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वनों के संरक्षण से ही संभव समग्र विकास

जैव विविधता का संकट
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देश-दुनिया में जिस गति से पेड़ों की संख्या घट रही है, उससे पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषि, मानव जीवन और भूमि स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया। वैज्ञानिक चेतावनियों व जंगल बचाने के प्रयासों के बावजूद पेड़ कटाई और तेज़ हो गई। कुदरती कारण भी वन नष्ट कर रहे हैं।

दुनिया में आज जलवायु परिवर्तन से मुकाबले की दिशा में पेड़ों और जंगलों की महत्ता की चर्चा जोरों पर है। इसका प्रमुख कारण है कि जलवायु परिवर्तन के चलते संतुलित और समग्र विकास का लक्ष्य समूची दुनिया के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। जिस गति से पेड़ों की संख्या घट रही है, उससे पर्यावरण ही नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी, जैव विविधता, कृषि, मानवीय जीवन और भूमि की दीर्घकालिक स्थिरता पर भी गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।

वास्तविकता यह है कि हर वर्ष दुनिया में एक करोड़ हेक्टेयर जंगल नष्ट हो रहे हैं। कोपेनहेगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इसका खुलासा किया है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, कीड़े-मकोड़े भी प्रतिवर्ष 3.5 करोड़ हेक्टेयर जंगलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वैज्ञानिक बार-बार चेतावनी दे रहे हैं कि मानव जाति जैव विविधता के विनाश की ओर अग्रसर है, जबकि यही जैव विविधता हमें अनेक बीमारियों से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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यदि वनों की अंधाधुंध कटाई पर रोक नहीं लगी, तो प्रकृति की लय पूरी तरह से बिगड़ जाएगी और वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को रोक पाना अत्यंत कठिन हो जाएगा। ऐसी स्थिति में सूखा और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम बढ़ेंगे, जिससे आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होगी। वन न केवल हमें गर्मी से राहत प्रदान करते हैं, बल्कि जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि की स्थिरता को सुदृढ़ करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने और जलवायु को संतुलित बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

दरअसल, आज जो स्थिति वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर बनी हुई है, वह मानव के लोभ का ही परिणाम है। इसका दुष्परिणाम हमारे सामने मौसम में आए भीषण परिवर्तन और पारिस्थितिकीय तंत्र के संतुलन के विघटन के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। इससे न केवल पर्यावरण, बल्कि सामाजिक और आर्थिक ढांचा भी चरमराने लगा है। दशकों से वैज्ञानिक, पर्यावरणविद् और वनस्पति एवं जीवविज्ञानी यह चेतावनी दे रहे हैं कि अब हमारे पास पुरानी परिस्थितियों को पुनर्स्थापित करने के लिए बहुत कम समय बचा है।

यदि देश की बात करें, तो उत्तराखंड में बीते 8-9 वर्षों के दौरान ढाई लाख से अधिक पेड़ काटे जा चुके हैं। इनमें एक लाख से अधिक पेड़ ‘ऑल वेदर रोड’ परियोजना के तहत तथा शेष पेड़ पर्यटन, देहरादून से दिल्ली तक सड़क चौड़ीकरण, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना और सुरंग आधारित परियोजनाओं के नाम पर काटे गए हैं। इन परियोजनाओं के चलते देवदार, बांज, राई, कैल जैसी दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ों का अस्तित्व ही मिटा दिया गया है। विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का यह सिलसिला पूरे देश में जारी है। अमेरिका की एएंडएम यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक अध्ययन में सामने आया है कि पेड़-पौधों की उपस्थिति मानसिक तनाव से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। करीब 6.13 करोड़ मानसिक रोगियों पर किए गए अध्ययन में यह पाया गया कि हरियाली के बीच रहने वाले लोगों में अवसाद की आशंका बहुत कम पाई गई।

पिछले दो दशकों में पूरी दुनिया में 78 मिलियन हेक्टेयर पहाड़ी जंगल नष्ट हो चुके हैं, जबकि पहाड़ 85 प्रतिशत से अधिक पक्षियों, स्तनधारियों और उभयचरों का आश्रय स्थल हैं। गौरतलब है कि हर वर्ष जितना जंगल नष्ट हो रहा है, उसका क्षेत्रफल लगभग एक लाख तीन हजार वर्ग किलोमीटर है, जो जर्मनी और नार्डिक देशों-आइसलैंड, डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड- के संयुक्त क्षेत्रफल के बराबर है। इसके अनुपात में नए जंगलों के रोपण की गति बहुत धीमी है।

दक्षिण अमेरिका के अमेजन बेसिन में फैले वर्षावनों की स्थिति भी चिंताजनक है। बढ़ते तापमान, भयावह सूखा, वनों की अंधाधुंध कटाई और आग की घटनाओं के चलते अमेजन के जंगल विनाश के कगार पर हैं। अब तक अमेजन का लगभग 18 प्रतिशत क्षेत्र नष्ट हो चुका है। जंगलों के विनाश में आग एक बड़ा कारक बन गई है, जिससे हर साल लाखों हेक्टेयर वनक्षेत्र आग की भेंट चढ़ जाता है।

साल 2023 में दुनियाभर में 37 लाख हेक्टेयर जंगल नष्ट हुए, जबकि भारत में इस वर्ष के दौरान 21,672 हेक्टेयर वन क्षेत्र समाप्त हो गया। वर्ष 2013 से 2023 के बीच के दस वर्षों में भारत में हुए 95 प्रतिशत वनों के विनाश में अवैध कटाई और जंगलों में आग की घटनाओं की बड़ी भूमिका रही है। यूके स्थित ‘साइट यूटिलिटी बिडर’ की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पिछले 30 वर्षों के दौरान जंगलों की कटाई में भारी वृद्धि हुई है। विशेष रूप से 2015 से 2020 के बीच पांच वर्षों में जंगलों की कटाई चरम पर रही है।

जैव विविधता के संरक्षण में वनों की उपयोगिता सर्वविदित है, लेकिन हम इन्हीं वनों के साथ खिलवाड़ कर अपने जीवन के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। बीते तीन दशकों में हमने वनों का बहुत बड़ा क्षेत्र मानवीय स्वार्थ के चलते समाप्त कर दिया हैैं। दुखद बात यह है कि जंगलों को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बावजूद वनों की कटाई और तेज़ हो गई है। सच्चाई यह है कि आज दुनिया में हर मिनट 21.1 हेक्टेयर जंगल समाप्त हो रहे हैं।

यदि अब भी हम नहीं चेते, तो हमारा यह मौन हमें कहां ले जाएगा? क्या मानव सभ्यता सुरक्षित रह पाएगी? यह सोचने का समय अब नहीं, कार्य करने का समय है। प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबंधन आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद् हैं।

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