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भारत की जल कूटनीति से पाकिस्तान लाचार

सिंधु संधि स्थगन
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भारत ने पाकिस्तान को जाने वाले पानी को नियंत्रित करने के साथ ही नदियों से संबंधित डाटा भी साझा करना बंद कर दिया है। प्रधानमंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के बावजूद भारत ने सिंधु जल संधि का सम्मान किया लेकिन अब भारत इस पर कोई समझौता नहीं करेगा।

ज्ञानेन्द्र रावत

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पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल समझौते को स्थगित करने का निर्णय अब पाकिस्तान पर भारी पड़ने लगा है। हालांकि, भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर के निर्णय के बाद सैन्य अभियानों पर अस्थायी विराम लगा है, लेकिन पहलगाम में हुए आतंकी हमले के पश्चात भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ उठाए गए कई निर्णय और प्रतिबंध यथावत‍् लागू हैं। इन निर्णयों में सिंधु जल समझौते को स्थगित करना, पाकिस्तान को निर्यात पर रोक, वीज़ा प्रतिबंध तथा राजनयिक संबंधों में कटौती जैसे कदम शामिल हैं।

दरअसल, सीज़फायर के बावजूद पाकिस्तान की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती सिंधु जल समझौते के स्थगन को लेकर है, क्योंकि अब भारत इन नदियों के जल प्रवाह को अपनी इच्छानुसार नियंत्रित कर सकता है — चाहे तो जल रोके या छोड़े। यह एक निर्विवाद सत्य है कि सिंधु जल समझौते के अंतर्गत सिंधु बेसिन की तीन प्रमुख नदियां— झेलम, चिनाब और सिंधु— का लगभग 80 प्रतिशत जल पाकिस्तान को मिलता था, जबकि भारत को केवल 19.5 प्रतिशत जल प्राप्त होता था।

उल्लेखनीय है कि भारत अपने हिस्से के जल का भी लगभग 90 प्रतिशत ही उपयोग करता था। लेकिन सिंधु जल समझौते के स्थगन के बाद भारत ने अपने हिस्से के जल को पूरी तरह रोकना शुरू कर दिया। इसके साथ ही, जब भारत के बांधों में जल स्तर बढ़ता है, तो वह बिना किसी पूर्व सूचना के अतिरिक्त जल छोड़ देता है। पाकिस्तान की कृषि, पेयजल आपूर्ति और उसकी अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा सिंधु बेसिन से बहने वाली नदियों पर निर्भर है। सिंधु बेसिन की छह प्रमुख नदियां पाकिस्तान में प्रवेश करती हैं— जिनमें तीन पूर्वी प्रवाह वाली नदियां हैं सतलुज, ब्यास और रावी और तीन पश्चिमी प्रवाह वाली नदियां हैं झेलम, चिनाब और सिंधु। इनमें से पश्चिमी प्रवाह वाली नदियों— झेलम, चिनाब और सिंधु— का अधिकांश जल पहले पाकिस्तान को मिलता था। लेकिन सिंधु जल समझौते के स्थगन के बाद भारत अब इन नदियों के जल को रोक रहा है। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान की कृषि व्यवस्था ही नहीं, अन्य महत्वपूर्ण कार्यकलाप भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

भारत सरकार ने पाकिस्तान के साथ सीमा पर संघर्षविराम का जो निर्णय लिया है, उसके बहुतेरे अंतर्राष्ट्रीय कारण हैं। यह स्थिति चूंकि पाकिस्तान द्वारा लाई गयी थी, इसलिए इस मसले पर पाकिस्तान के पीछे हटने पर भारत को सीजफायर मानना पड़ा। अब भारत, सिंधु जल समझौते को स्थगित करने से मिली अनुकूल परिस्थितियों का लाभ उठायेगा जो स्वाभाविक है। वहीं भारत, स्पष्ट कर चुका है कि आपरेशन सिंदूर केवल स्थगित किया गया है, खत्म नहीं। प्रधानमंत्री भी कह चुके हैं कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता। फिलहाल भारत सरकार सिंधु जल समझौता बहाल करने को तैयार नहीं है।

