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पीड़ितों की मदद हेतु हमारी जवाबदेही

पंजाब बाढ़ त्रासदी
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पंजाब में बाढ़ का संकट बेहद गंभीर है। फिलहाल चुनौती जीवन रक्षा की है। पीड़ितों के लिए भोजन व साफ पानी की है। उनको राहत देना व पुनर्वास प्राथमिकता हो। पीड़ितों को समय रहते मुआवजा मिले। बाढ़ के बाद की चुनौतियों के मुकाबले को सरकार व समाज मिलकर काम करें।

पंजाब इस समय भीषण बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है, जहां गांव जलमग्न हो गए हैं, घर बर्बाद हो गए हैं और खेतों में फसल की जगह बालू भर गई है। यह संकट केवल पानी उतरने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि भविष्य में समस्याएं और गहराएंगी।

इस समय खेती और पशुधन से संपन्न पंजाब में नदियों-नालों में आये उफान के कारण तीन लाख एकड़ से ज्यादा फसली जमीन को नुकसान हुआ है। सबसे ज्यादा असर धान, मक्का, सब्जियाें और अन्य खरीफ फसलों पर हुआ है। सीमा से लगे गुरदासपुर, पठानकोट, होशियारपुर, जालंधर, फाजिल्का, कपूरथला व आसपास के गांवों में घर, सड़क और दुकानें पानी में डूब गई हैं। अब तक करीब 2.56 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।

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बाढ़ प्रभावित पंजाब में भारी तबाही के चलते बड़ी मात्रा में राहत सामग्री की आवश्यकता है। भोजन की व्यवस्था हो रही है, लेकिन साफ पेयजल की भारी कमी है क्योंकि वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद हैं और गंदा पानी पीने से हैजा फैलने का खतरा है। रोज लाखों बोतल पानी, बिना बिजली वाले फिल्टर, बड़े आरओ, इन्वर्टर, बैटरी, मोमबत्तियां, माचिस और छोटे जनरेटर की तत्काल जरूरत है क्योंकि बिजली बहाल होने में लंबा समय लगेगा। साथ ही महामारी रोकने के लिए फिनाइल, क्लोरीन पाउडर, मच्छर मारने की दवाइयों व क्रीम की भी तुरंत आवश्यकता है।

बारिश थमने के बाद सबसे बड़ी चुनौती होगी बाढ़ग्रस्त इलाकों से पानी, कीचड़, मलबा और मरे जानवरों का निस्तारण करना। इसके लिए बड़े पंप, जेसीबी, डंपर, ईंधन, सफाई उपकरण व सुरक्षात्मक सामान की तत्काल जरूरत है। सरकारी तंत्र के पास इतनी मशीनरी तुरंत उपलब्ध नहीं होती, इसलिए समाज के लोगों को चाहिए कि वे ऐसे उपकरण राज्य सरकार को भेंट करें, ताकि पुनर्वास कार्य तेजी और प्रभावी ढंग से हो सके।

राहत कार्यों में बड़ी व्यवस्थाओं के साथ-साथ पीड़ित आम लोगों की व्यक्तिगत जरूरतों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। मधुमेह, ब्लडप्रेशर, थायराइड जैसे रोगियों को नियमित दवाएं चाहिए, जो बाढ़ में नष्ट हो चुकी हैं। मानसिक तनाव और सीमित राहत सुविधाओं से अव्यवस्थित लोग बढ़ रहे हैं। ऐसे में दवाइयां, पेयजल, डेटॉल, फिनाइल, क्लोरिन टैबलेट्स, संक्रमण व बुखार की दवाएं, ग्लूकोज, सेलाइन जैसी चीजें तत्काल आवश्यक हैं। पुराने कपड़े या अनाज जैसी चीजें फिलहाल उपयोगी नहीं होंगी

संपन्न लोगों को आगे बढ़कर पुनर्निर्माण में योगदान देना होगा—जैसे दूरदराज के गांवों के लिए सीमेंट, लोहा जैसी निर्माण सामग्री भेजना। करीब ढाई लाख लोग पूरी तरह बेघर हो गए हैं, बाजार-वाहन तबाह हो चुके हैं। ऐसे में बीमा दावों का त्वरित और सही निपटारा बड़ी राहत हो सकता है। लेकिन राज्य मशीनरी खुद संभलने में व्यस्त है, इसलिए शिक्षित स्वयंसेवकों की जरूरत है जो नुकसान का सही आकलन कर, बीमा कंपनियों पर भुगतान के लिए दबाव बना सकें और सरकार की योजनाओं का लाभ प्रभावितों तक पहुंचा सकें।

बाढ़ के बाद जीवन को फिर से पटरी पर लाने में सबसे बड़ी बाधा होगी, सरकारी राहत पाने की प्रक्रिया, क्योंकि पैसा उन्हीं के खातों में आएगा जिनके पास आधार कार्ड है। जिनका सब कुछ बाढ़ में बह गया, उनके पास पहचान पत्र भी नहीं बचे। ऐसे में राहत की रकम देर से मिलना व्यर्थ होगा। इस स्थिति में बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों की जरूरत है, जो दूर शहरों में बैठकर प्रभावितों के आधार जैसे दस्तावेज़ ऑनलाइन निकालकर उन तक पहुंचा सकें, ताकि समय पर उन्हें मदद मिल सके।

हालात कुछ सुधरने पर शिक्षा की जरूरत सामने आएगी, लेकिन तब तक दो लाख से अधिक बच्चों के स्कूल, बस्ते, किताबें सब कुछ बाढ़ में बह चुके होंगे। ऐसे में यदि हर घर से त्योहारों के तोहफों के रूप में एक-एक बच्चे के लिए बस्ता, किताबें, स्टेशनरी, टिफिन बॉक्स और पानी की बोतल भेजी जाए तो पंजाब के भविष्य को संवारने में मदद मिलेगी। पाठ्यपुस्तकों की पुन: छपाई, फर्नीचर व ब्लैकबोर्ड की व्यवस्था, और बच्चों के पोषण के लिए बिस्किट व सूखे मेवे जैसे सुरक्षित खाद्य पदार्थों की भी तत्काल आवश्यकता है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर संस्थागत और व्यक्तिगत प्रयास जरूरी हैं।

यदि आवश्यकतानुसार मदद न मिले तो यह समय व संसाधन का नुकसान ही है। आज तक इस बात पर कोई दिशा-निर्देश बनाए ही नहीं गए कि आपदा की स्थिति में किस तरह की तात्कालिक तथा दीर्घकालिक सहयोग की आवश्यकता होती है। ऐसे संकट के समय में एक सच्चा नागरिक वही है, जो अपने संकटग्रस्त देशवासियों के साथ खड़ा होता है।

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