चेतनादित्य आलोक
हमारे देश की राजनीति में मुख्यतः दो ही वर्ग पाये जाते हैं— नेता और कार्यकर्ता। हालांकि, इन दो वर्गों में भी कई श्रेणियां होती हैं… इन्हें आप राजनीतिक जातियां भी कह सकते हैं। उदाहरणस्वरूप जिन्हें हम सामान्य जिन्दगी में शत्रु मानते हैं, वे राजनीति में अभक्त माने जाते हैं, जो समर्थक अथवा हितैषी होते हैं, वे ‘भक्त’ और जो महा-हितैषी होते हैं, वे ‘महाभक्त’, जबकि कुछ ऐसे लोग भी सामान्य जीवन की भांति हमारी राजनीतिक व्यवस्था में पाये जाते हैं, जो हितैषियों में भी परम हितैषी होते हैं, उन्हें हमारे देश की राजनीति में श्रद्धा से ‘परम भक्त’ कहा जाता है। यह परम भक्त का पद किसी भी राजनीतिक पार्टी की ओर से दिया जाने वाला सर्वोच्च पद होता है, जैसे कि किसी देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान हो।
राजनीति में यह परम भक्त का पद किसी को भी बहुत मुश्किल से वर्षों की तपस्या के बाद प्राप्त होता है… और पुश्तों तक चलता रहता है। वस्तुतः यह पद राजनीतिक पार्टियां उन्हें ही प्रदान करती हैं, जो किसी भी परिस्थिति में अपने राजनीतिक-धर्म का परित्याग नहीं करते… अर्थात् जो सदैव अपने नेता और दल के प्रति वफादार बने रहते हैं, चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जान ही क्यों न गंवानी पड़े। ऐसे लोग नेता और पार्टी के साथ अंतिम सांस तक टिके रहते हैं… चाहे जितनी गरीबी आ जाये… ओस चाटकर ही क्यों न जीना पड़े, लेकिन नेता और पार्टी का दामन कभी नहीं छोड़ते। इसी प्रकार राजनीति में भक्त वे लोग होते हैं, जो अपने दल और नेता के प्रति वफादार तो होते हैं, परन्तु ऐसा देखा गया है कि प्रायः छोटे झटकों या कहें कि निम्नतम लाभ की गुंजाइश में भी वे अपना ‘धर्म’ बदल लेते हैं। बस उन्हें एक मनभावन बहाने की प्रतीक्षा रहती है।
वहीं महाभक्त लोग तब तक वफादार बने रहते हैं, जब तक कि उन्हें अपना राजनीतिक जीवन ही संकट में पड़ता न दिखाई देता हो, या कहें कि अब तक जो अप्राप्य था, वह ‘धर्म’ बदलने की स्थिति में प्राप्त होने की संभावना प्रकट न हो गयी हो। ये महाभक्त लोग थोड़े परिपक्व होते हैं, जो आसानी से नहीं टूटते। इन्हें तोड़ने के लिए दूसरे दलों को कठिन परिश्रम करना पड़ता है। जहां तक अभक्तों की बात है, तो राजनीति में अभक्त यानी वे लोग, जिनका कार्य ही बस राजनीतिक विरोध करना होता है। ऐसे लोग सामान्यतः दल के बाहर होते हैं, परन्तु कभी-कभी इन्हें पार्टी के भीतर भी देखा जा सकता है। ये सदा-सर्वदा असंतुष्ट ही रहते हैं। यही कारण है कि ये बात-बात पर विरोध की तलवारें खींच लेते हैं।