जयंतीलाल भंडारी
छब्बीस जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जर्मनी के म्यूनिख में प्रवासी भारतीयों से कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति में भारत के कृषि क्षेत्र की अहम भूमिका है। उन्होंने कहा कि कोरोना काल से अब तक भारत देश के 80 करोड़ गरीबों को मुफ्त अनाज दे रहा है और मानवता के आधार पर दुनिया के जरूरतमंद देशों के लिए भी अनाज की आपूर्ति कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्वामित्व योजना से गांवों के आर्थिक–सामाजिक विकास का नया अध्याय लिखा जा रहा है। इन सबसे भारत के लिए खाद्यान्न का अनुकूल परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है।
वास्तव में इस समय वैश्विक खाद्यान्न संकट के बीच पूरी दुनिया के लिए भारत की खाद्य सुरक्षा संबंधी नई भूमिका दिखाई दे रही है। हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की महानिदेशक ओकोंजा इवेला नगोजी ने जिनेवा में सदस्य देशों के मंत्री स्तरीय सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए कहा कि दुनिया इस समय खाद्यान्न की भारी कमी का सामना कर रही है। इस समय 23 देशों द्वारा खाद्यान्न निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण दुनिया में वर्ष 2008-09 के खाद्यान्न संकट जैसा चिंताजनक परिदृश्य निर्मित होते हुए दिखाई दे रहा है। ऐसे में भारत की खाद्यान्न अनुकूलताएं बड़ी राहत देते हुए दिखाई दे रही हैं।
यकीनन जब एक ओर इस समय यूक्रेन संकट के कारण दुनिया खाद्यान्न की भारी कमी का सामना कर रही है और खाद्य सुरक्षा से जुड़े कई वैश्विक संगठन करोड़ों इंसानों के लिए भरपेट अनाज न मिलने संबंधी रिपोर्टें पेश कर रहे हैं, तब दूसरी ओर भारत में खाद्यान्न प्रचुरता गरीबी और महंगाई की मुश्किलों को कम करने, जरूरतमंद देशों के लिए खाद्यान्न की भरोसेमंद आपूर्ति और खाद्यान्नों के निर्यात से अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का सुकून देते हुए दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि इस समय जहां दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में बढ़ती हुई महंगाई का प्रमुख कारण खाद्य पदार्थों की तेज महंगाई है, वहीं हमारे देश में पर्याप्त खाद्यान्न भंडारों और आम आदमी तक खाद्यान्न की सरल आपूर्ति के कारण दूसरे देशों की तुलना में महंगाई कम है। खास बात यह है कि बढ़ती हुई महंगाई के बीच डिजिटल की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से समाज के कमजोर वर्ग के लोगों को अनाज समय से प्राप्त हो रहा है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 77 करोड़ से अधिक लाभार्थी डिजिटल रूप से सभी राशन दुकानों से जुड़ गए हैं।
नि:संदेह देश में खाद्यान्न के पर्याप्त सुरक्षित भंडारों के कारण खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम से देश में गरीबी नियंत्रण में भी लाभ मिला है। कोरोना महामारी शुरू होने के बाद अप्रैल, 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए जिस प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) की शुरुआत की गई थी उसने करोड़ों लोगों को गरीबी की मार से बचाया है। पीएमजीकेएवाई के तहत अप्रैल, 2020 से लेकर इस साल मार्च, 2022 तक सरकार 2.60 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इस साल 2022 में अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ जनता को मुफ्त में राशन देने से सरकार पर 80 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा।
