अनूप भटनागर
एक समय था जब कैदियों को अदालत से जमानत मिल जाने के बावजूद कई-कई दिन उनकी रिहाई नहीं होती थी और उनके परिजन इसके लिए यहां से वहां भटकते थे। कई बार तो जेल प्रशासन अदालत के आदेश की प्रमाणित प्रति नहीं मिलने अथवा कैदी के निवास स्थान के पते के सत्यापन के नाम पर उनकी रिहाई में विलंब करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।
विचाराधीन कैदियों को जमानत मिल जाने के बावजूद अब अधिक समय तक जेल की सलाखों के पीछे समय नहीं गुजारना पड़ेगा। इसकी वजह, जमानत से संबंधी न्यायिक आदेश की प्रमाणित प्रति दस्ती तरीके से पहुंचाने की बजाए उन्हें इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली के माध्यम से तत्परता के साथ भेजने की व्यवस्था शुरू हो जाना है।
शुरू में इस प्रणाली के तहत देश भर में 1,887 ईमेल आईडी तैयार किये गए हैं और शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में ‘फास्टर’ (इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड के त्वरित एवं सुरक्षित संप्रेषण) प्रकोष्ठ स्थापित करने के साथ ही विभिन्न स्तरों पर 73 नोडल अधिकारी नियुक्त किये गए हैं जो जिला अदालत के स्तर पर तालमेल कायम करेंगे। शीर्ष अदालत ने साल 2021 में न्यायिक आदेश के बावजूद आगरा की जेल में बंद 13 कैदियों की आठ दिन तक रिहाई नहीं होने की घटना प्रकाश में आने पर इसका स्वत: संज्ञान लिया था। इस घटना के बाद ही न्यायालय ने कैदियों की रिहाई के लिये न्यायिक आदेश पहुंचाने हेतु डिजिटल माध्यम से आदेश संप्रेषित करने की दिशा में यह कदम उठाना शुरू किया था।
आगरा की जेल में 20 साल बिताने के बाद 13 कैदियों को अंतरिम जमानत मिलने के बावजूद एक सप्ताह तक रिहा नहीं करने और इसके बाद नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ आन्दोलन के दौरान हिंसा की घटनाओं के सिलसिले में गिरफ्तार दो छात्राओं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता सहित तीन आरोपियों को उच्च न्यायालय से जमानत मिल जाने के बावजूद 48 घंटे तक तिहाड़ से जेल से रिहा नहीं करने की घटनाओं पर न्यायालय ने कड़ा रुख अपनाया था। इन छात्राओं के मामले में तो दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया था कि आरोपियों के निवास स्थान के पते का सत्यापन हो रहा था। उच्चतम न्यायालय ने उसी समय स्पष्ट कर दिया था कि ‘कागो हाथ संदेशा भेजने’ की पुरानी परंपरा अब बीते दिनों की बात हो जायेगी और कैदियों की रिहाई में विलंब नहीं होगा। इसके बाद ही कैदियों की अविलंब रिहाई सुनिश्चित करने के इरादे से ही उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार के सहयोग से एक नई इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली शुरू करने की कवायद शुरू की क्योंकि उसका स्पष्ट मत रहा है कि अदालत से जमानत मिलने के बाद एक दिन भी अतिरिक्त उन्हें जेल में रखना उनकी व्यक्तिगत आजादी और उनके मानव अधिकार का हनन है।
न्यायालय का सदैव यह मत रहा है कि देश के सभी नागरिकों को संविधान के अनुच्छेद 21 में दैहिक आजादी का अधिकार प्राप्त है और अगर जेल में बंद किसी व्यक्ति को अदालत से जमानत मिल जाती है तो उसे अविलंब ही रिहा किया जाना चाहिए। लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं हो रहा था। इनमें सबसे ज्यादा घटनाएं नागरिकों को अवैध तरीके से हिरासत में रखने या फिर अदालत के आदेश के बावजूद कई-कई दिन तक उन्हें जेल से रिहा नहीं करने से संबंधित होती हैं। लेकिन फास्टर प्रणाली शुरू हो जाने के बाद अब ऐसा संभव नहीं होगा।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने पिछले सप्ताह ही उच्च न्यायपालिका के आदेशों को सुरक्षित तौर पर संप्रेषित करने के उद्देश्य से फास्टर सॉफ्टवेयर लांच किया है। इस प्रणाली के तहत उच्चतम न्यायालय के नोडल अधिकारियों के हस्ताक्षर से ही जमानत के आदेश संप्रेषित होंगे और यह पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे। इस प्रणाली के माध्यम से संप्रेषित न्यायिक आदेश बगैर किसी तीसरे पक्ष की छेड़छाड़ के ही अविलंब गंतव्य तक पहुंचेंगे। इससे जमानत मिलने वाले कैदियों की रिहाई में ज्यादा विलंब नहीं होगा।
शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप से न्यायिक आदेशों को तुरंत और सुरक्षित तरीके से संप्रेषित करने की यह व्यवस्था लागू होने से निश्चित ही जहां कैदियों को राहत मिलेगी वहीं उनके परिजनों को कई-कई दिन तक जेलों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। जेल प्रशासन भी आदेश की प्रति मिलने में विलंब के नाम पर रिहाई टाल नहीं सकेंगे। यह व्यवस्था पूरी तरह लागू हो जाने के बाद देश के दूरदराज के इलाकों में कैदियों के जमानत के आदेश तत्परता से संप्रेषित करना संभव होगा वहीं देश की तमाम जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों के बंद होने की समस्या से भी राहत मिलने की उम्मीद है।