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तालिबान को सैन्य मदद की आशंका से सहमा पाक

बाहर देखने पर यह लग रहा है, कि अफ़ग़ानिस्तान-भारत के बीच आर्थिक और मानवीय सहयोग के हवाले से कूटनीति हो रही है, लेकिन पाकिस्तान के रणनीतिकार इसकी पड़ताल में लगे हैं कि नई दिल्ली, काबुल को इंटेलिजेंस शेयरिंग से लेकर...

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बाहर देखने पर यह लग रहा है, कि अफ़ग़ानिस्तान-भारत के बीच आर्थिक और मानवीय सहयोग के हवाले से कूटनीति हो रही है, लेकिन पाकिस्तान के रणनीतिकार इसकी पड़ताल में लगे हैं कि नई दिल्ली, काबुल को इंटेलिजेंस शेयरिंग से लेकर सैन्य साज़ो-सामान की मदद तो नहीं कर रहा है?

पाक-अफ़ग़ान युद्ध ऐसे ही नहीं रुका है। उसका सबसे बड़ा कारण भारत रहा है। दावेदारी सऊदी अरब, यूएई और ईरान की तरफ़ से हो रही है कि उनके समझाने-बुझाने पर दोनों पक्ष मान गए हैं। इस तथाकथित शांति रथ के चौथे सवार, राष्ट्रपति ट्रम्प भी हो गए हैं। ट्रम्प ने बयान दिया, ‘मैं तो शांति कराने में माहिर, ‘पीस एक्सपर्ट’ हूं। भारत-पाक को टैरिफ की धमकी दी, वो मान गए।’ अब कोई पूछे, अफ़ग़ान अमीरात ट्रम्प की टैरिफ धमकी को गंभीरता से लेगा क्या? उनके पास खोने के लिए है क्या? ख़ैर, इस हंसी-मज़ाक़ से अलग, जो कुछ पाकिस्तानी प्रिंट मीडिया ने अपने सत्ता प्रतिष्ठान को समझाया है, वो बिलकुल ‘कन्विंसिंग’ और निशाने पर था।

भारत क्यों कारण रहा, इसे समझने के लिए पाकिस्तान से प्रकाशित दो अख़बारों के सम्पादकीय को पढ़ लेना काफी होगा। ‘अफ़ग़ान क्लैशेज़ ‘ शीर्षक से द डॉन सम्पादकीय लिखता है, ‘पाकिस्तान को इस बात से भी सावधान रहना चाहिए कि भारत और अफ़ग़ान तालिबान, जो कभी कट्टर दुश्मन थे, के बीच अचानक संबंधों में गर्मजोशी आ गई है, और हाल ही में अफ़ग़ान विदेशमंत्री का नई दिल्ली में सौहार्दपूर्ण स्वागत किया गया। इसलिए, काबुल के साथ संबंधों को, चाहे कितने भी तनावपूर्ण क्यों न हों, और बिगड़ने देना इस देश के हित में नहीं होगा।’

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‘दिल्ली-काबुल पैचअप’ शीर्षक से एक्सप्रेस ट्रिब्यून का सम्पादकीय है, ‘चूंकि पाकिस्तान ने हमेशा अपने शत्रुओं के प्रति, चाहे वह भारत हो या अफगानिस्तान, शांति का हाथ बढ़ाया है। आपसी सम्मान और सौहार्द के आधार पर संबंध बनाने की कोशिश की है, इसलिए अब समय आ गया है कि कूटनीति को एक और मौका दिया जाए। अफगान तालिबान अधिकारियों के साथ बातचीत की जाए, ताकि आतंकवाद से निपटने में सहयोग किया जा सके तथा संबंधों में शांति सुनिश्चित की जा सके।’

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भारत में मुत्ताक़ी के भव्य स्वागत को लेकर पाकिस्तान के सीने पर सांप लोट रहा है। पाकिस्तानी मीडिया का एक हिस्सा गुरुवार को काबुल में की गयी सर्जिकल स्ट्राइक को पाकिस्तान की बेवकूफाना हरकत मान रहा है। डॉन ने लीपापोती करते हुए लिखा, ‘फ़िलहाल, शत्रुता समाप्त हो गई है। और अब इस मामले को और बिगड़ने से रोकना चाहिए। हालांकि अतीत में छोटे स्तर की झड़पें हुई, लेकिन हाल के वर्षों में यह सबसे बड़ी झड़प है।’

तालिबान शासन ने 85 पाकिस्तानी सैनिकों-अफसरों को ढेर किये जाने का दावा किया है। जबकि पाक सेना के जनरल केवल 23 सैनिकों के मारे जाने की बात स्वीकार कर रहे हैं। सबसे मुश्किल में सियासतदां फंसे हैं। ‘ख़ुद मियां फ़ज़ीहत’ जनता को जवाब कैसे दें? राष्ट्रपति ज़रदारी ने ‘भारत द्वारा प्रायोजित’ आतंकवाद के खतरे को ‘क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए सबसे बड़ा ख़तरा’ बताया। राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अफगानिस्तान की हालिया ‘उकसावे वाली कार्रवाइयों’ की कड़ी निंदा की, और दोहराया कि पाकिस्तान राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेगा।

