रक्षा आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी अधिक वित्तीय संसाधन
ऑपरेशन सिंदूर ने हमारे सशस्त्र बलों के बीच अधिक एकीकरण और आत्मनिर्भरता पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इस संदर्भ में हाल ही में कोलकाता में संयुक्त कमांडरों को प्रधानमंत्री का संबोधन कई दृष्टिकोणोंं से महत्वपूर्ण है। हालांकि रक्षा उत्पादों में आत्मनिर्भरता के लिए वित्तीय आवंटन बढ़ाना भी जरूरी है।
कोलकाता में 15 सितंबर को आयोजित 16वें संयुक्त कमांडर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में दिया एक संदर्भ बहुत अहम है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह पहली बार था जब प्रधानमंत्री सेना के शीर्षस्थ अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे।
जहां इस ऑपरेशन को बड़ी सफलता के रूप में सराहा गया- चंद आरंभिक असफलताओं के बावजूद - वहीं इसने भारत की सुरक्षा के शीर्ष निर्धारकों के विचारार्थ एक नई सामान्य और परिचालन चुनौती पेश की है। वह है, परमाणु ब्लैकमेल एवं आतंकवाद के बीच संबंध- एनडब्ल्यूईटी (परमाणु हथियार सक्षम आतंकवाद) सिंड्रोम - और ऐसे कई अन्य पहलू, जिन पर उद्देश्यपूर्ण समीक्षा करने की जरूरत है।
ऑपरेशन सिंदूर अभी समाप्त नहीं हुआ और जारी है, अर्थात सेना अभी भी चौकस है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान नए क्षेत्रीय भू-राजनीतिक और रणनीतिक नाते सामने आए, विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान सहयोग, जो अब सामरिक गठबंधन का रूप धर चुका है और इस जुगलबंदी से अगली किसी युद्धक आपात स्थिति में नई चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं। इसके अलावा, टैरिफ को लेकर अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों में हालिया तनाव ने समुद्री क्षेत्र में सहयोग के भविष्य को लेकर, खासकर क्वाड का भविष्य, काफी अनिश्चितता खड़ी कर दी।
हालांकि, इन जटिलताओं और चुनौतियों पर इस सम्मेलन में चर्चा नहीं की गई और प्रधानमंत्री का संबोधन (जैसा कि प्रेस सूचना विभाग द्वारा जारी किया गया) का सार अपेक्षाकृत संक्षिप्त था - मात्र 275 शब्दों का। इसकी इबारत चिर-परिचित थी और विषयवस्तु रक्षा सुधारों, परिचालन तत्परता और उभरते सुरक्षा परिदृश्य पर केंद्रित रहा। साल 2025 के इस सम्मेलन का मुख्य विषयवस्तु था ‘सुधारों का वर्ष - भविष्य के लिए रूपांतरण’ और इसके लिए संयुक्तता, आत्मनिर्भरता और नवाचार पर चर्चा हुई।
मोदी के आह्वान का निहितार्थ महत्वपूर्ण और निर्देशात्मक है, कि उन्होंने रक्षा मंत्रालय को थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच ‘अधिक एकीकरण’ (जोर दिया शब्द बाद में जोड़ा गया) बनाने की पहलों में तेजी लाने और स्वदेशी तकनीक एवं नवोन्मेष को बढ़ावा देने का निर्देश दिया। वहीं यह भी कहा कि ऑपरेशन सिंदूर में मिली सफलता तीनों सेनाओं के बीच तालमेल का प्रमाण है।
ये दो नीतिगत मुद्दे, जैसे युद्ध क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए तीनों सशस्त्र बलों के बीच अधिक संयुक्तता; और आत्मनिर्भरता में स्पष्ट दिखाई देने वाली प्रगति। यह दोनों 2014 में पदभार ग्रहण करने के बाद से ही मोदी के ध्यान में रहे और इसके लिए की गई प्रमुख पहलों का श्रेय उन्हें जाता है। इनमें, 2019 में सीडीएस (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) पद का सृजन और रक्षा मंत्रालय में डीएमए (सैन्य मामलों का विभाग) की स्थापना शामिल है ताकि भूलभुलैया सी जटिल निर्णय प्रणाली में वर्दीधारी बिरादरी की भागीदारी भी हो सके।
हालांकि, इन दोनों निर्णयों के परिणाम उस तरह का नहीं रहा, जिसकी परिकल्पना बनाते समय की गई थी और इसपर पीएम मोदी के कोलकाता संबोधन के संदर्भ में प्रारंभिक समीक्षा को तरजीह देना बनता है। कमानों के बीच एकता, बहुत सम्मानित सैन्य सिद्धांत रहा है, लेकिन भारतीय संदर्भ में, 1965 से यह तीनों सशस्त्र बलों के बीच तीखी बहस का विषय रहा। सार यह कि जहां थलसेना इसकी प्रबल समर्थक है और नौसेना इस अवधारणा का अनुमोदन करती है वहीं वायु सेना को मोदी सरकार द्वारा बनाई गई उस रणभूमि संयुक्त कमान व्यवस्था पर किंतु-परंतु है।
