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अब वे भी न खाएंगे, न खाने देंगे

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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सहीराम

अरे भाई कोई ट्रंप साहब को समझाओ यार कि यह नारा तो मोदीजी का था कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा। तो वो क्यों अमेरिकियों को आम नहीं खाने दे रहे। भई खुद तो चलो टैरिफ-वैरिफ से काम चला लेते होंगे। पर यार, बेचारे अमेरिकियों को तो आम खाने दो न। उन्हें आम के दिव्य आनंद से क्यों वंचित कर रहे हो। एक बार मोदीजी ने उन्हें अपना-अबकी बार, मोदी सरकार वाला नारा, अबकी बार ट्रंप सरकार के रूप में उधार क्या दिया, कि वो तो उनका हर नारा ही हड़प लेने पर आमादा हो गए। ऐसा थोड़े ही होता है। यह कोई ट्रेड थोड़े ही है कि एलन मस्क को कहोगे कि अपनी इलेक्ट्रिक कार यहीं बनाओ और एपल वाले कुक से कहोगे कि अपना मोबाइल यहीं बनाओ। खबरदार जो भारत गए। अब देखो भारतीय आम के बारे में वे कह रहे हैं कि न खाऊंगा, न खाने दूंगा।

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अब युद्धविराम के बारे में तो दिन में पचास बार दावा कर ही रहे हैं कि मैंने करवाया। मोदीजी की बात कोई मान ही नहीं रहा कि युद्धविराम के लिए तो पाकिस्तान गिड़गिड़ाया था। सब ट्रंप की ही बात मान रहे हैं। तो कम से कम मोदीजी का नारा तो मोदीजी का रहने देते। ऐसे में चचा गालिब को अपने इस चुटकुले में तरमीम करने के लिए कयामत का इंतजार नहीं करना चाहिए कि गधे आम नहीं खाते। अरे चचा, अब तो अमेरिकी भी आम न खा रहे। और खा क्या नहीं रहे जी, ट्रंप खाने ही न दे रहे। कभी ट्रेड की दादागिरी, कभी खाने-खिलाने की दादागिरी। क्या दादागिरी है जी।

नहीं, टैरिफ-वैरिफ की खुंदक तो समझ में आती है। लेकिन खाने-पीने के मामले को तो इससे अलग रखा ही जाना चाहिए न। अरे हमारे यहां तो खाने-पीने के मामले में चोरी तक को बुरा नहीं मानते। आम-अमरूद, ककड़ी-तरबूज चुरा कर खाने का अपना ही मजा है साहब। मजे-मजे में लोग गन्ने तक चुरा लेते हैं। यह मजा बिल्कुल वैसा ही होता है जैसा कृष्णजी को माखन चुरा कर खाने में मजा आता था। यह मोदीजी के न खाऊंगा, न खाने दूंगा वाला खाना नहीं न है जी। और ट्रंप साहब हैं कि जांच-परख के बाद ले जाए गए आमों को भी अमेरिकियों को नहीं खाने दे रहे। कह दिया कि आम की इन खेपों को वापस ले जाओ, नहीं तो यहीं नष्ट कर दो। कहीं ट्रंप साहब को आम भी तो पाकिस्तानियों के ही नहीं पसंद आ गए। नहीं अच्छे होते हैं। सच बात है। लेकिन बात अच्छे-बुरे की रह ही कहां गयी। जब अमेरिका वालों ने पाकिस्तान को आईएमएफ का अरबों का लोन ही दिला दिया। ट्रंप अंकल टैरिफ-टैरिफ ही नहीं कर रहे, ट्रेड-ट्रेड भी बहुत कर रहे हैं। लेकिन अगर आम सामने हों और लोग खा ही न पाएं तो ऐसा भी क्या ट्रेड जी। आम खाओ न, पेड़ क्यों गिनते हो।

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