मानवीय संवेदनाओं को जीवंतता के साथ उकेरने के लिये माध्यम चाहे कोई भी हो, उसके पीछे का जुनून ज्यादा मायने रखता है। समर्पण और कला पारखी दृष्टि ही उसे सार्थक ढंग से प्रस्तुत कर पाती है। यही जुनून ही बाद में व्यक्ति को वैश्विक परिदृश्य में विशिष्ट स्थान दिलाता है। नारी सरोकारों के ज्वलंत मुद्दों पर काम करने वाली चंडीगढ़ की स्पंदिता मलिक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित ‘द 30 : न्यू एंड इमर्जिंग फोटोग्राफर्स टू वॉच’ स्पर्धा में स्थान बनाना ऐसी ही कामयाबी को दर्शाता है। अमेरिका को अपनी कार्यस्थली बनाने वाली चंडीगढ़ में जन्मी छायाकार स्पंदिता प्रतियोगिता-2022 संस्करण में स्थान बनाने वाली दक्षिण एशिया की पहली शख्स हैं। यहां उल्लेखनीय है कि प्रतियोगिता में दुनियाभर के 330 फोटोग्राफरों ने नामांकन कराया था जिसमें केवल तीस ही अंतिम मुकाबले में टिक पाये। बताते चलें कि विश्व के पचास से अधिक नामी संपादकों, क्यूरेटरों, गैलरी निदेशकों, प्रकाशकों, अभिकर्ताओं तथा फोटोग्राफरों के एक समूह ने प्रतिभागियों का चयन किया।
भारत के लिये उपलब्धि दर्ज कराने वाली स्पंदिता मलिक चंडीगढ़ के सेक्रेड हार्ट स्कूल की छात्रा रही हैं। यहां से प्रारंभिक शिक्षा हासिल करने वाली स्पंदिता ने निफ्ट दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग में स्नातक की उपाधि हासिल की। बाद में वह उच्च स्तरीय शिक्षा हासिल करने के लिये अमेरिका चली गईं। भारतीय नारी के जीवन की त्रासदियां स्पंदिता को विचलित करती रही हैं। इसलिये उन्होंने महिला अधिकारों और लैंगिक हिंसा पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने महसूस किया कि भारतीय राजनीतिक-सामाजिक परिदृश्य में एक आम महिला की त्रासदियों को लेकर संवेदनशील पहल नहीं हो पा रही है। उन्होंने देश में तमाम उन स्थानों का दौरा किया जहां परंपरागत कपड़ों की कलाकारी वाली कढ़ाई का काम होता था। उन्होंने एक विशेष प्रोजेक्ट के तहत इन महिलाओं की दिक्कतों का डॉक्यूमेंटेशन किया। उनके दुख-दर्द को करीब से महसूस किया। इन कामगारों का मनोबल बढ़ाने के लिये उनकी फोटुओं पर कढ़ाई करवायी, जिसके माध्यम से वे भारतीय श्रमशील महिलाओं की सामाजिक व मानसिक स्थितियों को उकेरने में कामयाब रहीं।
बाद में स्पंदिता ने अपने फोटोग्राफी के जुनून को निखारने का मन बनाया। इसके लिये वर्ष 2019 में उन्होंने अमेरिका के पार्सन्स स्कूल ऑफ डिजाइन से फोटोग्राफी में एमएफए की उपाधि हासिल की। उनके फोटोग्राफी के जुनून व कला-कौशल को संस्थान ने प्रतिष्ठा दी। इसके लिये उन्हें कई पुरस्कार भी मिले जिसमें डीन की मेरिट स्कॉलरशिप, फोटोग्राफी प्रोगामेटिक स्कॉलरशिप और ग्रेजुएट ट्रेवल ग्रांट अवार्ड जैसे सम्मान भी शामिल हैं।
