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महिला मतदाताओं पर सियासी दांव-पेंच

बिहार चुनाव

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बिहार चुनाव में महिला मतदाताओं का प्रभाव अहम है, और इसे ध्यान में रखते हुए एनडीए और महागठबंधन ने कई वादे किए हैं। हालांकि, महिला प्रत्याशियों को टिकट देने में दोनों गठबंधनों का रुझान कम था, बावजूद इसके महिलाओं के कल्याण के लिए योजनाओं का जोरदार प्रचार किया गया।

बिहार के चुनाव में महिला मतदाताओं पर प्रभाव बनाने के लिए एनडीए और महागठबंधन दोनों ने पूरी कोशिश की है। दोनों ही गठबंधन ने महिला मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए वादों का पिटारा खोल दिया है। हालांकि, एनडीए या महागठबंधन ने जिस स्तर पर महिलाओं के सामने उनके विकास और सुरक्षा को लेकर दावे किए हैं उस स्तर पर महिलाओं को बढ़-चढ़कर टिकट नहीं मिल पाए हैं। बिहार में महिला मतदाताओं का सीएम नीतीश कुमार पर प्रभाव रहा है। जेडीयू को अलग-अलग समय में जीत हसिल कराने में महिला मतदाताओं का काफी योगदान रहा है। अब आरजेडी के नेता कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश के इस प्रभाव को कम किया जाए। तेजस्वी ने भी महिलाओं को लुभाने के लिए कई वादे कर दिए हैं।

बिहार में सात करोड़ 90 लाख मतदाताओं में तीन करोड़ 50 लाख से ज्यादा महिला मतदाता हैं, लेकिन 243 सीटों में से केवल 65 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं। महागठबंधन ने आरजेडी से 23 और कांग्रेस ने पांच महिलाओं को टिकट दिया है। सीपीआई माले ने 20 प्रत्याशियों में केवल एक महिला को टिकट दिया है। सीपीआई सीपीएम की झोली से एक भी टिकट नहीं निकला। वीआईपी ने भी एक महिला को टिकट दिया। इसी तरह एनडीए में भी जेडीयू और बीजेपी ने 13-13 महिलाओं को टिकट दिया। जबकि सहयोगी संगठनों में एलजेपी आरएलएम और हम के जरिए आठ टिकट महिलाओं को मिले। इनमें भी हम के दो महिला प्रत्याशी जीतनराम मांझी के परिवार की ही हैं। महिलाओं के लिए वादों में उत्साह जरूर था, लेकिन टिकट देने में रुझान कम दिखा।

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बिहार में नीतीश को सत्ता दिलाने में महिला मतदाताओं का बड़ा योगदान रहा है। वर्ष 2015 में शराबबंदी और सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए आरक्षण का फार्मूला काम आया। इससे पहले 2009 में नीतीश ने स्कूल जाने वाली लड़कियों के लिए साइकिल उपलब्ध कराई थी। वर्ष 2020 में जीविका योजना पर फोकस किया। लेकिन हर चुनाव में नीतीश की जीत में महिलाओं के वोट का खासा योगदान था। नीतीश कुमार के शासन में महिलाओं के कल्याण को लेकर कई योजनाएं चलती रहीं। लेकिन चुनाव से ठीक पहले नीतीश ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना शुरू करके मास्टर स्ट्रोक खेलने की कोशिश की। इसके जरिए लगभग एक करोड़ बीस लाख से ज्यादा महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये देने के अलावा कई डायरेक्ट कैश ट्रांसफर करने का ऐलान किया गया। यही नहीं आंगनबाड़ी सेविकाओं और रसोइयों का मानदेय भी बढ़ाया गया। महिलाओं को रोजगार के लिए दस दस हजार रुपये की सहायता में नीतीश सरकार ने महिलाओं को साथ जोड़ने की कोशिश की है। पेंशन योजना और दूसरी कई योजनाओं से नीतीश सरकार ने जहां अपने स्तर पर राज्य की महिलाओं को साधने की कोशिश की है वहीं केंद्र के स्तर पर केंद्र सरकार ने जनधन योजना, मुफ्त गैस जैसी योजनाओं के सहारे यह साबित करने की कोशिश की है कि एनडीए महिलाओं के उन्नति और आत्मनिर्भरता के लिए कदम बढ़ाती है। मुफ्त अनाज योजना खासकर महिलाओं की रसोई का बड़ा आधार बना है। एनडीए ने जिस तरह आरजेडी को जंगल राज के बहाने घेरने की कोशिश की है उसके पीछे महिलाओं को सुरक्षा का भाव देने की नीति है। पीएम मोदी ने अपनी सभाओं में इस बात पर जोर दिया है कि नीतीश के शासन में बिहार में कानून का राज है।

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दरअसल, नीतीश जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो उन्हें अहसास था कि केवल अपनी जाति के सहारे वह आगे नहीं बढ़ सकते। इसलिए उन्होंने पिछड़ों अति पिछड़ों के साथ-साथ महिलाओं को एक प्रभावी समूह के रूप में देखा। इससे लव-कुश यानी कुर्मी-कोइरी के साथ-साथ महिलाओं का बड़े स्तर पर उन्हें समर्थन मिला। इसी आधार पर नीतीश ने फिर अपनी बिसात 2025 के इन चुनावों के लिए बिछाई है। इसलिए नीतीश की नीतियों में इसका खासा जोर दिखता है।

दूसरी तरफ महागठबंधन में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की सियासी बिसात में मुस्लिम यादव का प्रभाव उन्हें एक प्रभावी राजनेता तो बनाता है लेकिन चुनाव जीतने के लिए इससे आगे भी वोट समीकरण की जरूरत होती है। 90 के दशक में जब लालू यादव अपने सियासत के चरम पर थे तब उन्हें पिछड़ा अति पिछड़ा दलित और मुस्लिमों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन यह समीकरण सिमटता गया। आरजेडी का प्रभाव यादव और मुस्लिमों तक सिमट कर रहा गया। जिस तरह 2020 के चुनाव में मतों का बहुत मामूली फर्क एनडीए और महागठबंधन के बीच था उसे देखते हुए आरजेडी ने महसूस किया है कि उसे एनडीए के कुछ प्रभावी समूहों पर सेंध लगानी पड़ेगी। इसी दिशा में तेजस्वी ने अपने प्रचार की मुहिम को रखा है। उन्होंने महिलाओं को हर महीने 2500 रुपये देने का वादा किया। तेजस्वी ने मां-बेटी योजना के तहत अपनी योजनाओं को मतदाताओं के सामने रखा। आरजेडी नेता ने एनडीए के प्रभाव को सीमित करने के लिये जीविका दीदियों को पांच साल में डेढ़ लाख रुपये देने का वादा किया है। तेजस्वी इतना आगे बढ़ गए कि वह राज्य की बजट की सीमाओं से आगे निकल गए।

महागठबंधन ने पहली बार तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाया है। आरजेडी अच्छी तरह समझती है कि एनडीए के हर मंच में लालू प्रसाद के जंगल राज का जिक्र जरूर होगा। इसलिए तेजस्वी की नायक वाली छवि के पोस्टर भी बिहार के शहर गांवों में नजर आ रहे हैं। इसे समझते हुए पीएम मोदी की सभा से एक दिन पहले ही महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेस में तेजस्वी ने कानून व्यवस्था पर अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिलाने की कोशिश की। अब यह अलग बात है कि महिलाएं तेजस्वी की टिप्पणियों पर कितना यकीन करने की स्थिति में हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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