पुष्परंजन
जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ की वापसी का रास्ता क्या साफ होने लगा है? पाकिस्तान में इसकी कयासकारी होने लगी है। उसकी वजह पाकिस्तान के प्रतिरक्षा मंत्री ख्वाज़ा आसिफ का बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज़ मुशर्रफ की वापसी से शासन को कोई एतराज़ नहीं है। ऐसा नहीं लगता कि वे वतन आयेंगे, तो किसी क़िस्म की रुकावट होगी। रक्षा मंत्री ख्वाज़ा आसिफ ने जनरल परवेज़ मुशर्रफ के परिवार के हवाले से मिली जानकारी के आधार पर कहा कि उन्हें एमाइलाॅयडोसिस जैसी बीमारी है, जो उनके किडनी, लीवर व हृदय को प्रभावित कर चुकी है। उनकी हालत अच्छी नहीं है, और वे वतन लौटने के ख्वाहिशमंद हैं। प्रतिरक्षा मंत्री ख्वाज़ा आसिफ के इस बयान से पहले पाकिस्तान में जुम्मे के रोज़ यह अफवाह ज़ोरों की उड़ी थी कि जनरल साहब दुनिया में नहीं रहे। मगर, इसके बाद सरकार के मंत्री के आधिकारिक बयान ने अफवाहों पर विराम लगा दिया।
जनरल परवेज़ मुशर्रफ 2016 से दुबई में हैं। उनसे अचानक सत्तारूढ़ नवाज़ शरीफ की पार्टी मुस्लिम लीग (एन) की सहानुभूति क्यों हो गई? इस सवाल से पाकिस्तान के विश्लेषक भी वाबस्ता हैं। कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के मुंह की खाने के बाद 12 अक्तूबर 1999 को जनरल परवेज़ मुशर्रफ को हटाना नवाज़ शरीफ ने तय कर लिया था, मगर सेना के समीकरण की वजह से शरीफ स्वयं अपनी सत्ता से हाथ धो बैठे थे। उसके बाद से कभी मुशर्रफ से नवाज़ शरीफ के अच्छे रिश्ते नहीं बन पाये थे। संजोग देखिये, पाक अदालत के आदेश की वजह से नवाज़ शरीफ लंदन में निर्वासन में हैं, बीमार हैं, और वतन वापसी के ख्वाहिशमंद हैं। क्या ऐसा तो नहीं कि दोनों निर्वासित व गंभीर रूप से बीमार नेताओं की वतन वापसी के लिए ‘पहले आप-पहले आप’ के सूरतेहाल बनाये जा रहे हैं?
जनरल परवेज़ मुशर्रफ की वापसी कहीं न कहीं पाक सेना की अस्मिता और सम्मान से भी जुड़ा हुआ है। सेना में अब भी परवेज़ मुशर्रफ के चाहने वाले जनरलों की कमी नहीं है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ इसी बहाने सेना के उन जनरलों का भरोसा जीतना चाहते हैं, जो परवेज़ मुशर्रफ के कैंप के माने जाते रहे। हालांकि परवेज़ मुशर्रफ के समय थ्री स्टार जनरलों की जो चौकड़ी थी, वह अब सेवा में भी नहीं है। जनरल अहसानुल हक़, जनरल अज़ीज़ ख़ान, मोहम्मद अहमद और शाहिद अज़ीज़- ये वो चार जनरल थे, जिन्होंने कारगिल युद्ध की योजना बनाने में जनरल परवेज़ मुशर्रफ का साथ दिया था।
जनरल मुशर्रफ ने पाकिस्तान में सत्ता हरण दो बार किया था। 3 नवंबर 2007 को तत्कालीन राष्ट्रपति मुशर्रफ ने 1973 के संविधान को सस्पेंड कर इमरजेंसी आयद की थी। उस समय मुख्य न्यायाधीश इफ्तिख़ार मुहम्मद चौधरी के कामकाज पर ही अंकुश नहीं लगाया, बल्कि बड़ी अदालत के 61 जजों को पंगु-सा बनाकर रख दिया था। जनरल परवेज़ मुशर्रफ देश के राष्ट्रपति भी थे, और सेना प्रमुख भी। 28 नवंबर 2007 को उन्होंने सेना प्रमुख के पद से अवकाश की घोषणा की और जनरल अशफ़ाक परवेज़ कियानी को चार्ज दिया। उसके अगले दिन 29 नवंबर 2007 को उन्होंने सिविलियन राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली। 15 दिसंबर 2007 को राष्ट्रपति मुशर्रफ ने इमरजेंसी हटाने की घोषणा की थी, उसके बाद का नज़ारा दिलचस्प था। इमरजेंसी हटने के बाद सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और संघीय शरिया कोर्ट के जजों ने दोबारा से शपथ ली थी।
