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बहुत कुछ कहता है कुदरत का श्वेत पत्र

व्यंग्य/तिरछी नज़र

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शमीम शर्मा

प्रकृति बड़ी साधना से हमारे बालों पर श्वेत रंग की कूची फेरती है, मानो समय का हस्ताक्षर हो। बालों की जो सफेदी कभी अनुभव का रंग हुआ करती वह अब किसी को सहन ही नहीं। श्वेत रंग जीवन की भट्टी में तप कर मिलता है, किसी सस्ती डाई से नहीं। जैसे ही कुदरत हमारे तजुर्बे पर टीका लगाती है तो बालों में सफेदी आती है। बरसों में मिली सफेदी पर हम तीस मिनट में कालिख पोत देते हैं। और बालों की सारी उज्ज्वलता टुकुर-टुकुर निहारती रहती है।

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क्या सफेद बाल कोई दुश्मन है जिसे देखते ही डाई-डाई चिल्लाना पड़ता है। बाल तो रंगे जा सकते हैं पर पर्सनेलिटी नहीं। बाल सफेद हो रहे हैं, सुनकर एक बार तो रूह कांप जाती है, जैसे किसी ने कह दिया हो कि उम्र का बैलेंस खत्म हो रहा है। पर बालों को रंगते ही जिंदगी में रंगत आ जाती है। भगवान ने तो काले, सफेद और भूरे रंग के बाल बनाये थे पर इंसान ने बालों के लिए इतनी शेड बना दी है कि कन्फयूज्ड व्यक्ति को पूछना पड़ता है कौन-सा लगाऊं? सिर्फ तीस मिनट में नया लुक। पर कमीज के कॉलर, तौलिये के कोने और बाथरूम काला-पीला हो जाता है और फिर झेलना पड़ता है सफाई करने वाली या वाले के गुस्से का रंग।

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नवयुवक के सिर पर सफेद पोटली देख किसी ने कहा, आजकल जिस गति से कुंवारों के बाल सफेद हो रहे हैं, भविष्य में शादी के निमंत्रण पत्रों पर मेहंदी की रस्म के साथ छपवाना पड़ेगा— केश रंगाई की रस्म शाम पांच बजे। कई बार बाल जवानी में ही रिटायरमेंट ले लेते हैं। उम्र 21 की पर बाल बुजुर्ग की श्रेणी में खड़ा कर देते हैं। और बालों की सफेदी देखकर कोई न कोई पूछ लेता है कि आपके बच्चे कौन-सी क्लास में हैं? इसी संदर्भ में ये पंक्तियां कहनी बनती हैं :-

सफेदी सिर्फ बुजुर्गों की निशानी नहीं होती,

ये तुम्हारी जिंदगी की अव्यवस्था का रिपोर्ट कार्ड है।

जरूरत इस बात की है कि बाल नहीं दिल भी रंगे जायें क्योंकि दिल में तरह-तरह की कालिख भरी पड़ी है। कभी बालों को सीधा करवाते हैं, कभी घुंघराले। ऊपर से रंग-बिरंगी डाई। पर दिल की गांठों को कभी नहीं खोलना चाहते, न ही दिल की उलझनों को सुलझाना चाहते।

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एक बर की बात है अक सुरजे की सफेद खोपड़ी देखकै नत्थू बोल्या- के बात? इस उमर म्ह बाल क्यूंकर सफेद होगे? बात या है भाई मन्नैं तजुरबा किमें जल्दी ए होग्या।

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