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प्राकृतिक खेती व सरस रिश्ते से बनेगी बात

संपूर्ण ग्राम्य विकास
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कुछ लोग कहते हैं कि प्राकृतिक कृषि से उत्पादन कम होता है, पर मेहनत व सूझबूझ से कार्य किया जाए तो प्राकृतिक खेती में कम खर्च पर भी अच्छा उत्पादन हो सकता है व उत्पादन की गुणवत्ता कहीं बेहतर होती है।

पंजाब, हरियाणा व पश्चिम उत्तर प्रदेश के गांवों को एक समय देश के समृद्ध गांवों में माना गया, पर धीरे-धीरे यह स्पष्ट होता गया कि मिट्टी के प्राकृतिक उपजाऊपन में कमी, जल-स्तर नीचे जाने, पर्यावरण की क्षति, नशे में वृद्धि, जैसे कारणों से यहां की समस्याएं बढ़ रही हैं। समाज-सुधार व संतुलित विकास के मिलन की यहां बहुत जरूरत है, पर इसके अभाव में लोगों के दुख-दर्द कम नहीं हो पा रहे हैं। अतः आज सुधार व विकल्पों पर अधिक ध्यान देने से जरूरत है।

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कृषि में खर्च कम करने पर और प्राकृतिक खेती के प्रसार पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। मिट्टी का प्राकृतिक उपजाऊपन लौटना चाहिए। इसमें उपस्थित केंचुए व सूक्ष्म जीव लौटने चाहिए। जल का अत्यधिक दोहन नहीं करना चाहिए। साथ में वर्षा के जल संरक्षण के उपाय सभी गांवों में अपनाने चाहिए। परागीकरण व अन्य प्राकृतिक क्रियाओं में मददगार कीट पतंगों व पक्षियों की रक्षा होनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि प्राकृतिक कृषि से उत्पादन कम होता है, पर मेहनत व सूझबूझ से कार्य किया जाए तो प्राकृतिक खेती में कम खर्च पर भी अच्छा उत्पादन हो सकता है व उत्पादन की गुणवत्ता कहीं बेहतर होती है।

कम भूमि हो तो भी विविध फसलों का उत्पादन इस तरह के फसल चक्र व मिश्रित पद्धति से होना चाहिए ताकि विभिन्न फसलें एक-दूसरे की पूरक हों। लेखक देश के विभिन्न भागों में ऐसे कितने ही छोटे किसानों से मिल चुका है जो कम भूमि का ही उत्तम उपयोग करते हुए वर्ष में बीस-तीस तरह के उत्तम गुणवत्ता के अनाज, दलहन, तिलहन, सब्जी, फल, मसाले आदि प्राकृतिक पद्धति से उगा रहे हैं व प्रसन्न हैं। किसान कम खर्च की तकनीक अपनाएं तभी कर्ज मुक्त रह सकेगा व किसान का कर्ज मुक्त रहना सबसे जरूरी है।

दूसरी मुख्य बात यह है कि एक समग्र नशा विरोधी अभियान निरंतरता से चलना चाहिए। इसके अंतर्गत महिलाओं के नेतृत्व व युवाओं की भागीदारी से सभी तरह के नशों— शराब, तंबाकू, बीड़ी-सिगरेट, गुटखे, ड्रग, चिट्टे, नशीली दवा आदि के विरोध का अभियान निरंतरता से चलना चाहिए। गांव में ऐसा माहौल बनना चाहिए कि नशे की भावना न्यूनतम हो सके।

गांव में सभी सदस्यों में एकता व भाईचारा बढ़ना चाहिए। सभी आपसी मेलजोल से, व एक-दूसरे का सहयोग करते हुए चलेंगे तो बहुत सी नाहक उत्पन्न हुई समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी, जीवन सुखद हो जाएगा, तनाव कम हो जाएंगे व मिल-जुलकर ग्राम-सुधार के रचनात्मक कार्य करने की संभावना बढ़ जाएगी। महिलाओं को आगे आने व गांव के समाज-सुधार का नेतृत्व संभालने के अवसर अधिक मिलने चाहिए।

शादी-ब्याह, मौज-मस्ती, दहेज, लेन-देन पर जो खर्च बढ़ते जा रहे हैं, उन्हें कम करना बहुत जरूरी है। एक समय था जब गांव समुदाय की पहल पर ही कई सुधार कार्य हो रहे थे पर अब यह कम हो गए हैं व तरह-तरह की फिजूलखर्ची होने के कारण कई परिवार कर्ज के संकट में फंसते जा रहे हैं। हमें जीवन की खुशियों को बेहतर सामाजिक व पारिवारिक संबंधों से प्राप्त करना चाहिए व इसके लिए फिजूलखर्ची पर निर्भर नहीं होना चाहिए।

गांवों में छोटे-मोटे सभी झगड़ों का निपटारा ग्राम स्तर पर न्यायसंगत ढंग से करने का प्रयास करना चाहिए व व्यर्थ की मुकदमेबाजी व झगड़ों को लंबा खींचने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।

कोई भूस्वामी हो या भूमिहीन, इस जाति का हो या उस जाति का, गांव समुदाय के अभिन्न अंग के रूप में सभी को सम्मान मिलना चाहिए व अपेक्षाकृत साधन-सम्पन्न परिवारों का भरसक प्रयास यह होना चाहिए कि यदि गांव में कोई भी परिवार अधिक अभावग्रस्त व समस्याग्रस्त है तो प्राथमिकता के आधार पर उस परिवार की अधिक सहायता की जाए।

पंचायतों व समाज-सुधार संस्थाओं को अधिकतम लोगों की भागीदारी प्राप्त कर सामूहिक भलाई, पर्यावरण रक्षा व समाज-सुधार के अनेक रचनात्मक कार्यों को आगे बढ़ाना चाहिए। एक बड़ी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सामान्य सहमति बनाकर हर तरह की महिला-विरोधी हिंसा को गांव में पूरी तरह समाप्त कर दिया जाए।

इस तरह गांवों में अनेक तनावों व अनेक तरह की क्षति को बहुत कम किया जा सकता है। आश्चर्य है कि जब गांव की व उसके आसपास इतने रचनात्मक कार्यों की संभावनाएं हैं तो इसकी उपेक्षा क्यों हो रही है। इन प्रयासों में बुजुर्गों व युवाओं, महिलाओं व पुरुषों, बच्चों व किशोर-किशोरियों सभी की रचनात्मक भूमिका होनी चाहिए। बुजुर्गों का आशीर्वाद सदा प्राप्त करना चाहिए पर साथ में बुजुर्गों को यह ध्यान रखना चाहिए कि वे सुधार की राह में बाधा न बनें।

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