गौरतलब है कि पाकिस्तान ने इस मुद्दे को विश्व बैंक ले जाने का प्रयास किया था लेकिन वहां पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। विश्व बैंक ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मसले में एक मध्यस्थ की भूमिका में था। इसके आगे विश्व बैंक की कोई भूमिका नहीं है। पाकिस्तान अब इस मसले को संयुक्त राष्ट्र ले जाने की तैयारी में लगा है। भारत स्पष्ट कर चुका है कि उसने समझौते के प्रारूप के तहत ही समझौते के स्थगन का कदम उठाया है। पाकिस्तान का इस संदर्भ में कहना है कि अगर सिंधु जल समझौते को भारत द्वारा खत्म किया जाता है और उसकी तरफ आने वाले पानी को रोका जाता है तो वह इसे युद्ध मानेगा। अपनी ओर से इसका हरसंभव विरोध करेगा।

एक ओर पाकिस्तान इस मुद्दे का पुरजोर विरोध करने की बात कर रहा है, वहीं वह भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय से समझौते के स्थगन के फैसले पर पुनर्विचार करने की गुहार भी लगा रहा है। यही नहीं, भारत से सीधे बातचीत के लिए भी तैयार है। पाकिस्तान के जल संसाधन सचिव सैयद अली मुर्तजा ने इस बाबत संकेत भी दिये हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ भी दिल्ली की दीर्घकालीन चिंताओं पर चर्चा करने के इच्छुक हैं। पाकिस्तान के अनुरोध पत्र को भारतीय जलशक्ति मंत्रालय ने इस समझौते के लिए अधिकृत विदेश मंत्रालय को भेजा है जिस पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कह दिया है कि इस मुद्दे पर पुनर्विचार का सवाल ही नहीं उठता।

भारत अब इन तीन नदियों के पानी को अपने लिए इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है। इस पर काम भी जारी है। साथ ही मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाओं को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है।

गौरतलब है कि सिंधु जल समझौता स्थगित होने से देश को काफी लाभ होगा। समझौता स्थगन के दौर में भारत सिंधु बेसिन के तहत आने वाली छह नदियों का पानी अपने हिसाब से इस्तेमाल करेगा। भारत में जम्मू कश्मीर, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को अपनी खेती और पेयजल के अलावा दूसरी जरूरतों को पूरा करने हेतु ज्यादा पानी मिलेगा। रावी, ब्यास और सतलुज के इस पानी का लाभ समझौते के स्थगन के मौजूदा हालात में इन राज्यों को वर्तमान में मिल भी रहा है। राजस्थान की इंदिरा गांधी नहर में भी इस समय पानी की आवक बढ़ गयी है। उम्मीद है कि इसके साथ ही हरियाणा और पंजाब के बीच बरसों से जारी जल विवाद भी थम जायेगा। फिर उत्तर भारत में ज्यादा पानी मिलने से भाखड़ा सहित विभिन्न बांधों में बिजली उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी। सिंधु जल समझौता स्थगन पाकिस्तान में उसकी बहुत बड़ी आबादी के लिए पेयजल संकट का भयावह रूप धारण कर लेगा। पानी तो इतना बड़ा मुद्दा है जो पाकिस्तान को कुछ ही महीनों में भारत के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर देगा।

भारत ने पाकिस्तान को जाने वाले पानी को नियंत्रित करने के साथ ही नदियों से संबंधित डाटा भी साझा करना बंद कर दिया है। प्रधानमंत्री स्पष्ट कर चुके हैं कि 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के बावजूद भारत ने सिंधु जल संधि का सम्मान किया लेकिन अब भारत इस पर कोई समझौता नहीं करेगा।

लेखक पर्यावरणविद‍् हैं।

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