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हमारी सोच और चाहना

ब्लॉग चर्चा

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जो हम चाहते हैं, वैसा ही हो जाए तो हमें लगता है हमारा चाहा पूरा हुआ। लेकिन जो ऊपर वाले ने चाहा था वह क्या था? वह सही था, या हम। दरअसल हम अपनी सहूलियत, जरूरत से इतना ज्यादा बंधे होते हैं कि हमें भगवान पर विश्वास का एक ही जरिया जान पड़ता है, वह है जो हम चाहें वही हो जाए। इत्मिनान से सोचिए, परमात्मा ने जिस शिद्दत से आपको बनाया है उतनी ही शिद्दत से उसने एक चींटी को बनाया है। चींटी का शरीर आपकी तुलना में छोटा है। इसका अर्थ यह नहीं है कि भगवान की नजर में हम बड़े और श्रेष्ठ हुए, चींटी छोटी और निकृष्ट। ईश्वरीय दृष्टि में चींटी और इंसान एक बराबर हैं।

परमहंस श्रीराम बाबाजी अक्सर कहते थे, यही होना था तो यही हुआ। मतलब इसका यह नहीं कि जो हुआ वह आपके अनुकूल और प्रतिकूल हुआ, बल्कि जो हुआ है वही आपके अनुकूल है। उनसे बातचीत में मन ने कहा, क्या बताऊं क्या मिला, कितना मिला, मुझे तो प्रभु इतना मिला कि बता ही नहीं सकता। सब कुछ तो मिला, किंतु सब कुछ मिला कहना भी बहुत छोटा शब्द लग रहा था, क्योंकि जितना मिला है वह बहुत कुछ से भी ऊपर मिला है। हमें तो पाया न पाया की कहानी से ऊपर पहुंचा दिया गया है।

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ऐसा लगता है मन में अनुकूल और प्रतिकूल की समझ ही खत्म हो गई है। हर चीज अनुकूल लगती है। यह कहते हुए मन में अहंकार का प्रवेश हुआ। शास्त्र कहते हैं गुरु की नजर बहुत बारीक होती है। भगवान प्रसन्न हो जाते हैं, गलतियों को माफ कर देते हैं, भुला देते हैं, उपेक्षा कर देते हैं, किंतु गुरु अपनी नजर को चेले पर रखते हैं। अब कई बार लगता है कि अभी परीक्षा बाकी है और बहुत बाकी है। कार्यक्षेत्रों में अनुकूलता, प्रतिकूलता तो सहन कर भी ली जाएगी, जीत भी ली जाएगी, किंतु अभी और भी इम्तिहान आने बाकी हैं। गुरु की कसौटी पर खरा उतरने का भ्रम अगर पाल लेंगे तो हमसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं। उनकी कसौटी बहुत ऊंची है, उस पर वे ही खरा उतार सकते हैं, हम कितना ही कुछ करने का दंभ भर लें, किंतु सिवाय भ्रम के कुछ नहीं हो सकता। उस दिन से लगता रहता है हम जो चाहें वही हो जाए तो ही ईश्वर है या कि जो हो रहा है वही हमारे लिए अच्छा है और वह हमारा ईश्वर कर रहा है और हम सिर्फ अपने कर्म कर रहे हैं, मान लेना ही ईश्वर है।

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साभार : सखाजी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम

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