दरअसल, इन्हें भारत का डर सताने लगा है कि इस बार डुरंड लाइन पर कोई ‘ग्रेट गेम’ दिल्ली की तरफ से न हो जाये। डुरंड रेखा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2,640 किमी लंबी एक अंतरराष्ट्रीय सीमा है। यह रेखा पश्तून जनजातीय क्षेत्र से होकर दक्षिण में बलोचिस्तान से बीच से होकर गुजरती है। ये दोनों इलाके आतंकग्रस्त हैं, जहां कबीलाई क्षत्रपों की चलती है। पाकिस्तान के कॉलमनिस्ट शहीद जावेद बुर्की कहते हैं, ‘वाशिंगटन और इस्लामाबाद, दोनों ही इस्लामिक स्टेट-खोरासन और टीटीपी जैसे आतंकी समूहों को नियंत्रण में लाने में काबुल की मदद चाहते हैं।’

अफ़ग़ानिस्तान की आर्थिक नाकेबंदी अब भी अमेरिका ने कर रखी है। अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय बैंक के अरबों डॉलर की डिपॉज़िट पर अमेरिका जिस तरह कुंडली मारे बैठा है, उससे इस देश की बैंकिंग प्रणाली चरमरा रही है। अमेरिका की आंखें अफ़ग़ान ज़मीन के नीचे छिपे दुर्लभ खनिजों पर गड़ी हैं। दुनिया मानती है कि अफ़ग़ानिस्तान में समृद्ध खनिज संसाधनों के भंडार हैं, जो कई मूल्यवान उत्पादों जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, विमान, मिसाइल, चिकित्सा उपकरण, घरेलू उपकरण और अन्य उच्च-मूल्य वाले उत्पादों के निर्माण में महत्वपूर्ण घटक हैं।

पेंटागन ने बहुत पहले उसका सर्वे करा लिया था, जब मित्र सेनाएं तैनात थीं। माना जाता है कि यह खरबों डॉलर में है। दुर्लभ खनिजों से भरा क्षेत्र कज़ाकिस्तान से शुरू होकर अफ़ग़ानिस्तान- पाकिस्तान के कबायली इलाकों में समाप्त होता है। चीन की उपस्थिति भी इसी वजह से है। और इन सबों को डर भारत से है, कि यदि दिल्ली ने अफ़ग़ानिस्तान में इस बार सही से डेरा जमा लिया, तो फिर दुर्लभ खनिजों की बंदरबांट सहजता से नहीं हो पायेगी।

इस बार पाकिस्तान के खिलाफ अफ़ग़ान पब्लिक भी सड़क पर उतर आई है। उसकी वजह शरणार्थी हैं। करीब 18 लाख से ज़्यादा अफ़ग़ान शरणार्थी आर्थिक मंदी और कठोर प्रतिबंधों की वजह से देश लौटने को मजबूर हुए हैं। सबसे भयावह तस्वीरें ईरान और पाकिस्तान से वापस भगाये गए अफ़ग़ान शरणार्थियों की है। इसलिए, पाकिस्तान के जो लोग मुस्लिम एकता की बात करते हैं, उनसे पूछा जाना चाहिए, क्या भय और ग़ुरबत से भागे अफ़ग़ान शरणार्थी मुसलमान नहीं थे? केवल एक साल में पाकिस्तान से 3,52,000 अफ़ग़ान शरणार्थी भगाये गए हैं। पाक अधिकारियों ने उन्हें अस्थायी शरणार्थी कार्ड देना बंद कर दिया। जिनके वीज़ा समाप्त हो गए, उन लोगों को पकड़ने के लिए छापेमारी तेज़ कर दी। आज जब लगा, कि तालिबान नेतृत्व युद्ध की स्थिति में भारत से मदद ले सकता है, तो ‘मुस्लिम सॉलिडरिटी’ का अनहद नाद आरम्भ हो गया।

बाहर देखने पर यह लग रहा है, कि अफ़ग़ानिस्तान-भारत के बीच आर्थिक और मानवीय सहयोग के हवाले से कूटनीति हो रही है, लेकिन पाकिस्तान के रणनीतिकार इसकी पड़ताल में लगे हैं कि नई दिल्ली, काबुल को इंटेलिजेंस शेयरिंग से लेकर सैन्य साज़ो-सामान की मदद तो नहीं कर रहा है? 12 मार्च, 2013 को तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने संसद को जानकारी दी थी, कि 4 अक्तूबर, 2011 को अफ़ग़ानिस्तान के साथ रणनीतिक साझेदारी समझौता (एसपीए) हुआ था, जो दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग का प्रावधान करता है। ‘एसपीए’ के अंतर्गत भारत, अफ़ग़ान राष्ट्रीय सुरक्षाबलों के प्रशिक्षण, उपकरण और सैन्य क्षमता निर्माण कार्यक्रमों में सहायता करने का संकल्प लिया गया था। इसकी धाराओं में स्पष्ट है कि रक्षा क्षेत्र में भारत की सहायता अफ़ग़ानिस्तान सरकार के विशिष्ट अनुरोधों पर आधारित होगी।’ वह रणनीतिक समझौता हामिद करज़ई की मौजूदगी में नई दिल्ली में हुआ था। रावलपिंडी की नींद ‘एसपीए’ की वैधता को लेकर उड़ी हुई है, जिसे आधार बनाकर मुत्ताक़ी भारत से सैन्य मदद मांग सकते हैं।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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