फोटोग्राफी के इस जूनून ने स्पंदिता को खासी प्रतिष्ठा दिलायी। उन्हें एन फोको फोटोग्राफी फैलोशिप (2021) और पटाखा फोटोग्राफिक ग्रांट (2020) से भी सम्मानित किया गया। स्पंदिता को फोम पॉल हफ अवार्ड (2020) के लिए नामांकित किया गया था। वे एपर्चर पोर्टफोलियो पुरस्कार (2021) के लिए फाइनलिस्ट थीं। उन्हें रेजीडेंसी प्रोग्राम, वुडस्टॉक, एनवाई (2021) में वुडस्टॉक आर्टिस्ट में फोटोग्राफी के लिए चुना गया था। समकालीन कला के बेमिस केंद्र (2021); न्यूयॉर्क में बैक्सटर सेंट वर्कस्पेस रेजीडेंसी (2020); न्यू जर्सी में नारीवादी इनक्यूबेटर रेजीडेंसी (2020) के लिये भी उनका चुनाव किया गया। मलिक के काम को आर्टी, आर्ट स्पील, बज़फीड, मुसी मैगज़ीन, हार्पर मैगज़ीन और एलीफेंट मैगज़ीन में स्थान मिला है। उन्हें ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ फ़ोटोग्राफ़ी द्वारा ‘वन्स टू वॉच 2020’ में शामिल किया गया था। मलिक का एक एकल शो ‘वधु : द एम्ब्रायडर्ड ब्राइड’, अक्तूबर, 2021 में बैक्सटर सेंट, एनवाई में आयोजित किया गया। उनके काम को चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इटली, न्यूयॉर्क, न्यूजीलैंड और यूएई में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया गया है। मलिक वर्तमान में कैनसस सिटी आर्ट इंस्टीट्यूट में विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
दरअसल, ‘द-30’ वैश्विक स्तर पर चलायी जाने वाली ऐसी स्पर्धा है, जो करिअर के आरंभिक दौर से गुजर रहे फोटोग्राफरों को अपना आकाश तलाशने में मदद करती है। उन्हें अपने हुनर को निखारने के लिये अवसर प्रदान करती है। साथ ही इसके जरिये पेशेवर फोटोग्राफी उद्योग में स्थान दिलाने के लिये एक लॉन्चिंग पैड भी उपलब्ध कराती है।
इससे पहले नारी सरोकारों को समर्पित स्पंदिता को महिला अधिकारों की रक्षा और उनके खिलाफ हिंसा को दर्शाते प्रोजेक्ट ‘नारी’ के जरिये खासी चर्चा मिली। न्यूयार्क को अपनी कार्यस्थली बनाने वाली स्पंदिता के इस काम को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी मिली। दरअसल, उन्होंने नारी जीवन की त्रासदियों को करीब से महसूस किया और उसे मुखरता प्रदान की। इसकी वजह यह भी थी कि ‘नारी’ डॉक्यूमेंटेशन और आर्ट का अनूठा संयोजन था। इसमें गरीबी व सामाजिक विसंगतियों की जीवंत छवि थी जो वास्तविकता के साथ उभरकर सामने आईं। साथ ही उन्होंने यौन हिंसा की शिकार स्त्रियों पर भी काम किया। उन महिलाओं से बातचीत करके उनके दुख-दर्द को साझा किया। इसमें सेल्फ-हेल्प समूह में शामिल महिलाएं भी शामिल थीं। महिलाओं ने पितृसत्तात्मक दबाव से मुक्त होकर अपनी बात रखी। स्पंदिता ने लैंस के माध्यम से विचार की सशक्त प्रस्तुति दी जिसके मूल में नारी सशक्तीकरण का भाव था। स्पंदिता का मानना है कि जब महिलाओं को अपने चित्रों पर कढ़ाई करने का आग्रह करती थी तो इससे अपने विचारों को चित्रों में उकेरने से उन्हें नई शक्ति मिलती । इसके साथ ही भारत के समृद्ध शिल्प व कढ़ाई संस्कृति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान भी मिली। भारत में हैंडीक्राफ्ट की इस मुहिम से कई पीढ़ियों की इस विरासत को आगे बढ़ाने का मौका भी मिला। यहां उल्लेखनीय है कि स्पंदिता के काम को चीन, फ्रांस, इटली और न्यूयार्क आदि में प्रदर्शित करने का मौका मिला। साथ ही सराहना भी मिली।