हिमालय की चार धाम यात्रा उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में चल रही है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की इस धार्मिक यात्रा पर दो साल तक महामारी का काला साया रहा, इस साल विधिवत शुरू हो पाई है। इस यात्रा में अब प्रतिदिन लगभग 55 हजार से ज्यादा लोग दर्शन कर रहे हैं। इस आंकड़े में हेमकुंड साहिब के तीर्थयात्रियों तथा और औली जैसे हिमालयी क्षेत्रों में जा रहे पर्यटकों को भी शामिल कर दें तो आंकड़ा और बढ़ जाता है। लेकिन इस यात्रा में तीर्थ यात्रियों की भारी भीड़ ने कुछ गंभीर प्रश्न भी खड़े कर दिए।
इस तीर्थ यात्रा को आमतौर पर चारधाम यात्रा कह दिया जाता है, परंतु यह वास्तव में हिमालय की चार धाम यात्रा है। हिंदुओं की चारधाम यात्रा में भारत के चार दिशाओं के चार प्रमुख मंदिरों- धामों की यात्रा की जाती है। इनमें बद्रीनाथ , पुरी, रामेश्वरम, और द्वारका शामिल हैं। आदि शंकराचार्य ने भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिए इसे प्रारंभ किया था। हिमालय की चार धाम यात्रा को पहले छोटा चारधाम भी कहा जाता था, परंतु अब चार धाम ही कह दिया जाता है। इस बार यात्रा 3 मई से शुरू हुई। उस दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुले। उसके बाद 6 मई को केदारनाथ तथा बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 8 मई को खुले। यह यात्रा मात्र छह माह ही चलती है। उत्तराखंड सरकार के आंकड़ों की मानें तो मई माह में ही इन चारों धामों में 13 लाख 65 हजार और 898 तीर्थ यात्री दर्शन कर चुके थे। यहां तक कि एक ही दिन में इन धामों में यात्रियों की संख्या 57 हजार तक पहुंच गई। अब तक लगभग सौ से ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत भी हो चुकी है। इस बार भीड़ इतनी अधिक है कि यात्रा की तैयारियां कम पड़ गई हैं। यात्रियों को रास्ते में रोकना पड़ रहा है।
यह प्रश्न भी उठना स्वाभाविक है कि क्या कोराना महामारी के बाद भारत के लोग इतने धार्मिक व आस्थावान हो गए हैं कि उनको इन हिमालयी देवस्थानों में जाकर ही संतुष्टि मिलती है। इसका जवाब तलाशना है तो इन तीर्थ यात्रियों के व्यवहार और आचरण को भी देखना आवश्यक है। इनमें बड़ी संख्या में वे युवा शामिल हैं जो मौज-मस्ती के लिए इन तीर्थ स्थलों को पर्यटन स्थल मान चुके हैं, तभी तो कोई कुत्ता लेकर जा रहा है तो काेई हुक्का ले जा रहा है। कोई अलकनंदा के तीरे मदिरापान कर रहा है। यह सभी बातें सोशल मीडिया में आ चुकी हैं। जबकि सनातन धर्म में तीर्थाटन, विशेष तौर पर बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम की यात्रा जीवन के तीसरे-चौथे चरण के लिए बनी थी। गृहस्थ धर्म के उत्तरदायित्वों से मुक्ति पा कर मनुष्य पूर्णतः ईश्वर की शरण में जाने के लिए घरों से निकलते थे। कई दिनों तक पैदल चलकर वे भगवान की शरण में पहुंचते थे। आज चार लेन की सड़कें बन चुकी हैं, हेलीकॉप्टर सेवा भी है। दिल्ली से वहा पहुंचने में मात्र 10-12 घंटे ही लगते हैं। इसलिए मैदानों की गर्मी से राहत पाने के लिए सैर-सपाटा करने निकले लोग इन तीर्थों को चले जा रहे हैं। मौज-मस्ती के पर्यटकों से वे तीर्थयात्री भी परेशान रहते हैं जो पूर्ण आस्था से यात्रा पर आते हैं। सवाल है कि क्या हिमालय के अति संवेदनशील क्षेत्रों में मानव की इतनी बड़ी संख्या में उपस्थिति उचित है? इससे हिमालयी ग्लेशियरों पर कोई संकट तो नहीं आएगा? यह बात चिंता का विषय बनी हुई है कि ग्लोबल वाॅर्मिंग से हिमालयी ग्लेशियरों को कैसे बचाया जाए। गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर उत्तरकाशी, केदारनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग और बद्रीनाथ मंदिर चमोली जिले में हैं। ये मंदिर हिमालय के संवेदनशील क्षेत्रों में हैं। सदियों से लोग इन धामों की यात्रा पर जाते रहे हैं परंतु आज की तरह भीड़ नहीं होती थी। केंद्रीय प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह संसद में बता चुके हैं कि भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने 9 हिमनदों पर द्रव्यमान संतुलन मूल्यांकन से ग्लेशियरों के पिघलने संबंधी अध्ययन किए हैं। हिमालयी क्षेत्र के 76 ग्लेशियरों की कमी या बढ़ोतरी की निगरानी संबंधी अध्ययन भी किए। अनुमान है कि अधिकांश हिमालयी ग्लेशियर पिघल रहे हैं। हिमालय दुनिया का सबसे नया पर्वत है। फिर वहां के विकास का मॉडल मैदानी क्यों है?
जब ग्लेशियर पिघल रहे हैं तो हिमालयी क्षेत्र के धार्मिक स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में क्यों बदला जा रहा है। हर साल लाखों वाहन व लोग हिमालय के संवेदनशील क्षेत्रों तक पहंच रहे हैं जबकि सभी जानते हैं कि हिमालयी ग्लेशियर इससे नहीं बच सकेंगे। ऐसे में गंगा और यमुना जैसी नदियां भी सरस्वती की तरह लुप्त हो जाएंगी। इससे फसलों से लहलहाने वाले मैदानी इलाके मरुस्थल बन जाएंगे। आखिर इस खतरे को कोई देखना क्यों नहीं चाहता है? क्यों हिमालय के तीर्थ स्थलों को पर्यटन स्थलों में बदला जा रहा है।