अनूप भटनागर
जेलों में बंद कैदियों को संविधान के अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकार के तहत गरिमा के साथ जीने का अधिकार है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। जेलों में उनकी क्षमता से कहीं ज्यादा कैदी बंद हैं, जिनमें विचाराधीन कैदियों की संख्या बहुत ज्यादा है।
जेलों में विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या के कारणों में अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों के पद रिक्त होना और सुनवाई के लिए तारीख पर तारीख पड़ना भी शामिल है। जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या कम करने के लिए जरूरी है कि इनके मुकदमों की सुनवाई कम से कम स्थगित हो।
जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों में अधिकांश कैदी कथित अपराध के लिए कानून में निर्धारित सजा की अवधि से आधे से ज्यादा समय जेल में बिता चुके हैं। केंद्र और शीर्ष अदालत चाहती है कि छोटे-मोटे अपराध के आरोप में बंद इन विचाराधीन कैदियों को जमानत या निजी मुचलके पर रिहा करने के अभियान को गति देकर जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी होने का दबाव कम किया जाए। लेकिन इसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। स्थिति यह है कि विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराये गए कैदियों की तुलना में विचाराधीन कैदियों की संख्या निरंतर बढ़ रही है।
देश भर की जेलों के 31 दिसंबर, 2020 के आंकड़ों के अनुसार कुल बंद कैदियों की संख्या 4,88,511 थी, जिनमें 3,71,848 विचाराधीन कैदी थे। इन विचाराधीन कैदियों में अधिकांश गरीब या सामान्य परिवारों के हैं और वे कथित अपराध के आरोप में मिलने वाली संभावित सजा की अवधि से आधे से ज्यादा समय जेल में गुजार चुके हैं।
दरअसल, साल-दर-साल इनकी संख्या बढ़ रही है। जेलों में साल 2018 में विचाराधीन कैदियों की संख्या 3,24,141 थी जो 2019 में बढ़कर 3,32,916 और 31 दिसंबर, 2020 को 3,71,848 पहुंच गई थी। विचाराधीन कैदियों की रिहाई का मसला अक्सर उठता रहता है और इस बार तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इनकी समस्याओं को मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के समक्ष रखा।
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्रत्येक जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है ताकि विचाराधीन कैदियों के मामलों की समीक्षा की जा सके और यथासंभव उन्हें जमानत पर रिहा किया जा सके। उन्होंने विचाराधीन कैदियों से संबंधित मामलों को प्राथमिकता देने पर जोर दिया और कहा कि ऐसे कैदियों को कानून के तहत मानवीय संवेदनाओं के आधार पर रिहा किया जाना चाहिए।
ऐसे कैदियों की रिहाई की दिशा में 2010 में तत्कालीन कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने पहल की थी और उन्हें ढाई लाख से भी ज्यादा विचाराधीन कैदियों को निजी मुचलके या जमानत पर रिहा कराने में सफलता मिली थी। इसके बावजूद जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों की स्थिति में कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ था। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उच्चतम न्यायालय ने भी सितंबर, 2014 में ऐसे विचाराधीन कैदियों की रिहाई के बारे में उच्च न्यायालयों को विस्तृत निर्देश दिये थे।
केंद्र सरकार भी विभिन्न अपराधों के आरोप में लंबे समय से जेल में बंद उन विचाराधीन कैदियों की रिहाई के पक्ष में रही है जो अपने कथित अपराध के लिए कानून में निर्धारित सजा की आधी से ज्यादा अवधि जेल में बिता चुके हैं।
वैसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436-ए में पहले से ही प्रावधान है कि यदि कोई कैदी उसे मिलने वाली संभावित सजा की आधे से ज्यादा अवधि जेल में बिता चुका है तो उसे जमानतदार पेश करने या सिर्फ मुचलके पर ही रिहा किया जा सकता है। लेकिन यह उन मामलों में लागू नहीं होता है जिसमें आरोपी को उसके अपराध के लिए मृत्यु दंड मिल सकता है।
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए शीर्ष अदालत ने विचाराधीन कैदियों की समीक्षा के लिए गठित जिला स्तर की समिति को हर तीन महीने में बैठक करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने कहा था कि विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436 और धारा 436 ए पर प्रभावी तरीके से अमल करके ऐसे कैदियों को यथाशीघ्र रिहा करने पर गौर करे।
देश में 2020 के अंत तक जेलों की कुल संख्या 1306 थी और इनमें 4,14,033 कैदियों को रखने की क्षमता थी। लेकिन शायद ही कभी ऐसा अवसर आया जब इनमें क्षमता के अनुसार कैदी रहे हों। जेलों में क्षमता से अधिक कैदी होने की वजह से अक्सर वहां कैदियों के बीच ही मारपीट और लड़ाई-झगड़े की घटनाएं भी होती रहती हैं।
विचाराधीन कैदियों का मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाये जाने के बाद उम्मीद है कि उच्च न्यायालय और जिला न्यायाधीशों की अध्यक्षता वाली समितियां उनके मामलों की तेजी से समीक्षा करेंगी ताकि उनके मानवाधिकारों की रक्षा की जा सके और जेलों के प्रबंधन पर पड़ रहे बोझ को कम किया जा सके।