जब योग्य इंजीनियर भारत में ही रहेंगे, तो वे नई कंपनियां शुरू करने और नवाचार करने में योगदान देंगे। रिसर्च और इनोवेशन में वृद्धि होगी।
अमेरिका हमेशा से भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। विशेषकर 1990 के दशक के बाद, जब सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र ने भारत में तेजी से विकास करना शुरू किया, तब से लाखों भारतीय इंजीनियर, प्रोग्रामर और सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ एच-1बी वीज़ा के माध्यम से अमेरिका जाकर काम करते रहे हैं। अमेरिकी कंपनियां भारतीय आईटी टैलेंट को इसलिए पसंद करती थीं क्योंकि वे योग्य, मेहनती और अपेक्षाकृत सस्ते संसाधन उपलब्ध कराते थे। इसी कारण भारतीय आईटी उद्योग की कमाई का बड़ा हिस्सा लंबे समय तक अमेरिकी बाजार पर निर्भर रहा।
लेकिन यदि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एच-1बी वीज़ा की फीस को बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर देते हैं, तो इसका असर सीधा-सीधा भारतीय आईटी उद्योग और पेशेवरों पर देखने को मिलेगा। एच-1बी वीज़ा वह माध्यम है जिसके ज़रिये अमेरिका हर साल हजारों विदेशी तकनीकी विशेषज्ञों को नौकरी के लिए अनुमति देता है। इनमें सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की होती है। भारतीय कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो, एचसीएल आदि हर साल हजारों कर्मचारियों को इसी वीज़ा के जरिए अमेरिका भेजती रही हैं। इसकी फीस अचानक 1 लाख डॉलर करने से यह लागत कंपनियों और कर्मचारियों दोनों के लिए असहनीय हो जाएगी। भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी प्रोजेक्ट्स पर काम करने का खर्च बहुत बढ़ जाएगा और वे उतनी आसानी से भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका भेज नहीं पाएंगी।
लागत में वृद्धि के कारण अमेरिकी क्लाइंट्स को सेवा देने पर भारतीय कंपनियों का मुनाफ़ा कम हो जाएगा, जिससे उनके कॉन्ट्रैक्ट्स की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता प्रभावित होगी। स्थानीय नियुक्तियों में वृद्धि के परिणामस्वरूप भारतीय कंपनियों को मजबूरन अमेरिका में स्थानीय लोगों को नौकरी देनी पड़ेगी, जिससे भारत से बाहर जाने वाले अवसर कम होंगे। इन परिस्थितियों में व्यवसाय मॉडल में बदलाव आएगा— ऑफशोरिंग और रिमोट वर्किंग को और बढ़ावा मिलेगा और कंपनियां अमेरिका के क्लाइंट्स का काम भारत से ही संभालने की दिशा में आगे बढ़ेंगी। परिणामतः अमेरिका जाकर करियर बनाने का लाखों भारतीय इंजीनियरों का सपना कठिन हो जाएगा क्योंकि बढ़ी हुई फीस ने उसकी संभावना घटा दी है। जब बाहर जाना संभव न हो, तब भारतीय प्रतिभा अपनी तलाश भारत के भीतर करेगी; इससे घरेलू स्टार्टअप्स, आईटी कंपनियों और रिसर्च संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण मानव संसाधन उपलब्ध होगा।
लंबे समय से चल रहे ब्रेन‑ड्रेन में भी कमी आएगी — बाहर प्रतिभाशाली युवाओं का पलायन घटने से भारत को अपने ही लोगों की सेवाएं मिलेंगी। यह बदलाव धीरे-धीरे ब्रेन‑ड्रेन से ब्रेन‑गेन की ओर ले जा सकता है। भारत जैसे विकासशील देश की एक बड़ी समस्या यह रही कि उसने अपने युवाओं को उच्च शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण देकर तैयार तो किया, पर वे विदेश जाकर अपनी सेवाएं देने लगे; अब यदि यह प्रवृत्ति उलटती है तो देश को वह लाभ मिलने लगेगा जो पहले नहीं मिल पाया था।
इससे स्टार्टअप इकोसिस्टम को मजबूती मिलेगी। जब योग्य इंजीनियर भारत में ही रहेंगे, तो वे नई कंपनियां शुरू करने और नवाचार करने में योगदान देंगे। रिसर्च और इनोवेशन में वृद्धि होगी। प्रतिभाशाली दिमाग यहां रहेंगे तो नए-नए शोध और तकनीकी आविष्कार होंगे।
दुनिया भर की कंपनियां पहले अमेरिका पर निर्भर थीं। अब वे भारत में ही अपनी यूनिट्स और डेवलपमेंट सेंटर्स स्थापित करने को प्रेरित होंगी। आईटी हब के रूप में भारत की पहचान बनेगी। यदि आईटी उद्योग का विस्तार भारत में ही होगा, तो लाखों युवाओं को रोजगार यहीं उपलब्ध होगा। निवेशक कंपनियां जानेंगी कि भारत में टैलेंट उपलब्ध है और अमेरिका जाना मुश्किल है, इसलिए वे सीधे भारत में निवेश करना शुरू करेंगी।
हालांकि इससे भारत को अनेक फायदे होंगे, लेकिन कुछ चुनौतियां भी सामने आएंगी। भारतीय कंपनियों को अल्पकाल में नुकसान उठाना पड़ेगा। अमेरिका से मिलने वाला राजस्व घट सकता है। प्रतिस्पर्धा के कारण घरेलू कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा। भारत को अपनी आधारभूत संरचना, अनुसंधान और नवाचार के लिए माहौल मजबूत करना होगा, ताकि टैलेंट का सही उपयोग हो सके।
अल्पकाल में भले ही आईटी कंपनियों को कठिनाई हो, लेकिन दीर्घकाल में यह भारत के लिए वरदान साबित हो सकता है। अब तक जो टैलेंट विदेश जाकर काम करता था, वही भारत के डिजिटल परिवर्तन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग, साइबर सुरक्षा और नई तकनीकों के विकास में योगदान देगा। अगर भारत का युवा वर्ग यहीं रहकर काम करता है, तो भारत न केवल आईटी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर नेतृत्व की भूमिका भी निभा सकेगा।
ट्रंप द्वारा एच-1बी वीज़ा फीस को 1 लाख डॉलर करने का कदम अल्पकाल में भारतीय आईटी उद्योग के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। लेकिन इसका एक सकारात्मक पहलू भी है – भारतीय टैलेंट भारत में ही रुकेगा, जिससे ब्रेन ड्रेन कम होगा और देश को अपने ही युवाओं की क्षमता का लाभ मिलेगा। यदि भारत अपनी नीतियों और इंफ्रास्ट्रक्चर को सही दिशा में आगे बढ़ाए, तो आने वाले वर्षों में यही कदम भारत की डिजिटल शक्ति को नई ऊंचाई तक पहुंचा सकता है।
लेखक विज्ञान विषयों के जानकार हैं।