प्राकृतिक चिकित्सा दिवस
स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि हम प्रकृति से अपना रिश्ता फिर से मजबूत करें। जैसे एक बच्चा अपनी मां की गोद में सबसे सुरक्षित महसूस करता है, उसी तरह मनुष्य प्रकृति की गोद में सबसे स्वस्थ रहता है। इसलिए जीवन की लय को सही करने के लिए हमें प्रकृति की ओर लौटना होगा।
भारत में पिछले आठ वर्षों से प्राकृतिक दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य लोगों को यह समझाना है कि स्वास्थ्य की मूल जड़ें प्रकृति में निहित हैं। प्राकृतिक चिकित्सा का आधार ‘पंचमहाभूत सिद्धांत’ है—मिट्टी, जल, अग्नि (धूप), वायु और आकाश। इन्हीं पांच तत्वों से प्रकृति का निर्माण हुआ है, मानव शरीर का निर्माण हुआ है और हमारे आहार को रखने वाले अधिकांश बर्तन एवं पात्र भी पंचतत्त्वीय संरचना से ही बने होते हैं। इसीलिए प्राकृतिक चिकित्सा मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित करने को सबसे महत्वपूर्ण मानती है।
दरअसल, प्राकृतिक चिकित्सा एक प्रिवेंटिव यानी निवारक स्वास्थ्य पद्धति है। प्राकृतिक चिकित्सा का उद्देश्य केवल बीमारी का इलाज करना ही नहीं, बल्कि बीमारी को होने से पहले रोकना है। इसमें मुख्य रूप से तीन बातें शामिल हैं—पहला आहार, जो शुद्ध, सात्विक, शाकाहारी और प्राकृतिक भोजन हो। दूसरा विहार यानी लाइफ स्टाइल यानी दिनचर्या यानी योग, प्राणायाम, सूर्यस्नान, जलचिकित्सा आदि शामिल हैं। तीसरा है आचार यानी मन का संतुलन। सकारात्मक सोच यानी मानसिक शुद्धि। प्राकृतिक चिकित्सा यह सिद्ध करती है कि मनुष्य बिना दवा के भी पूर्णतः स्वस्थ रह सकता है, बशर्ते वह प्रकृति के नियमों का पालन करे।
वास्तव में हमारे पर्यावरण का संरक्षण हमारे स्वास्थ्य की पहली शर्त है। मनुष्य का स्वास्थ्य उसके पर्यावरण से गहराई से जुड़ा है। इसलिए हमारा प्रयास रहेगा कि हम अधिक से अधिक पौधारोपण करके अपने वातावरण को शुद्ध बनाएं। साथ ही वायु, जल और मिट्टी का संरक्षण करें। इसके साथ ही जरूरी है कि हम प्राकृतिक संसाधनों का सदुपयोग गंभीरता से करें। वास्तव में शुद्ध वातावरण हमें बीमारियों से बचाता है। आज के समय में अनेक रोगों का कारण और निवारण इसी धरती, हमारे परिवेश में छिपा हुआ है। जितना हम प्रकृति से दूर होंगे, तो रोगों से लड़ने की क्षमता अपने आप कम होती चली जाएगी। वास्तव में हमारे तन और मन— की विकृति से उत्पन्न होती हैं बीमारियां। हकीकत है कि बीमारियां केवल शरीर से नहीं, बल्कि मन की असंतुलित अवस्था से भी उत्पन्न होती हैं। दरअसल, आज की भागदौड़ भरी जीवनशैली में तनाव, अवसाद, अनियमित दिनचर्या तथा गलत आहार ने मनुष्य के जैविक संतुलन को बिगाड़ दिया है। सही जीवनशैली अपनाकर इन सभी विकृतियों को दूर किया जा सकता है।
हमने देखा कि कोरोना काल में प्राकृतिक चिकित्सा की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गई थी। कोविड-19 महामारी के दौरान प्राकृतिक चिकित्सा की पद्धतियों ने करोड़ों लोगों को राहत दी, जिसमें विशेष रूप से जल चिकित्सा, सूर्यस्नान व योग-प्राणायाम ने रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में उपयोगी भूमिका निभाई है।
भारतीय आयुर्वेद की मान्यता रही है कि हमारा 90 फीसदी उपचार शरीर की स्वयं की हीलिंग शक्ति पर आधारित है। इसके अलावा उपचार में डॉक्टर का व्यवहार और मार्गदर्शन का छह फीसदी योगदान होता है और केवल 4 फीसदी में दवाइयों की वास्तविक भूमिका देखी जाती है। यह आंकड़े प्राकृतिक चिकित्सा की उपयोगिता स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
दरअसल, प्राकृतिक चिकित्सा से स्वास्थ्य के मूल सिद्धांत हैं सात्विक भोजन लेकिन समय पर और पाचन क्षमता के अनुसार होना चाहिए। कम से कम सात घंटे की नियमित नींद होनी चाहिए, जिससे शरीर की जीवनशक्ति पुनर्निर्मित होती है। जैसे हम होली व दीपावली पर घर की सफाई करते हैं, वैसे ही हमें अपने तन-मन की सफाई करनी चाहिए। शरीर की शुद्धि में व्रत व प्राकृतिक उपचार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
आज पूरी दुनिया प्राकृतिक चिकित्सा की ओर उन्मुख है। यही वजह है कि प्राकृतिक चिकित्सा और योग के कारण भारत आज दुनिया में वेलनेस टूरिज़्म हब बनता जा रहा है। आर्थिक विशेषज्ञ बता रहे हैं कि वर्ष 2025 तक हेल्थ टूरिज़्म के 1.1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2024 रिपोर्ट के अनुसार प्रिवेंटिव हेल्थ की मांग 42 फीसदी तक बढ़ी है, जो दर्शाता है कि दुनिया अब दवाइयों से ज़्यादा प्राकृतिक तरीकों की ओर लौट रही है।
दरअसल, स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि हम प्रकृति से अपना रिश्ता फिर से मजबूत करें। जैसे एक बच्चा अपनी मां की गोद में सबसे सुरक्षित महसूस करता है, उसी तरह मनुष्य प्रकृति की गोद में सबसे स्वस्थ रहता है। आज दवाइयों का बढ़ता खर्च हर परिवार पर आर्थिक बोझ बनता जा रहा है। इसलिए जीवन की लय को सही करने के लिए हमें प्रकृति की ओर लौटना होगा। मेटाबॉलिज़्म को रिसेट करने के लिए प्रकृति ही एकमात्र सुरक्षित रास्ता है।
हमें ध्यान रखना चाहिए कि शरीर व पृथ्वी में पानी का प्रतिशत समान रूप से 70 फीसदी है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा कहती है कि यदि शरीर के 70 फीसदी जल भाग को शुद्ध, संतुलित और सक्रिय कर दिया जाए तो 70 फीसदी रोग स्वतः समाप्त हो सकते हैं। जल चिकित्सा से घर पर रोग ठीक किए जा सकते हैं। निस्संदेह, प्राकृतिक चिकित्सा एक ऐसी स्वास्थ्य पद्धति है जो दवाओं पर निर्भरता कम करती है, जीवनशैली को संतुलित करती है और शरीर की स्व-चिकित्सा क्षमता को बढ़ाती है।
लेखक एग्जिक्यूटिव काउंसिल श्रीकृष्ण आयुष वि.वि, कुरुक्षेत्र के सदस्य हैं।
