वैसे तो जी, अपने हाथ ही जगन्नाथ होते हैं, फिर भी साहिर साहब ने बरसों पहले यह गुहार लगायी थी कि साथी हाथ बढ़ाना। हाथों का बड़ा महत्व है जी। कई बार हाथ मिल जाते हैं, पर दिल नहीं मिलते। जिनके दिल मिल जाते हैं, उन्हें हाथ मिलाने की औपचारिकता नहीं निभानी पड़ती। दिल अनौपचारिक ढंग से मिलते हैं, पर हाथों का मिलना औपचारिकता ज्यादा होती है। फिर भी साहिर साहब की गुहार में दम है कि साथी हाथ बढ़ाना। उन्हीं की तरह उर्दू के एक दूसरे बड़े शायर अली सरदार जाफरी ने भी हाथों का बड़ा गुणगान किया- इन हाथों को तस्लीम करो। हाथ न चलें तो न पेट भरेगा, न अपनी रक्षा होगी। हाथ न जुड़ें तो न विनम्रता आएगी और न एका बनेगा। हाथ न उठें तो दुआ कैसे मांगोगे। पर सीख यह भी है कि किसी गरीब, मजलूम, कमजोर, बच्चे और औरत पर हाथ नहीं उठाना चाहिए। लेकिन इधर समस्या यह हो गयी है कि नौजवान हाथों को काम नहीं मिल रहा। काम देने की बजाय उनके हाथ में मोबाइल पकड़ा दिया गया है और सस्ता डाटा भी। नौजवानों ने सबको हाथो-हाथ लिया। लेकिन इसी मोबाइल के साथ नेपाल में तो क्रांति हो गयी बताते हैं। मोबाइल पकड़ाने वाले अफसोस कर रहे होंगे कि जेन जी के हाथ हमने यह क्या पकड़ा दिया।
खैर जी, इधर हाथ न मिलने की बड़ी चर्चा है। वैसे तो जी दिल भी मिलते रहने चाहिए। पर दिल न भी मिलें तो हाथ तो मिलते ही रहने चाहिए। वैसे भी जिनके दिल मिल जाते हैं, उनके हाथ अपने आप मिल जाते हैं। जैसे कि वो प्रेमी जोड़े हमेशा गाते रहते हैं न कि हाथों में सदा तेरा हाथ रहे और वो क्या डायलॉग बोले जाते हैं कि यह हाथ पकड़ा है तो जिंदगी भर नहीं छोड़ूंगा टाइप के। लेकिन दिल न भी मिलें तो हाथ मिलते रहने चाहिए। वैसे तो ज्ञानीजन कमजोर हाथों को थामने का उपदेश भी देते रहते हैं। लेकिन इधर हाथ मिलाना भर मिलन की उपयुक्त अभिव्यक्ति नहीं रह गया था। अब तो जफ्फियां-वफ्फियां पायी जाती हैं। बल्कि हमारे प्रधानमंत्रीजी ने तो कूटनीति में भी इसे नया नार्मल बना दिया है। पहले कूटनीति में सिर्फ हाथ ही मिलाए जाते थे।
लेकिन इधर हॉट टॉपिक यह बन गया है कि क्रिकेट के खेल में हाथ तक नहीं मिलाए जा रहे। भाई कुश्ती तक हाथ मिलाए बिना नहीं होती। तो क्रिकेट में भी मिला लेते। वैसे भी हाथों के बिना खेल क्या है। इधर हाथों से बॉल फेंकी जाती है, उधर हाथों से बैट घुमाया जाता है। लुढ़कती भागती गेंद को हाथों से ही पकड़ा जाता है, कैच हाथों से छूट जाए तो अफसोस होता है। ऐसा अफसोस इसलिए नहीं होना चाहिए कि हाथ नहीं मिलाया था। वैसे भी मैच तो हाथों से नहीं निकला न यार!