जी. पार्थसारथी
पाकिस्तान के बड़े राजनीतिक घरानों की कमाई का मुख्य स्रोत कृषि जमीन रही है। वहां भूमि सुधार करने के बारे में सोचा तक नहीं गया, लिहाजा विशाल कृषि भूखंडों की मिलकियत इनके हाथ रही। यहां तक कि समाजवाद की ओर झुकाव रखने वाले पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की आय भी सिंध वाली कृषि भूमि थी। उनके नाती बिलावल भुट्टो, दामाद आसिफ अली ज़रदारी, जो अब पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की अगुवाई कर रहे हैं, वे भी सिंध के ग्रामीण राजसी जमींदार तबके से हैं। वहीं शरीफ परिवार, जो मूलतः कश्मीर में रहता था, पंजाब आकर बस गया, जहां परिवार के पितामह (नवाज़ शरीफ के पिता) ने स्टील उद्योग स्थापित किया। वह स्टील कारखाना तो बेच दिया लेकिन शरीफ खानदान आज 30 करोड़ डॉलर मूल्य वाले चीनी उद्योग का मालिक है।
शाहबाज़ शरीफ ने बड़े भाई नवाज़ शरीफ के सामने सदा छोटे भाई जैसा व्यवहार रखा और अग्रज की हर इच्छा का आज्ञाकारी पालन किया। लेकिन विगत में जिस तरह नवाज़ शरीफ सेना से उलझते रहे, उसकी बजाय शाहबाज़ शरीफ ने सैनिक प्रतिष्ठान से सदा बढ़िया व्यावसायिक ताल्लुकात बनाकर रखे। इसलिए कोई शक नहीं कि सेना भी इमरान खान से पार पाने में शाहबाज़ की पीठ पर हाथ रखे, वैसे भी गुस्सैल इमरान खान ने नए आईएसआई प्रमुख की नियुक्ति पर जो कुछ किया, उसकी वजह से मृदुभाषी जनरल असीम बाजवा तो चिढ़ गए थे। नवाज़ शरीफ एक महत्वाकांक्षी और कुशाग्र बेटी मरियम के पिता हैं। उनका बेटा हमज़ा शरीफ भी उतना ही महत्वाकांक्षी है, जिसे हाल ही में पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री पद पर बैठाया गया है। वहीं मरियम चाचा शाहबाज़ शरीफ के केंद्रीय मंत्रिमंडल में सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं। हमज़ा और मरियम की महत्वाकांक्षाओं के बीच दोनों के बीच रिश्ता कैसा रहेगा, यह समय बताएगा।
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की टीस की वजह विदेशी मुद्रा की भारी कमी है, जिससे उसे लगातार तेल-संपन्न अमीर अरबी सल्तनतों के सामने भीख का कटोरा थामना पड़ता है। पिछले सात सालों में, पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पाद 315 बिलियन डॉलर से घटकर 292 बिलियन डॉलर पर आ गया है। यह आंकड़ा अब बांग्लादेश से भी नीचे है। विदेशी खैरातों के बावजूद पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार सिकुड़ा है। अगस्त, 2021 में विदेशी मुद्रा कोष 18.8 बिलियन डॉलर था जो फरवरी 2022 में घटकर 14.9 बिलियन डॉलर हो गया। अर्थव्यवस्था चलाये रखने को पाकिस्तान सदा अमीर अरबी सल्तनत, खासकर सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात, की खैरातों पर निर्भर रहा है। सऊदी अरब की इस्लामिक देशों की सरदारी को चुनौती देने के लिए मलेशिया और तुर्की के बनाए नए इस्लामिक संघ में शामिल होने की इमरान खान की तैयारी से सऊदी अरब का चिढ़ना स्वाभाविक था। सऊदी अरब के युवराज सलमान ने संयुक्त अरब अमीरात के युवराज शेख मोहम्मद ज़ाएद के साथ मिलकर पाकिस्तान की आर्थिक चूड़ियां कस डालीं। दशकों तक जिन अरब मुल्कों ने खुले दिल से पाकिस्तान की आर्थिक मदद की थी, वे इमरान खान की हेठी करने लगे।
तभी प्रधानमंत्री बनते ही शाहबाज़ शरीफ ने पहले दौरे के लिए सऊदी अरब को चुना। सऊदी अरब ने भी थैली की डोर ढीली करते हुए 2 बिलियन डॉलर की मदद का वादा किया है। शाहबाज़ शरीफ ने यूएई के युवराज शेख ज़ाएद से भी मुलाकात की है जो सऊदी युवराज सलमान की तरह अपने देश के कार्यकारी सुल्तान हैं। लेकिन यहां शाहबाज़ शरीफ का पाला इस यथार्थ से भी पड़ा कि ताकतवर अरब देशों ने अब भारत के साथ रिश्तों पर नया रवैया अपना लिया है। सऊदी-पाकिस्तान संयुक्त घोषणापत्र में कहा गया : ‘सऊदी अरब पाकिस्तान के उस वक्तव्य का स्वागत करता है, जिसमें भारत के साथ जम्मू-कश्मीर विवाद सहित तमाम झगड़े सुलझाने की इच्छा जताई गई है। क्षेत्र में शांति और स्थायित्व सुनिश्चित हो सके, इसके लिए दोनों पक्ष भारत-पाक वार्ता को तरजीह देते हैं, विशेषकर जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर।’ इस घोषणापत्र में कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्ताव का संदर्भ देने समेत जो उम्मीदें पाकिस्तान लगाए हुए था, यह उससे अलग रहा। हालांकि पवित्र शहर मक्का में अपने समर्थकों के जरिए शाहबाज़ के विरुद्ध प्रदर्शन करवाकर इमरान खान ने सऊदी अरब से और नाराज़गी मोल ले ली है।
शाहबाज़ शरीफ ने ऐसे वक्त में बागडोर संभाली है जब तेल संपन्न पड़ोसी अरब मुल्कों के भारत और हिंद महासागरीय देशों के साथ रिश्तों में काफी बदलाव आया है। यह फर्क सऊदी और यूएई के मामले में और अधिक दिखता है, जिन्होंने भारत को एक विनम्र और मददगार मुल्क पाने के अलावा तेल एवं गैस क्षेत्र में निवेश के लिए भी उपयुक्त जाना है। इसके अलावा, भारतीय नौसेना और बहरीन स्थित 5वें अमेरिकी बेड़े के बीच निकट सहयोग से फारस की खाड़ी और हिंद महासागर में नौवहनीय आवागमन पर कारगर सुरक्षा चक्र बना है। विगत में, राष्ट्रपति बाइडेन ने पाकिस्तान के फौजी जनरलों से संवाद में काफी रुचि दिखाई थी किंतु ठीक उसी वक्त उनके पास इमरान खान से मिलने या बात करने का समय नहीं था, जिन्होंने अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे को अपना समर्थन कभी राज़ नहीं रखा। अमेरिकी विदेश मंत्री ने पाकिस्तान के नए विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो को संयुक्त राष्ट्र में खाद्य सुरक्षा पर होने वाली बैठक में आमंत्रित किया है।
नियमानुसार इस साल नवम्बर में जनरल बाजवा की सेवानिवृत्ति होनी है। जहां पाकिस्तान कश्मीर में जिहादियों की मदद जारी रखे हुए है वहीं भारत में आतंकवाद की सहायता की एवज में अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्यबल द्वारा बढ़ाया सेंक भी महसूस कर रहा है। रावलपिंडी का सेना मुख्यालय अब लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की गतिविधियों को लेकर ज्यादा गोपनीयता बरत रहा है। गौरतलब है कि अब आईएसआई पंजाब में अंतर-सीमा आतंकवाद को बढ़ावा देने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने लगी है। इसी बीच पाकिस्तानियों को ड्युरंड लाइन के आरपार बसे पश्तून इलाकों से अपनी गतिविधियां चलाने वाले गुट तहरीक-ए-तालिबान ऑफ पाकिस्तान से पेश गंभीर चुनौती का सामना कर पड़ रहा है। बलूचिस्तान में भी पाकिस्तान के सामने इस किस्म के हालात हैं। कराची में हाल ही में एक बलूच राष्ट्रवादी महिला ने आत्मघाती हमले में चीनी कामगारों को ले जा रही बस को उड़ा दिया। बलूचिस्तान में चीनियों की बढ़ती उपस्थिति के खिलाफ तगड़ा रोष है, खासकर ग्वादर बंदरगाह इलाके में।
भारत को पाकिस्तान पर अपना राजनयिक और आर्थिक दबाव जारी रखना चाहिए, जब तक कि रावलपिंडी में बैठे फौजी जनरल पाक-अधिकृत कश्मीर में बनाया गया आतंकवाद का ढांचा खत्म नहीं कर देते। इसी बीच रिश्ते सामान्य बनाने के लिए पर्दे के पीछे वाले संवाद जारी रखे जाएं। पहले कदम के तौर पर, दोनों ओर राजदूतों की नियुक्ति जल्द की जाए। हालांकि, बहुत कुछ अंतर-सीमा आतंकवाद को पाकिस्तानी मदद जारी रहने या बंद करने पर निर्भर करेगा। उम्मीद करें कि पाकिस्तान को वह पुरानी कहावत याद होगी : ‘जो खुद शीशे के मकान में रहते हैं वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते’। आम लोगों के बीच आपसी सामान्य रिश्तों की बहाली की खातिर हम समय के साथ पाकिस्तान आने-जाने वाली बस और हवाई सेवाएं शुरू कर कर सकते हैं। यदि पाकिस्तान सार्क संधि के मुक्त व्यापार संधि वाले प्रावधान पर पूरी तरह अमल करे तो भारत चरणबद्ध तरीके से सार्क को पुनर्जीवित करने पर विचार कर सकता है। गेंद पाकिस्तान के पाले में है।
लेखक पूर्व वरिष्ठ राजनयिक हैं।