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भविष्य में पौधों से रोशन होंगे स्मार्ट शहर

आने वाले समय में पेड़-पौधे बिना बैटरी के चमकते हुए सड़कों और बाग-बगीचों को रोशन करेंगे। वैज्ञानिकों ने ऐसे पौधों का विकास किया है जो सूर्य की रोशनी में रिचार्ज होकर प्राकृतिक बायोल्यूमिनेसेंस का अनुभव कराते हैं। आने वाले समय...
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आने वाले समय में पेड़-पौधे बिना बैटरी के चमकते हुए सड़कों और बाग-बगीचों को रोशन करेंगे। वैज्ञानिकों ने ऐसे पौधों का विकास किया है जो सूर्य की रोशनी में रिचार्ज होकर प्राकृतिक बायोल्यूमिनेसेंस का अनुभव कराते हैं।

आने वाले समय में पेड़ सड़कों को रोशन करेंगे और बाग-बगीचे पौधों के रंग-बिरंगे प्रकाश में चमकेंगे। पेड़-पौधों का चमकना आपको कुछ विचित्र लग सकता है लेकिन प्रकृति में जैव प्रकाश अथवा बायोल्यूमिनेसेंस के कई उदाहरण पहले से मौजूद हैं, जिनमें जंगल की जमीन पर चमकने वाले मशरूम और समुद्र को रोशन करने वाले प्लैंकटन नामक सूक्ष्म पौधे शामिल हैं। जैव प्रकाश के इन प्राकृतिक नजारों से प्रेरित होकर वैज्ञानिकों ने चमकने वाले बगीचों और अपने आप जगमग होने वाले शहरों के बारे में सोचना शुरू कर दिया है। वैज्ञानिक ऐसे पौधे बनाने में सफल हो गए हैं जो बहुत तेज चमकते हैं और मिनटों में रिचार्ज हो जाते हैं। ऐसे पौधों को न तो बैटरी चाहिए और न ही कोई प्लग। इनमें किसी आनुवंशिक छेड़छाड़ की आवश्यकता भी नहीं पड़ती।

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मैटर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में रिसर्चरों ने ऐसे चमकते पौधों का वर्णन किया है, जो सूर्य के प्रकाश में रिचार्ज होते हैं और रंगीन आभा उत्सर्जित करते हैं। रिसर्चरों ने पाया कि पत्तियों में प्रकाश-संग्रही कणों का इंजेक्शन लगाने के बाद पौधे छोटे रात्रि लैंपों को टक्कर देने लायक प्रकाश उत्सर्जित करने में सक्षम हो जाते हैं। वैज्ञानिकों ने पौधों को चमकदार बनाने के लिए घरों के अंदर रखे जाने वाले सजावटी पौधों को चुना। इन छोटे रसीले पौधों में मोटे तने और मोटी पत्तियां होती हैं। इन्हें ‘सक्युलेंट’ भी कहा जाता है। शोधकर्ताओं ने पौधों में प्रकाश उत्पन्न करने के लिए पत्तियों की कोशिकाओं के बीच प्राकृतिक स्थानों में छोटे, प्रकाश-संग्रही क्रिस्टल डालने की एक विधि विकसित की है।

ये क्रिस्टल सूर्य के प्रकाश या घर के अंदर की तेज रोशनी में चार्ज होते हैं, फिर रोशनी बंद होने के बाद धीरे-धीरे उस ऊर्जा को दृश्यमान चमक के रूप में छोड़ते हैं। इस चमक को आफ्टरग्लो कहा जाता है। रसीले पत्तों की आंतरिक संरचना घनी और एक समान होती है। इनमें कण समान रूप से फैलते हैं और पूरा पौधा सुचारु रूप से प्रकाशमान होता है।

