अमिताभ स.
एक चीनी कहावत है कि बहुत अधिक इच्छाएं रखने से बढ़कर कोई अपराध नहीं, असंतुष्ट होने से बढ़कर कोई संकट नहीं और लालची होने से बढ़कर कोई दुर्भाग्य नहीं। सचमुच में ख़ुशी पाना चाहते हैं, तो धन- दौलत का लालच और पैसे के पीछे दौड़ना छोड़िए। पैसे के पीछे भागमभाग असल में खुशी और सुकून से वंचित करती है जबकि यह भी सच है कि हर प्रयास ख़ुशी और सुकून पाने के लिए ही किया जाता है। हालांकि पैसा सभी को चाहिए भी, इससे बहुतेरे तामझाम ख़रीदना मुमकिन हो पाता है। बावजूद इसके यह सब कुछ नहीं है। जुनून या शौक में जो काम किया जाता है, उससे बेशक ख़ुशी और सुकून मिलता है, लेकिन इस दौरान कोई पैसे के बारे में सोचता ही नहीं है।
ज़ाहिर है कि मोटी आमदनी हासिल करने की व्यस्तताएं जिंदगी की तमाम ख़ुशियां छीनने की जिम्मेदार तो हरगिज़ नहीं होनी चाहिए न? लोगबाग सारी जिन्दगी दिन रात खूब मेहनत करते हैं, इस आस में कि पैसा उनकी झोली खुशियों से लबालब भर देगा। लेकिन बहुत कमाने के बाद जब वह पीछे मुड़ कर पीछे देखते हैं, तो उदास हो जाते हैं। उन्हें तब एहसास होता है कि इस आपाधापी में जीवन का कितना बड़ा सुकून कहीं छिन गया। इटली की प्रखर महिला रचनाकार मतील्दे सेराओ अगाह करती हैं, ‘रुपये-पैसे के मामले में कोई रिश्ता काम नहीं आता। पैसा है ही ऐसी चीज, जो हर दिल को कठोर बना देता है।’
भ्रम ही है कि ऊंची आमदनी का सीधा नाता खुशनुमा मूड से है। औसत से ऊपर की आय वाले लोग दूसरों के मुकाबले मामूली ज्यादा खुशदिल होते हैं, क्योंकि काम की व्यस्तताओं की वजह से मनोरंजक गतिविधियों के लिए कम ही वक्त निकाल पाते हैं। ज़्यादा पैसा ज़्यादा तनाव लाता है। एक दफा जिंदगी में गरीबी रेखा पार करने के बाद पैसा रोज-रोज ज्यादा ख़ुशी नहीं दे पाता। जब लोग अमीरी के सपने बुनते हैं, तो ऐसे मायाजाल में फंस जाते हैं, जैसे तमाम खरीदारियों और साजो-सामान से उनकी खुशहाली का सीधा नाता है। इस बीच पैसा बनाने वालों का कितना सुख छूट जाता है। कम पैसे वाले इस लिहाज से बेहतर स्थिति में होते हैं, क्योंकि अमीर अपनी व्यस्त दिनचर्या में वह सब नहीं कर पाता, जो एक साधारण व्यक्ति आसानी से कर लेता है। देखा गया है कि जहां लोगों को काम की आजादी, कम रोक-टोक और बॉस से सीधी बातचीत होती है, वहां उन्हें अपनी कम आमदनी से भी ज्यादा तकलीफ नहीं होती, इनसे पल-पल खुशियां की बौछार होती रहती है। पैसे के पीछे दौड़ने वाले ज्यादातर तनख्वाह बढ़ाने पर फोकस करते हैं और परिवार व रिश्ते- नाते समेत अन्य पहलुओं को दरकिनार करते जाते हैं।
कुछ साल पहले लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पैसे और खुशी के रिश्ते पर एक शोध से ज़ाहिर हुआ कि जब सभी लोगों की आमदनी में इजाफा होता है, तो लोगों का आपसी स्टेटस नहीं बदलता और लोग दूसरों से तुलना करने के स्वभाव के चलते खुद को धनवान हुआ नहीं मान पाते। इसके पीछे एक मनोवैज्ञानिक पहलू यह भी है कि किसी की यक-ब-यक दौलत बढ़ना खुशी लाता जरूर है, लेकिन वह खुशी तब तक बनी रहती है, जब तक लोग उसके नए उभरे स्टेटस से वाकिफ नहीं हो जाते। खुशी की यह अवधि दिनों, हफ्तों, महीनों या सालों तक ही बरकरार रह पाती है। शॉर्ट टर्म की बजाय लांग टर्म खुशी की ओर तवज्जो होनी चाहिए।
विख्यात अमेरिकी लेखक नेपोलियन हिल तो इस हद तक कहते हैं, ‘दिमाग के बिना पैसा जीवन में हमेशा ख़तरनाक होता है।’ जरा सोचिए- तब क्या फायदा, जब तरक्की के रोज पत्नी से अनबन हो जाए। बचपन में खेला एक खेल याद है न। सभी ने खेला होगा- मुंह में चम्मच और चम्मच पर कंचा रखकर दौड़ना। अगर कंचा बीच रास्ते में गिरा, तो सबसे पहले दौड़ जीतना या न जीतना बराबर होता था। यानी मुंह में चम्मच और चम्मच पर कंचा रखकर सबसे पहले जीतने वाला ही अव्वल आता है। यूं ही, जिंदगी की दौड़-धूप को तभी ख़ुशियों वाली समझिए, जब तक आपकी सेहत सलामत रहे और रिश्ते तितर-बितर न होने पाएं। दरअसल, जिसने वर्क-लाइफ का संतुलन करना सीख लिया, वही असल में खुशदिल इंसान है। जबकि पैसे की दौड़ की कटु वास्तविकता है कि पैसा कमाना प्राथमिकता बन जाता है और बाकी पहलू हाशिए पर खिसक जाते हैं। इस दौरान माता-पिता का ख्याल, बच्चों की परवरिश, पति -पत्नी के मधुर संबंध, भाई-बहन का स्नेह, दोस्तों की मस्तीबाजी वगैरह नजरअंदाज होते जाते हैं।
सयाने कहते हैं कि सच्ची मित्रता और घनिष्ट प्रेम अभावग्रस्त जीवन ही कराता है, संपन्नता या तो प्रतिस्पर्धा कराती है, या आपस में सिर्फ औपचारिक व्यवहार। विख्यात विचारक गेरी केलर का भी मानना है कि हरदम काम -काम रबड़ की गेंद की माफिक है। गेंद जितने दम से गिरायेंगे, उतनी जोर से उछलेगी। जितना ज्यादा काम करेंगे, बेशक उतना ज्यादा पैसा हासिल होगा, लेकिन परिवार, यार-दोस्त और सेहत जिंदगी की बाकी गेंदें कांच की हैं। अगर एक भी गिरी तो, चकनाचूर होकर बिखर सकती है। खुश रहने के संतुलित उपायों में स्वस्थ जीवनशैली अपनाना, नियमित व्यायाम करना, अपनी पसंद का काम करना, सकारात्मक सोच वालों के साथ रहना, दिन ढलने से पहले खुद को शांत करना, एकदम से बड़े लक्ष्य न बनाना, छोटे छोटे लक्ष्य हासिल कर आगे बढ़ना, हॉबी या शौक विकसित करना- जीना, पसंदीदा जगहों की सैर करना और सामाजिक जीवन जीना शुमार हैं।