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अब गर्मी की मार करने लगी है लाचार

व्यंग्य/तिरछी नजर
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शमीम शर्मा

अमरस, शरबत, ठंडाई, आइसक्रीम, कुल्फी, सोडा, शिकंजी के दिन आ गये हैं। हमारी जिंदगी में सावन या वसंत आये न आये पर गर्मी तो सही समय पर आकर खड़ी हो जाती है। खड़ी क्या होती है, यूं समझो कि एक बेवफा प्रेमिका की तरह सताती है। फिर बिजली जाने और पानी की किल्लत का सिलसिला चालू हो जाता है। पानी बचाओ, तरल पदार्थ पियो और पक्षियों के लिये पानी रखो जैसे प्रवचनों की बाढ़-सी आ जाती है।

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इधर बड़ी मुश्किल से कंबल-रजाई तह करने से जान छूटती है। पर सर्दियों के कपड़े समेट कर रखना भी अपने आप में पूरा प्रोजेक्ट है। पूरी तो जगह चाहिए और पूरा समय। गर्मी के मौसम की अलग आफत है। अब बोतल और कूलर में पानी भरने में जुटो और एसी की सर्विस करवाओ। इस बार समय से पहले ही खूंखार गर्मी पड़नी प्रारंभ हो गई है। गर्मी अकेली नहीं आती, अपने साथ धूल भरी आंधियां जरूर लाती है। फिर झाड़ू उठाये घूमते रहो सारा दिन और घरवालों के ताने सुनो कि घर में सफाई ही नहीं है।

वैसे देखा जाये तो सूरज का जलना भी वाजिब है क्योंकि हर कोई चांद को प्रेम करता है। भला सूरज को यह प्रेम कैसे सुहायेगा? जलन तो होगी ही। एक मनचले का कहना है कि काश! सूरज की भी कोई पत्नी होती तो उसे कंट्रोल में रखती। एक शराबी का सुझाव है कि गर्मियों में दारू दोपहर को पीनी चाहिए, क्योंकि गिर भी गये तो कह सकते हैं गर्मी के कारण चक्कर आ गया होगा। तपती दोपहर में स्कूटर या कार की बलबलाती सीट पर बैठना भी बहादुरी का कारनामा माना जा सकता है। इन दिनों बैंगन बेचने वाले पता नहीं क्या करते हांेगे क्योंकि शाम तक तो टोकरे में रखे-रखे बैंगनों का भरता ही बन जाता होगा।

एक नई बात देखने में आई है कि अब लोगों को लू कहने में भी शर्म आने लग गई है। अपनी लू अब हीट वेव बन चुकी है। मौसम विभाग कभी येलो अलर्ट भेजता है कभी ऑरेंज अलर्ट। गर्मी का यही हाल रहा तो शायद वह दिन भी आयेगा जब यह घोषणा होगी कि ढाबे वालों को तन्दूर की जरूरत नहीं रहेगी। अब कार के बोनट पर भी रोटियां सेंकी जा सकती हैं।

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एक बर की बात है अक सुरजे नैं नत्थू तै बूज्झी- हां रै जद तन्नैं घणी गरमी लगै तो के करै है? नत्थू बोल्या- गरमी लागते ही मैं कूलर धोरै जाकै बैठ ज्यूं। सुरजा बोल्या- अर फेर भी गरमी लागै तो? नत्थू बोल्या- फेर मैं कूलर चालू कर ल्यूं।

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