दुनिया में भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सबसे बड़ा पहले क्रम का निर्यातक देश है, वहीं गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और छठा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। यद्यपि गेहूं के विश्व बाजार में भारत की करीब चार फीसदी की हिस्सेदारी ही है, लेकिन इस समय गेहूं के वैश्विक बाजार में गेहूं की भारी कमी के बीच भारत से गेहूं के अधिक निर्यात की उम्मीद की जा रही है। पिछले वित्त वर्ष 2021-22 में भारत ने करीब 2.1 करोड़ टन चावल और करीब 72 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है। विगत 31 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिमला में आयोजित गरीब कल्याण सम्मेलन कार्यक्रम के दौरान 10 करोड़ से अधिक लाभार्थी किसान परिवारों को 21,000 करोड़ रुपये से अधिक की सम्मान निधि राशि उनके बैंक खातों में ट्रांसफर की। इस किस्त के साथ ही केंद्र सरकार अब तक सीधे किसानों के बैंक अकाउंट में 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रकम ट्रांसफर कर चुकी है। सरकार का दावा है कि पिछले आठ वर्षों में कृषि बजट में करीब छह गुना वृद्धि, कृषि स्टार्टअप, कृषि क्षेत्र में ड्रोन का प्रयोग, सिंचित क्षेत्र में वृद्धि, कृषि शोध और कृषि के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से देश में कृषि एवं किसानों की दशा और दिशा बदल गई है।
हाल ही में कृषि मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत चालू फसल वर्ष 2021-22 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 31.45 करोड़ टन होगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37.7 लाख टन अधिक है। यद्यपि इस वर्ष गेहूं का उत्पादन 10.64 करोड़ टन होगा, जो कि पिछले साल के मुकाबले 31 लाख टन कम है, लेकिन चावल, मोटे अनाज, दलहन और तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन चमकते हुए दिखाई दे रहा हैं। 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.97 करोड़ टन रिकॉर्ड अनुमानित है।
कोविड-19 की चुनौतियों के बीच पिछले तीन वर्षों में कृषि ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र रहा है, जिसमें विकास दर नहीं घटी है, 31 मई को प्रकाशित वित्त वर्ष 2021-22 के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों के अनुसार कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर तीन फीसदी रही है। इस मजबूत वृद्धि दर में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ बागवानी, फूलों की खेती और पशुपालन जैसे गैर फसल क्षेत्रों का भी विशेष योगदान है। हाल ही में 8 जून को केंद्र सरकार ने फसल वर्ष 2022-23 के लिए खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएससी) में अच्छी बढ़ोतरी की है। खासतौर से दलहन और तिलहन के एमएसपी पर सबसे अधिक इजाफा किया गया है।
9 जून को कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) द्वारा प्रस्तुत की गई खरीफ सत्र 2022-23 की नई मूल्य नीति रिपोर्ट में धान की तयशुदा खरीद केवल छोटे और सीमांत किसानों से करने तथा बाकी किसानों से केवल 2 हेक्टेयर जमीन पर पैदा धान खरीदे जाने का सुझाव दिया गया है। सीएसीपी ने कहा है कि इससे खाद्य सुरक्षा के लिए पर्याप्त भंडार इकट्ठा हो जाएगा और 90 फीसदी से अधिक किसानों का हित भी बचा रहेगा। इसके साथ ही किसानों को धान कम उगाने और तिलहन एवं दलहन जैसी अन्य फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहित किए जाने का सुझाव भी दिया गया है।
नि:संदेह किसानों और कृषि संबंधी सूचनाओं के बेहतर आदान-प्रदान के लिए कृषि सूचना प्रणाली और सूचना प्रौद्योगिकी तथा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना को सुदृढ़ करते हुए प्रोत्साहित करना होगा। किसानों को बेहतर तकनीक उपलब्ध कराने के साथ ही भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण और ड्रोन तकनीक मदद का अधिक उपयोग करना होगा। प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने के लिए सीड टेक्नोलॉजी अपनाने पर आगे बढ़ना होगा। देश में कृषि को मानसून का जुआ बनने से हरसंभव तरीके से बचाया जाना होगा। यह भी जरूरी है कि कृषि क्षेत्र के तहत लैब (प्रयोगशाला) के सफल नतीजों को लैंड (जमीन) पर उतारने वाली ‘लैब टू लैंड स्कीम’ को और अधिक सफल बनाना होगा।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।