बहुत पहले एक शब्द सुना था, रक्त-पिपासु। यह पुराणकाल में राक्षसों के लिए ही प्रयुक्त होता था। अब तो खून चूसना, खून पीना एक मुहावरा है। मच्छरों को छोड़ दें तो अब रक्त-पिपासु केवल प्रतीकों में मिलते हैं। जैसे कुछ लोग गुस्से में कह देते हैं कि फलाना जनता का खून चूस रहा है। जनता का सुख-चैन चूसने वालों को हम सुखचैन-पिपासु कह सकते हैं। इसके अतिरिक्त कोई धनपिपासु है, कोई कामपिपासु। तो कोई सम्मान-पिपासु! धनपिपासु दिन-रात धन की पिपासा में लगा रहता है कि कैसे एक का दो और दो का चार करें। पदपिपासु इसी जुगाड़ में रहता है कि जो पद हथियाया है, उससे मरते दम तक कैसे चिपका रहे।
इन सबसे अलग है सम्मान-पिपासु नामक प्रजाति, जो दिन-रात इसी गुंताडे में रहती है कि ऐसे हो या वैसे, चाहे देने पड़ें कुछ पैसे, लेकिन एक अदद सम्मान मिले। और बिल्ली के भाग से छींका टूटता रहता है यानी कहीं न कहीं ऐसे लोग सम्मान झटकते रहते हैं। पिछले महीने अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘मां वीणापाणि साहित्य एवं सम्मान प्रदान समिति’ की ओर से सम्मान पिपासु के रूप में सु-कुख्यात कखगजी डाक द्वारा सम्मानित किये गए थे। ये महोदय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखों या खबरों की बजाय सम्मानवाली विज्ञप्तियां देखते रहते हैं। उस दिन इन्होंने जैसे ही यह पढ़ा कि संस्था कुछ महान किस्म के साहित्य साधकों का सशुल्क सम्मान करेगी और उसके लिए मात्र दो हजार रुपये शुल्क के साथ आवेदन पत्र आमंत्रित किये जाते हैं तो उन्होंने फौरन पैसे भेज कर सम्मान बुक कर लिया।
सम्मान पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर था, इसलिए हर कोई सबसे पहले पंजीयन कराने के लिए धड़ाधड़ पैसे भेज रहा था। संस्था की कमाई भी बढ़ती चली जा रही थी। संस्था ने सुविधा रखी थी कि आप चाहें तो अपने खर्चे से उनके शहर आकर और अपनी आवास व्यवस्था करके भी सम्मान ग्रहण कर सकते हैं। बस अतिरिक्त डाक खर्च देने होंगे। पिपासुजी ने डाक खर्च भेज कर सम्मान बुलवा लिया और शहर के अखबारों में विज्ञापन देकर समाचार भी छपा लिया कि ‘शहर के महान साहित्यकार कखगजी को मिला चार सौ बीसवां सम्मान।’
उस दिन कखग जी हम से टकरा गए। सो बधाई दी तो गद्गद होकर बताने लगे कि ‘अगले महीने फिर ढिकाने शहर में सम्मान है।’ मैंने पूछा, ‘पैसे वाला सम्मान या फोकट वाला?’ वह इतरा कर बोले, ‘अपने जीवन का सिद्धांत बना लिया है कि कोई भी सम्मान फोकट में नहीं लूंगा। आखिर संस्था वाले कितनी मेहनत करके समारोह आयोजित करते हैं। अभी तक जितने भी सम्मान मिले, उसके लिए फटे तक पैसे खर्च किये। आप भी अगर कोई सम्मान देना चाहें तो आपका जो भी पैकेज होगा, दे दूंगा!’