भारत ने सितंबर 2024 में लखनऊ संयुक्त कमांडर सम्मेलन (जेसीसी) के दौरान औपचारिक रूप से एकीकृत युद्ध संचालन कमान (आईटीसी) की स्थापना की घोषणा की थी, जिसमें सशस्त्र बलों ने तीन प्रस्तावित आईटीसी - उत्तरी (चीन पर केंद्रित), पश्चिमी (पाकिस्तान पर केंद्रित), और समुद्री (हिंद महासागर क्षेत्र के लिए) बनाने का विस्तृत खाका और तौर-तरीके सरकार की मंजूरी के लिए पेश किए थे।
हालांकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद, वायुसेनाध्यक्ष एपी सिंह ने उस मौजूदा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करने के प्रति आगाह किया है, जिसमें प्रत्येक सेवा प्रमुख का अपने तहत आते बल पर पूर्ण परिचालन नियंत्रण है। अनेक सैन्य सामग्री की कमियों से जूझ रही वायुसेना की क्षमता, जिसने भारतीय वायु शक्ति को घटा रखा है, इस पर ‘जब कुछ टूटा ही नहीं है, तो जोड़ना किसको है?’ वाली कहावत लागू होती दिखाई देती है। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता को वर्तमान परिचालन व्यवस्था (कुल 17 सैन्य कमानों का मिला-जुला अंतर-सेना मंच) के संतोषजनक ढंग से काम को मिसाल के रूप में देखा जा रहा है।
मौजूदा सैन्य कमान संरचनाओं को युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता कोई नया मुद्दा नहीं और यहां याद किया जा सकता है कि मनमोहन सिंह ने 2013 के अंत में संयुक्त कमांडरों को बतौर प्रधानमंत्री अपने अंतिम संबोधन में ‘उच्च रक्षा प्रबंधन हेतु सही संरचनाओं की स्थापना और हमारी जटिल सुरक्षा की मांग के अनुरूप निर्णय लेने में समुचित नागरिक-सैन्य संतुलन स्थापना में तत्काल एवं ठोस प्रगति’ की जरूरत पर बल दिया था। उन्होंने आगे कहा था: ‘मैं आपको इसपर सर्वोच्च पेशेवराना चिंतन करने, विभिन्न रक्षा सेवाओं के बीच मतभेदों पर सहमति बनाने और भविष्य के लिए रूपरेखा तैयार करने को प्रोत्साहित करता हूं। मैं विश्वास दिलाता हूं कि राजनीतिक नेतृत्व आपकी सिफारिशों पर अत्यंत सावधानीपूर्वक विचार करेगा’।
उम्मीद है, इस मुद्दे को आंतरिक रूप से सुलझा लिया जाएगा और निकट भविष्य में एक सर्वसम्मत समाधान निकल आएगा। यह मुद्दा जटिल और बहुस्तरीय है और पेशेवर फौज और विधायिका, दोनों के बीच इसपर बेबाक और सूचनायुक्त नीतिगत चिंतन किए जाने की जरूरत हैैै।
रक्षा साजो-सामान में आत्मनिर्भरता बनाना एक पुराना ध्येय है और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1980 के दशक की शुरुआत में सीसीसी और डीआरडीओ को स्वदेशी प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया था और यहीं से आईजीएमडीपी (एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास परियोजना) की उत्पत्ति हुई,जिसके परिणामस्वरूप अंततः अग्नि मिसाइलों को सफलता मिली। यही वह दौर भी था जब परमाणु अधीनता का विरोध करने के कारण अमेरिकी नेतृत्व वाले पश्चिमी जगत ने भारत पर कड़े तकनीकी प्रतिबंध लगा रखे थे।
पीएम मोदी की सराहना इसके लिए बनती है कि उन्होंने 'आत्मनिर्भरता' के ध्येय से नज़र नहीं हटाई - लेकिन यह ठोस रूप से आगे नहीं बढ़ पाया। मसलन, भारत का तेजस नामक एलसीए विकसित करने के लिए एचएएल को 1983 में मंजूरी दी गई थी व अब जाकर अक्तूबर 2025 में, पहली मिसाइल फायरिंग होने वाली है।
रक्षा क्षेत्र में सार्थक आत्मनिर्भरता को पोषित करने में सबसे महत्वपूर्ण कारक होता है, सैन्य अनुसंधान एवं विकास के लिए सतत वित्तीय और तकनीकी सहायता, और यहां इस मद में भारतीय आवंटन मामूली है। 2024 के अनुमान के अनुसार, अमेरिका ने 131 बिलियन डॉलर, चीन ने 32 बिलियन डॉलर तो भारत ने महज 5 बिलियन डॉलर आवंटित किए। इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
और एक मुद्दा जिसे गैर-महत्वपूर्ण समझकर पीएम मोदी के संबोधन में नज़रअंदाज़ किया गया : ख़ुफ़िया तंत्र में सुधारों की आवश्यकता। जहां ऑपरेशन सिंदूर की सफलता सराहनीय है वहीं पहलगाम आतंकी नरसंहार क्यों हुआ और इसके लिए नीतिगत सुधारों की जरूरत स्वीकार की जानी चाहिए। कोलकाता में इस किस्म की वास्तविकता पर पड़ताल वांछनीय थी।
लेखक रक्षा संबंधी मामलों के विशेषज्ञ हैं।