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युवा आक्रोश की तपिश में सुलगता नेपाल

ऐसी अराजक स्थिति में क्या राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, सेनाध्यक्ष जनरल अशोक राज सिगडेल देश को संभालने की ज़िम्मेदारी सौंपना तार्किक होगा? अफवाहों का बाज़ार भारत में गर्म है, शक सीआईए पर। लेकिन अमेरिकी परियोजनाएं तो नेपाल में निर्बाध गति से...
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ऐसी अराजक स्थिति में क्या राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, सेनाध्यक्ष जनरल अशोक राज सिगडेल देश को संभालने की ज़िम्मेदारी सौंपना तार्किक होगा? अफवाहों का बाज़ार भारत में गर्म है, शक सीआईए पर। लेकिन अमेरिकी परियोजनाएं तो नेपाल में निर्बाध गति से चल रही हैं।

ऐसा लगा, जैसे कोलम्बो का परिदृश्य, नेपाल की राजधानी काठमांडो में उतर आया हो। नेताओं-नौकरशाहों-न्यायपालिका और मीडिया के विरुद्ध इतना ग़ुस्सा नेपाल ने पहली बार देखा। संसद भवन, राष्ट्रपति कार्यालय ‘शीतल निवास’, प्रधानमंत्री कार्यालय व निवास और मंत्रियों की कोठियों को आग के हवाले कर दिया गया। पूर्व प्रधानमंत्री, नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेरबहादुर देउबा और उनकी पत्नी आरजू राणा, जो देश की विदेशमंत्री हैं, दोनों को बूढ़ा नीलकंठ स्थित आवास में घसीट कर मारा गया। उनके घर को आग लगा दी। देउबा और उनकी पत्नी को सेना की सुरक्षा में अस्पताल ले जाया गया है। प्रचंड, जो सत्ता में नहीं हैं, उन्हें भी उग्र प्रदर्शनकारियों ने नहीं बख्शा। ‘प्रचंड’ के खुमलाटार आवास पर प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ की। प्रचंड भी भूमिगत हैं। सेना की सुरक्षा में सबको सुरक्षित थानों पर ले जाया गया है। प्रदर्शनकारियों ने काठमांडो में उस इमारत को भी आग लगा दी है, जिसमें देश का सबसे बड़ा मीडिया हाउस, कांतिपुर पब्लिकेशन्स स्थित है। नेता-नौकरशाह, न्यायपालिका, मीडिया सभी डरे-सहमें। फिर बच क्या जाता है? भरोसे का इतना बड़ा स्खलन। सब कुछ जैसे भरभरा कर गिर गया हो।

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‘सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है’, यह शायद केपी शर्मा ओली भांप चुके थे, तभी सेना प्रमुख की सलाह पर पीएम पद से इस्तीफे की घोषणा कर दी। मंगलवार सुबह जेनरेशन जेड प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बालकोट, भक्तपुर स्थित निजी आवास में आग लगा दी। इस्तीफे के बावजूद लोगों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ, उन्होंने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बलुवाटार स्थित सरकारी आवास में भी आग लगा दी। सरकार में सहयोगी नेपाली कांग्रेस के मंत्री एक-एक कर इस्तीफा दे चुके थे। 3 सितम्बर को चीनी विजय दिवस समारोह में पीएम ओली उपस्थित थे। उनके काठमांडो लौटते ही नेपाली कांग्रेस के नेता शेखर कोइराला चाइना चले गए। वहीं से कल रात निर्देश दिया कि उनकी पार्टी के मंत्री इस्तीफा दे दें। क्या केपी शर्मा ओली में थिएनआनमन स्क्वायर जैसा दमन करने की कुव्वत नहीं थी?

काठमांडो में एक इलाक़ा है, भैंसेपाटी। इसके कॉम्प्लेक्स में मंत्रियों व शीर्ष अधिकारियों की कोठियां हैं। मंगलवार दोपहर होते-होते संचार मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग के घर में आग लगा दी गई, फिर बाक़ी घर भी धू-धू जलने लगे। आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं के बीच नेपाली सेना ने हेलीकॉप्टरों की मदद से भैंसेपाटी में छुपे मंत्रियों और उनके परिवार के सदस्यों को निकालना शुरू कर दिया। मंगलवार को ही एक नाटकीय घटनाक्रम में, जेन-जेड प्रदर्शनकारियों ने नक्खू जेल में घुसकर पूर्व मंत्री व पत्रकार रबी लामिछाने को छुड़ा लिया। जेल से भगा ले जाने की यह साहसिक घटना देश भर में जेन-जेड प्रदर्शनकारियों द्वारा बढ़ती अशांति और लगातार बढ़ रहे दुस्साहसिक कार्यों को रेखांकित करती है। ऐसी अराजक स्थिति में क्या राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, सेनाध्यक्ष जनरल अशोक राज सिगडेल देश को संभालने की ज़िम्मेदारी सौंप सकते हैं? अफवाहों का बाज़ार भारत में गर्म है, शक सीआईए पर। लेकिन अमेरिकी परियोजनाएं तो नेपाल में निर्बाध गति से चल रही हैं। फिर क्या ओली के चीन जाने से ऐसा कोई षड्यंत्र संभव है?