शोधकर्ताओं ने पौधों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया और हरे रंग सहित विभिन्न चमकदार रंगों का पता लगाया। उन्होंने दर्शाया कि पौधे सामान्य रूप से जीवित रहते हुए भी मृदुल प्रकाश का बैटरी-मुक्त पुनः प्रयोज्य स्रोत प्रदान कर सकते हैं। दक्षिण चीन कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और प्रथम लेखक शुटिंग लियू ने कहा कि हॉलीवुड की साइंस फिक्शन फिल्म ‘अवतार’ में चमकते पौधों को पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को रोशन करते हुए दिखाया गया था। उन्होंने कहा कि हम अवतार फिल्म की कल्पना को उन सामग्रियों का उपयोग करके संभव बनाना चाहते थे जिन पर हम प्रयोगशाला में पहले से ही काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, कल्पना कीजिए कि चमकते पेड़ स्ट्रीट लाइट का भी काम करने लगें। प्रकाशमान पौधे बनाने के लिए पहले किए गए प्रयास आनुवंशिक इंजीनियरिंग पर आधारित थे। ये विधियां आमतौर पर हल्का हरा प्रकाश उत्पन्न करती थीं और साथ में इसमें उच्च लागत और जटिल तकनीकों जैसी कई चुनौतियां भी थीं। वैज्ञानिकों ने नए तरीके में अकार्बनिक कणों का उपयोग करके इन समस्याओं को दूर किया है। रोशनी उत्पन्न करने वाले ये पदार्थ पहले से ही चमकने वाले खिलौनों और सुरक्षा संकेतों में प्रयुक्त होते हैं। ये कण सस्ते हैं और व्यापक रूप से उपलब्ध हैं। ये कण प्रकाश ऊर्जा को कुशलतापूर्वक संगृहीत करने में सक्षम हैं, जिससे ये पौधों को जीवित प्रकाश स्रोतों में बदलने के लिए एक आदर्श विकल्प बन जाते हैं। शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोग में हरे फॉस्फोर (स्ट्रॉनशियम एल्युमिनिट) कणों का इस्तेमाल किया, जो ऊर्जा मिलने पर प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। फॉस्फोर के क्रिस्टल एक छोटे ऊर्जा नेटवर्क की तरह काम करते हैं। चूंकि पानी पौधों की चमक को बुझा सकता है, इसलिए शोधकर्ताओं ने पत्तों के जलीय वातावरण में क्रिस्टल के कणों को स्थिर रखने के लिए उन पर फॉस्फेट की एक पतली परत चढ़ाई। पत्तियां ठोस स्लैब जैसी नहीं होतीं। उनकी कोशिकाओं के बीच सूक्ष्म गलियारे होते हैं। शोधकर्ताओं ने रसीले पत्ते में एक छोटा-सा इंजेक्शन लगाकर ‘चमकते मोतियों’ को उन गलियारों से प्रवाहित होने और कोशिकाओं के बाहर बसने दिया। ये कण कोशिका के अंदरूनी हिस्सों में प्रवेश नहीं करते हैं। न ही वे शिराओं को अवरुद्ध करते हैं। इस स्थिति के कारण ये कण कुशलतापूर्वक ऊर्जा से चार्ज होते रहते हैं। दूसरी तरफ पौधे का अपना तंत्र चलता रहता है। दरअसल, पत्तियों की एक समान संरचना ही इस विधि की कामयाबी का राज है। एचेवेरिया मेबिना जैसे कुछ सक्युलेंट पौधे फास्फोर कणों के मूवमेंट के लिए सही आंतरिक संरचना प्रदान करता है। इसके घने और समान रूप से फैले टिशू चैनल कणों के तेजी से प्रसार को संभव बनाते हैं, जिससे एक समान और तेज चमक पैदा होती है। सामान्य पत्तेदार पौधों की तुलना में सक्युलेंट पौधों के सघन टिशू फास्फोर कणों को आसानी से फैलने देते हैं। इससे सूर्य के प्रकाश या एलईडी प्रकाश के संपर्क में आने के कुछ ही मिनटों बाद समान रूप से चमकती पत्तियां बन जाती हैं, जिनकी चमक लगभग दो घंटे तक बनी रहती है। यह प्रक्रिया काफी सरल है और इसे दोहराने में कुछ ही मिनट लगते हैं। आप जल्द ही सार्वजनिक रूप से चमकते पौधों को देखने की उम्मीद कर सकते हैं। चमक प्रभाव को कई पौधों पर आसानी से लागू किया जा सकता है।

रिसर्चरों ने विभिन्न फॉस्फोर कणों को मिलाकर ऐसे पौधे बनाए जो न केवल हरे, बल्कि लाल, नीले और यहां तक कि सफेद रंग में भी चमकते हैं। टीम ने 56 सक्युलेंट पौधों की एक दीवार का प्रदर्शन किया जो इतनी चमकीली थी कि किताबों और आसपास की वस्तुओं को रोशन कर सकती थी। पूरी तरह से मानव निर्मित सूक्ष्म-स्तरीय सामग्री का एक पौधे की प्राकृतिक संरचना के साथ इतनी सहजता से जुड़ जाना सचमुच आश्चर्यजनक है। पौधे पहले से ही कवक और बैक्टीरिया जैसे सहायक सहयोगियों को आश्रय देते हैं जो उनकी अंतर्निहित क्षमताओं का विस्तार करते हैं। अब अकार्बनिक फॉस्फोर कण उस चक्र में अतिथि के रूप में शामिल हो गए हैं। रिसर्चरों के अनुसार पौधों की पत्तियों पर अल्ट्रा वायलेट लाइट से अक्षर या चित्र जैसे पैटर्न अस्थायी रूप से लिखे जा सकते हैं, जो सजावट और सूचना भंडारण में संभावित उपयोगों का संकेत देते हैं। पर्यावरण-अनुकूल प्रकाश व्यवस्था और रोजमर्रा के सजावटी उपयोगों में नई तकनीक के कई उपयोग हो सकते हैं। यह शोध भविष्य के शहरी नियोजन, टिकाऊ वास्तुकला और दूसरे कलात्मक अनुप्रयोगों के लिए भी अनेक संभावनाएं उत्पन करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रकाश संगृहीत करने वाले कणों से युक्त पौधे भविष्य में प्रदूषण को भांपने या सूखे का संकेत देने में भी समर्थ हो सकते हैं।

लेखक विज्ञान संबंधी मामलों के जानकार हैं।

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