंजी, नए उद्योग चलाने की क्षमता और तकनीकी कौशल से पंजाब के पास कृषि-व्यवसायिकी और नए रोजगार बनाने के लिए जरूरी अवयव एकदम दहलीज पर उपलब्ध हैं।
ग्रामीण औद्योगिकीकरण के लिए नीति बनाने के लिए चीन के ‘टाउनशिप एंड विलेज एंटरप्राइसेस मॉडल’ से प्रेरणा ले सकते हैं। सेवा-क्षेत्र पंजाब की आर्थिकी की रीढ़ है। राज्य की आय में इसका हिस्सा सबसे ज्यादा (47 प्रतिशत) है और कुल रोजगार का 2/5 प्रदाता है। यह सेवा-क्षेत्र, कुछेक उप-सेवा क्षेत्रों को छोड़कर, ज्यादातर रिवायती तकनीक पर चले हुए हैं। नए पहलू जोड़कर सेवा क्षेत्र विकास का तीसरा इंजन बन सकता है, मसलन, सूचना तकनीक आधारित सेवाएं (आईटीइएस), बीपीओ, ऑनलाइन एजूकेशन, सोशल मीडिया और एंटरटेनमेंट, साइबर सिक्योरिटी, पर्यावरण संबंधी सेवाएं, वाणिज्यिक तकनीकी सेवाएं। ज्ञान सेवा, मसलन कि विज्ञान अनुसंधान, बायो-तकनीक, शिक्षण, परामर्श, आईपीआर, नए विचार-नीतियों को सुधारने के लिए उच्च निर्णय माहिरों द्वारा प्रश्नोत्तरी सर्विस, डाटा इंटरप्रेटेशन एंड एप्लीकेशन, नई तकनीक का आकलन इत्यादि। कृषि और उद्योग के बीच रिश्ता बनाने से आर्थिकी के तीसरे इंजन को शक्ति मिलेगी। डिजिटल सेवा क्षेत्र के हाथ में लघु-सेवा क्षेत्र बनाने और गुणवत्तापूर्ण एवं सम्मानयोग्य रोजगार देने की चाबी है।
1960-90 के दशक में पंजाब की आर्थिकी खूब चमकी थी। यह काल राज्य-नीत विकास का था। लेकिन आगे चलकर बाजार-आधारित मॉडल की वजह से इस अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान झेलना पड़ा। आर्थिक सुधार-काल के बाद, निवेशकों की रुचि भौगोलिक कारणों से पंजाब की ओर नहीं बनी। ‘बाजार असफलता सिद्धांत’ बताता है कि जहां कहीं बाजार मांग घटती है, वहां दखल देकर स्थिति संभालना सरकार की जिम्मेवारी होती है। पंजाब की आर्थिकी को तेजी से पुनः पटरी पर लाने के लिए नई सरकार को खुद एक नए उद्यमी सरीखी भूमिका निभानी पड़ेगी। राज्य सरकार के पास उद्योग, वित्त और कृषि संबंधित अनेकानेक सार्वजनिक निगम मौजूद हैं। सरकार इनका पुनर्गठन व्यावसायिक लीक पर करे। ये निगम बड़े स्तर की इकाइयां बनाकर औद्योगिकीकरण में सीधी भागीदारी बनाएं। इन बड़े उद्योगों के इर्द-गिर्द आपूर्ति प्रदाता छोटी इकाइयां, खासकर सहकारी क्षेत्र से, स्थापित करने को प्रोत्साहित किया जाए।
लेखक पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला के पूर्व कुलपति हैं।