यह रोचक है कि मुशर्रफ ने 1999 में जो सत्ता पलट की, उससे संबंधित मामला उस विशेष अदालत में नहीं चला था। मई 2000 में पाकिस्तान की सर्वोच्च अदालत ने आम चुनाव का आदेश दिया। 20 जून 2001 में जनरल मुशर्रफ ने तत्कालीन राष्ट्रपति रफीक तरार को पद से हटाकर उसपर आसीन हो गये और 18 अगस्त 2008 तक राष्ट्रपति बने रहे। इस पद को वैध बनाने के वास्ते मुशर्रफ ने अप्रैल 2002 में मतसंग्रह भी करा लिया था। अक्तूबर 2002 में आम चुनाव हुए, जिसमें मुशर्रफ को समर्थन देने वाली मुत्तहिदा मज़लिस ए अमाल पार्टी बहुमत में आ गई, उन्होंने समय-समय पर कठपुतली प्रधानमंत्री नियुक्त किये। पूरे नौ साल पाकिस्तान का सैनिक शासन मनमर्जी से सत्ता चलाता रहा।
25 मार्च 2008 को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सत्ता में आ चुकी थी। हालात ऐसे बने कि उसके छह माह बाद, 18 अगस्त 2008 को नौ साल के शासन के बाद जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने अपने पद से अवकाश लेने की घोषणा की। इससे पहले मुशर्रफ के विरुद्ध मामला कोर्ट में जा चुका था। 31 जुलाई 2009 को पाक सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि परवेज़ मुशर्रफ ने 3 नवंबर 2007 को जिस तरह से इमरजेंसी आयद की थी, और संविधान को सस्पेंड किया था, वह अवैध था। लगभग साढ़े चार साल की अदालती लुका-छिपी के बाद 19 नवंबर 2013 को पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ की तत्कालीन सरकार ने तीन सदस्यीय स्पेशल कोर्ट में मुशर्रफ़ के खिलाफ देशद्रोह समेत पांच आरोप दाखिल किये थे।
यह ध्यान मंे रखने की बात है कि सेना के जनरल पांच वर्षों तक कोर्ट पर लगातार दबाव बनाते रहे कि जनरल मुशर्रफ पर आरोपों की सुनवाई मिल्ट्री कोर्ट में हो। इस बीच जनरल मुशर्रफ गंभीर रूप से बीमार पड़ चुके थे। 18 मार्च 2016 को कोर्ट ने उन्हें इस वायदे के साथ दुबई जाने की अनुमति दी कि वे कुछ हफ्तों में इलाज के बाद वतन लौट आएंगे। मगर, ऐसा कुछ हुआ नहीं। विशेष अदालत को उन्हें भगोड़ा घोषित कर सज़ा वाली कार्यवाही आगे बढ़ानी पड़ी। मुशर्रफ, दुबई इलाज के बहाने गये, वह भी एक सोची-समझी रणनीति थी, क्योंकि पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पण संधि नहीं है।
17 दिसंबर 2019 को विशेष अदालत परवेज़ मुशर्रफ को मृत्युदंड सुना चुकी है। मुशर्रफ को सज़ा-ए-मौत को पाक सेना ने अपना अपमान मान लिया था। तब पाक सेना का मीडिया विंग ‘आईएसपीआर’ ने अपने आधिकारिक बयान में कहा था कि जनरल मुशर्रफ कभी देशद्रोही नहीं थे। स्पेशल कोर्ट का यह फैसला बहुत ही दुखद है। अब सवाल यह है कि परवेज़ मुशर्रफ वतन वापिस आते हैं, तो क्या उन्हें सज़ा-ए-मौत दी जा सकती है? पाक संविधान का अनुच्छेद-45 वहां के राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वे मृत्युदंड को क्षमादान में परिवर्तित कर दें। इस्लामाबाद में जो लोग सत्ता के गलियारे की टोह लेते हैं, उन्होंने संकेत दिया है कि क्षमादान की एक अर्जी जनरल मुशर्रफ़ की ओर से राष्ट्रपति कार्यालय को भेजी जा चुकी है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति डाॅ. आरिफ अल्वी का जिस समय क्षमादान पर हस्ताक्षर होता है, मुशर्रफ़ की पाकिस्तान वापसी पर मुहर लग जाएगी।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नई दिल्ली संपादक हैं।