दरअसल दोषदृष्टि और दूरदृष्टि दोनों में भावनात्मक सोच प्रमुख भूमिका निभाती है। अगर किसी की सोच निम्न स्तर की होती है तो फिर विवाद उत्पन्न होने का खतरा होता है। इस खतरे से बचने का सबसे सरल उपाय यही है कि अपनी सोच को सकारात्मक बनाया जाए।
अनेक प्रसिद्ध विचारकों ने दोषदृष्टि पर अपने-अपने विचार प्रकट किए हैं। सभी का यह मानना है कि दोषदृष्टि एक नकारात्मक दृष्टिकोण है। जो व्यक्ति दूसरों को इस नज़रिए से देखता है, उसका स्वयं भी पतन हो जाता है। कहा गया है कि, ‘परदोषेण मत्सर्यं न कर्तव्यं कदाचन।’ अर्थात दूसरों के दोष देखकर निंदा नहीं करनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं की उन्नति चाहता है। विरले लोग ही ऐसे होते हैं जो दूसरों के दोषों को दूर रखने की दूरदृष्टि रखते हुए उनमें सुधार करते हैं। वर्तमान समय में झगड़े, तनाव, बीमारियों की जड़ दोषदृष्टि ही है। प्रत्येक व्यक्ति का किसी को देखने-समझने का नज़रिया अलग-अलग होता है। उसी आधार पर वह दूसरे की छवि अपने मन-मस्तिष्क में बना लेता है। लोग भी अपनी सोच और विचारों को विस्तार देने के बजाय इन ऊपरी बातों में उलझ कर समय और ऊर्जा का व्यय करते हैं।
एक बहुत सरल उदाहरण से प्रत्येक व्यक्ति दोषदृष्टि में न उलझकर दूरदृष्टि अपनाकर स्वयं का एवं दूसरों का जीवन सुखी कर सकता है। हमारी आंखों के समक्ष एक नेत्रहीन व्यक्ति आ जाता है, वह सड़क पार करने लगता है और चीजों से टकराने लगता है, यदि हम वहां उपस्थित होते हैं तो भागकर उसकी सहायता करते हैं। हाथ पकड़कर प्रेम से नेत्रहीन व्यक्ति को सही राह दिखाते हैं। हमें उससे कोई शिकायत नहीं होती, अपितु हम उस पर करुणा ही प्रदर्शित करते हैं कि नेत्रहीन होने के कारण वह लाचार है और उसे सहायता की आवश्यकता है। ठीक ऐसी ही सोच हम उस व्यक्ति के साथ क्यों नहीं अपनाते जो दोषदृष्टि का शिकार है और दूसरों के कार्यों एवं व्यक्तित्व पर दोषारोपण करता है। हम उससे लड़ने बैठ जाते हैं और शांति एवं सुख का हनन कर बैठते हैं। संबंधों में भी तनाव आ जाता है। क्या पता उसकी निंदा या बुराई पर तुरंत टिप्पणी न कर भविष्य में हम एक अच्छा मित्र पा लें।
अब्राहम लिंकन के कार्यों एवं उनका नाम इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इसके पीछे प्रमुख कारण यही है कि उन्होंने दोषदृष्टि में न उलझकर हमेशा दूरदृष्टि से काम लिया। उनके जीवन के इस प्रसंग से यह बात बखूबी स्पष्ट हो जाती है। एक बार एडविन स्टैंटन को अब्राहम लिंकन ने युद्धमंत्री बना दिया था, जबकि स्टैंटन लिंकन को कदम-कदम पर अपमानित करते थे। उनकी इस नियुक्ति से सभी दंग रह गए थे। एक बार एक सांसद ने राष्ट्रपति लिंकन को समझा बुझा कर किसी रेजीमेंट के एक जगह से दूसरी जगह तबादले का आदेश पत्र प्राप्त कर लिया। इसे लेकर वह सीधा स्टैंटन के पास पहुंचा। आदेश पत्र देखकर भी स्टैंटन ने साफ इंकार कर दिया और बोले, ‘वे ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे।’
‘लेकिन मेरे पास राष्ट्रपति का आदेश है,’ उस राजनीतिक ने प्रतिवाद किया।
इस पर युद्धमंत्री बोले, ‘अगर राष्ट्रपति आपको इस तरह के आदेश जारी करते हैं तो वे पक्के बेवकूफ हैं।’
यह सुनकर वह सांसद वापस लिंकन के पास इस उम्मीद में लौटा कि अपना अपमान सुनकर वे गुस्से से भर जाएंगे और स्टैंटन को बुरा-भला कहेंगे, उसकी निंदा करेंगे और उसे बर्खास्त कर देंगे।
लेकिन जब सांसद पूरी कहानी सुना चुका तो लिंकन की आंखों में हल्की सी चमक आई और वह बोले, ‘अगर स्टैंटन ने ऐसा कहा है तो ठीक ही कहा होगा, क्योंकि वे हमेशा सही कहते हैं। मैं जाऊंगा और उनसे खुद मिलूंगा।’
इसके बाद जब वे स्टैंटन से मिले तो उन्होंने उन्हें यकीन दिला दिया कि लिंकन का निर्णय सही नहीं था। यह जानकर तो लिंकन स्टैंटन से बेहद प्रभावित हो गए और बोले, ‘मुझे गर्व है कि तुम अपने कार्य को बहुत ही गंभीरता और कुशलता से करते हो।’ इस तरह लिंकन की दूरदृष्टि से देश को स्टैंटन जैसा कुशल युद्धमंत्री मिला।
अगर लिंकन स्टैंटन से अपने बारे में सुनी गई निंदा से व्यथित हो जाते तो वे महानायक न कहलाते। दरअसल दोषदृष्टि और दूरदृष्टि दोनों में भावनात्मक सोच प्रमुख भूमिका निभाती है। जहां व्यक्तियों की सोच भावनात्मक रूप से समान होती है, वहां मामले सुलझ जाते हैं, वहीं अगर किसी की सोच निम्न स्तर की होती है तो फिर विवाद उत्पन्न होने का खतरा होता है। इस खतरे से बचने का सबसे सरल उपाय यही है कि अपनी सोच को सकारात्मक बनाया जाए। ऐसा करके व्यक्ति अपने उच्च विचारों से समस्या को टाल सकता है।
भावनाएं ही शब्दों के माध्यम से व्यक्त होती हैं। यदि व्यक्ति की भावनाओं में सकारात्मकता होती है तो वह दोषदृष्टि को नज़रअंदाज़ कर देता है और दूरदृष्टि से निर्णय लेकर अपने एवं दूसरे के जीवन को सुखमय एवं शांतिपूर्ण बनाता है। शब्द भावों की सवारी करते हैं। भावनाएं निरंतर अच्छा सुनने, कहने और पढ़ने से सकारात्मक होती हैं। सकारात्मक भावनाएं व्यक्ति की आंखों से दोषदृष्टि का पर्दा उठाती हैं और उसे दूरदृष्टि का स्वामी बनाती हैं। दूरदृष्टि से कार्य करने वाला व्यक्ति अपने अच्छे कार्यों की छाप दूर तक छोड़ता है।

