Tribune
PT
About Us Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

आत्मनिर्भरता का मंत्र ही बचाएगा आर्थिकी

वैश्विक आर्थिक मंदी
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

सुरेश सेठ

इस समय विश्वभर में महंगाई व ब्याज दरों के बढ़ने और आपूर्ति गड़बड़ाने से महंगाई व महामंदी का दौर है, बेकारी का आलम है और संपन्न देशों में भी खाद्यान्न संकट है। लेकिन भारत के बारे में कहा जा रहा है कि हमारी निवेश दर और उपभोक्ता मांग का स्तर, भारतीय अर्थव्यवस्था को आसन्न आर्थिक संकट से बचा लेगा।

Advertisement

पिछले दिनों मूडीज की निवेश सेवा ने भी भारत के आर्थिक परिदृश्य के लिए जो भविष्यवाणी की है, वह आशा बंधाती है। मूडीज कहता है कि भारत 6.7 प्रतिशत की विकास दर को बनाए रख सकेगा। ऐसे में विदेशी पूंजी निवेशक के बाहर निकलने से भी भारतीय आर्थिकी पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, जो आशावाद और सुनहरे भविष्य का पर्याय है।

वास्तविक घरेलू आय को देख लीजिए। मार्च के त्रैमासिक में अगर इसकी विकास दर 6.1 प्रतिशत थी तो जून की तिमाही में 7.8 प्रतिशत हो गई। उसके बाद यही विकास दर की गति जुलाई-सितम्बर की तिमाही में भी बनी रही।

उपभोक्ताओं का आशावाद साफ दिखाता है कि ब्याज दरें बढ़ने के बावजूद ऋण में वृद्धि होगी। यह वृद्धि दो अंकों में भी हो सकती है। जिस मांग के पतन की आशंका थी, वह एक दूसरा ही पक्ष दिखाने लगी। यह पक्ष भी ऐसा था कि देश के लोगों ने महंगे फ्लैट, महंगी कारों की मांग में अत्यधिक वृद्धि कर दी। ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेकर भी अपनी इच्छाओं को पूरा करने की परवाह नहीं की। दूसरी ओर मुद्रास्फीति का सूचकांक भी उपभोक्ताओं का थोड़ा-सा धीरज बंधा गया। सितम्बर महीने में हमने मुद्रास्फीति की दर को 6.8 प्रतिशत से 5 प्रतिशत तक गिरते हुए देखा।

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी पिछले दिनों कहा कि एक ओर हम मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कर रहे हैं और दूसरी ओर आर्थिक विकास दर को गतिशील बनाने का प्रयास कर रहे हैं। बल्कि उसके बढ़ने की उम्मीद अगले दो-तीन साल में भारत को पांचवीं आर्थिक महाशक्ति से तीसरी आर्थिक महाशक्ति बना देने की संभावना बता रही है।

हम इस विकट स्थिति से इसलिए निकल पाए क्योंकि भारत के घरेलू निवेशकों ने अपनी अर्थव्यवस्था पर भरोसा करते हुए ब्याज दरों के बढ़ने के बावजूद निवेश दर को घटाया नहीं। भारत के संपन्न होते हुए मध्यवर्ग ने अपनी देर से लंबित इच्छाओं की पूर्ति के लिए महंगी चीजों की मांग भी बढ़ा दी, जिसको पिछले उत्सव दिनों में भी देखा गया है। नतीजा यही है कि देश की फैक्टरियां रुकी नहीं। नौकरियों में जो छंटनी की आशंका थी, वह नहीं हुई। उसके साथ-साथ सरकार ने अनुकम्पा और उदार सस्ते अनाज का अभियान चलाया, उससे भी देश में वह हालात पैदा नहीं हुए जो किसी अवसादग्रस्त मंदी के वातावरण में पैदा हो जाते हैं।

लेकिन इस संतोष और धीरज भरे आर्थिक वातावरण में भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश की बढ़ती हुई श्रमशक्ति को उचित रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा। उदार अनुकम्पा जिंदगी को चला नहीं सकती, उसे केवल जिंदा रख सकती है। श्रमशक्ति को भारतीय लघु और कुटीर उद्योगों का संबल रोजगार दे रहा है। आधुनिक उद्योगों का सिलसिला संपन्न वर्ग के रोजगार के अवसरों को कम करने पर जोर देता है, जिससे युवाओं में बेहतर रोजगार के लिये पलायन का खतरा बढ़ जाता है।

पिछले साल रिकार्ड स्तर पर भारतीय प्रवासियों ने अपनी नागरिकता छोड़ने की अर्जियां दी हैं। भले ही घरेलू मांग की वृद्धि दिखाते हुए भारत ने मंदी का मुंह मोड़ दिया। लेकिन याद रखिए, यह अच्छे दिनों की आमद की सूचना नहीं है। अच्छे दिन तभी आते हैं जब देश की जनता को रोजी-रोटी और रोजगार की सुरक्षा मिल जाए। अधिकतर नौजवान या तो रियायती अनाज पर जीने का भरोसा किए हैं या विदेशों के सपने के साथ यहां से पलायन कर जाना चाहते हैं। जो पराजित और थके-हारों में शामिल हो गए, उनके लिए तो नशों का अंधेरा है ही।

देश में स्थायी मंदी तभी टल सकेगी अगर काम करने वाले हाथों को यथोचित काम मिल जाए। डिजिटल या स्वचालित निर्माण व्यवस्था के साथ रोजगारपरक लघु और कुटीर उद्योगों का एक ऐसा संतुलन पैदा कर दिया जो कि जरूरी वस्तुओं की मांग में भी कमी न आए।

आम आदमी के काम की अपेक्षा की सुध ली जाए, तभी देश में स्थायी विकास होगा। इस समय मूल्य सूचकांकों में एक त्रुटि हमें नजर आ रही है कि इनका गिरना रोजमर्रा के इस्तेमाल के खाद्य पदार्थों और सब्जियों की कीमतों के गिरने पर ही निर्भर करता है। जैसे ही इनकी आपूर्ति में कुछ गड़बड़ पैदा होती है और इनकी कीमतें उछलती हैं तो साथ ही मूल्य सूचकांक भी खतरे की हद को स्पष्ट करने लगता है। और महंगाई का बोलबाला आम आदमी की जिंदगी को दूभर बनाने लगता है। पूंजी निवेश ही इसका एकमात्र हल है और उसके लिए घरेलू निवेश के साथ-साथ विदेशी निवेश को आकर्षित करने का भी एक संतुलन बनाना पड़ेगा।

लेखक साहित्यकार हैं।

Advertisement
×