ठीक से देखा जाये, तो नेपाल एक ‘फेल्ड स्टेट’ घोषित हो चुका है। 2022 के दौरान श्रीलंका में गंभीर आर्थिक संकट के कारण खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की भारी कमी हो गई थी। लोगों का विद्रोह हुआ और वे सड़कों पर उतर आए। मंत्रियों, जजों को घसीट कर मारा, राष्ट्रपति निवास में घुस गए। नेपाल में सोशल मीडिया के ज़रिये ऐसी आग लगेगी, इसके बारे में किसी ने सोचा न था। दस ऐसे देश इरिट्रिया, उत्तर कोरिया, तुर्कमेनिस्तान, सऊदी अरब, चीन, वियतनाम, ईरान, इक्वेटोरियल गिनी, बेलारूस और क्यूबा में सोशल मीडिया का खुलापन नहीं है, बल्कि पूरी तरह सरकार नियंत्रित है। लेकिन यहां नेपाल जैसा विद्रोह क्यों नहीं हुआ? नेपाल में बांग्लादेश जैसी परिस्थितियां भी शायद न बनें, कि ओली को देश छोड़कर भागना पड़ जाये।

लेकिन जो कुछ हुआ, उसमें पहले ओली, फिर प्रचंड और अंत में सुप्रीम अदालत की ज़िम्मेदारी तो बनती है। प्रचंड ने तो केपी शर्मा ओली सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर बैन लगाने की आलोचना की थी। लेकिन, प्रचंड भूल गए थे कि, 13 नवंबर, 2023 को सामाजिक सद्भाव पर बढ़ते प्रतिकूल प्रभावों का हवाला देते हुए उन्होंने ही टिकटॉक पर प्रतिबंध लगा दिया था? अगस्त, 2024 में टिकटॉक ने जब खुद को रजिस्टर किया, फिर उस पर से बैन हटा। इसी तरह, जुलाई, 2024 में ‘टेलीग्राम’ पर भी धोखाधड़ी और धन शोधन में इस्तेमाल के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। पहले ओली, फिर प्रचंड के कार्यकाल में ही सोशल नेटवर्क को नकेल पहनाने की शुरुआत हुई थी।

केपी शर्मा ओली जब 15 फ़रवरी, 2018 से 14 मई, 2021 तक प्रधानमंत्री थे, दिसंबर, 2020 में, अधिवक्ता बी‍.पी. गौतम और अनीता बजगैन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से विदेशी विज्ञापनों सहित अप्रतिबंधित प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने की माँग करते हुए रिट दायर की थी। इसी तरह नेपाल केबल टेलीविजन फेडरेशन के महासचिव मनोज गुरुंग ने भी एक रिट दायर की थी। लेखक खगेंद्र संगरौला बताते हैं, ‘सर्वोच्च न्यायालय ने केवल सोशल मीडिया को विनियमित करने और उसे ज़िम्मेदार बनाने के लिए कहा था, लेकिन ओली सरकार ने राष्ट्रवाद के बहाने असहमति को दबाने का मार्ग ढूंढ़ लिया।’

नेपाल से बाहर जो लोग हैं, उन्हें लगता है, ओली सरकार के ‘देहावसान’ के बाद ‘राजा लाओ देश बचाओ’ की भविष्यवाणी सही साबित होगी। मगर, क्या जेन-जेड आंदोलनकारी राजतन्त्र की वापसी स्वीकार करेंगे? नेपाल में लेफ्ट-राइट दोनों पार्टियां, जेन-जेड को समर्थन देने के वास्ते एड़ी-चोटी लगा रही हैं। काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह ने निराश युवाओं को प्रोत्साहित किया, बल्कि दुर्गा प्रसाद जैसे राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता और अन्य राजभक्तों ने आग को और भड़काने का काम किया। विपक्षी दलों, सीपीएन (माओवादी सेंटर), और राजशाही समर्थक राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) के नेता युवाओं को उत्तेजित कर अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे थे। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के पोते, हृदयेंद्र शाह का नाम भी जेन-जेड आंदोलनकारियों को समर्थन देने के सन्दर्भ में आया, फिर धूमकेतु की तरह कहीं विलीन हो गया।

वर्ष 2022 के अंत में न्यूयॉर्कर मैगज़ीन द्वारा ‘नेपो बेबी का वर्ष’ शीर्षक से एक मूल लेख प्रकाशित होने के बाद इस शब्द ने और अधिक ध्यान आकर्षित किया। ‘नेपो किड’/ ‘नेपो बेबी’ ने राजनेताओं और धनपशुओं के बच्चों की विलासितापूर्ण जीवनशैली को उजागर किया था। नेपाल में अघाया हुआ एक क्लास है, जिसके ‘नेपो किड्स’ इंस्टा और टिकटॉक पर अपनी हाईक्लास जीवनशैली का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन यह कभी नहीं बताते कि पैसा कहां से आता है। किंग ज्ञानेंद्र के वंशज भी तो ‘नेपो किड्स’ हैं!

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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