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मोदी और केरल में ईश्वर का हाथ

द ग्रेट गेम
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आप कल्पना कर सकते हैं कि भाजपा इतनी खुश क्यों है। राजधानी दिल्ली समेत, उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में जीत हासिल करने के बाद उसे पता है कि अब दक्षिणी मोर्चे में भी सेंध लगाना जरूरी हो गया है।

ज्योति मल्होत्रा

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मध्यवर्गीय भारत का बिगड़ैल लाल यानी तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर इन दिनों एक लघु तूफान में फंसे हुए हैं, और यह सब इंडियन एक्सप्रेस के साथ 45 मिनट के पॉडकास्ट में मलयालम में उनके कहे चार शब्दों वाले एक वाक्य की वजह से है ‘मेरे पास दूसरे विकल्प हैं।’ चार बार के सांसद थरूर 2009 में किए गए अपने ट्वीट ‘मैं हमारी सभी पवित्र गायों का साथ देने के लिए कैटल क्लास में यात्रा करने जा रहा हूं’, जिसने मितव्ययिता के नारे के इर्द-गिर्द घड़े पाखंड के असामान्य प्रदर्शन पर तंजकर देश को खूब हंसाया था, उस वक्त के बाद से वे एक लंबा सफर तय चुके हैं– हालांकि, खुद सोनिया गांधी ने ऐसी शब्दावली के लिए उनकी ताड़ना की थी।

हो सकता है थरूर की टिप्पणियों पर उठा नवीनतम विवाद भी सप्ताहांत तक ठंडा पड़ जाए, खासकर जब केरल कांग्रेस के नेताओं और पार्टी आलाकमान के बीच 2026 में केरल के आगामी चुनाव को लेकर होने वाली तैयारी बैठक होगी, और सांसद की आहत हुई भावना को शांत करने का प्रयास किया जाए। पार्टी के सभी गुटों के बीच एकता दिखाने की बात पहले ही कही जा रही है।

वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी, वहां से पूर्व सांसद और उनके भाई राहुल गांधी और कांग्रेस संगठन के प्रभारी महासचिव और अलपुझा से सांसद केसी वेणुगोपाल–इस पुरानी पार्टी में सबसे शक्तिशाली तिकड़ी- निश्चित रूप से अपने चुनावी अभियान की अगुवाई इस पेशकारी से करेंगे ‘भगवान के अपने देश में सब ठीक है और कांग्रेस अगले साल सत्ता में वापस आएगी।’

सिवाय इसके कि दक्षिणी राज्य में मंथन चल रहा है और अरब सागर की फ़िजां इन दिनों कुछ बदली-सी है। पिछले हफ्ते कोचीन में हुए निवेशक शिखर सम्मेलन में भाजपा नेता पीयूष गोयल और केरल के मुख्यमंत्री और सीपीआई (एम) नेता पिनाराई विजयन को दिल खोलकर हंसते हुए देखा गया। कुछ ही दिनों बाद, सीपीएम ने केरल की अपनी सभी पार्टी इकाइयों को एक नोट भेजा, जिसमें बताया गया कि पार्टी मोदी सरकार को ‘फासीवादी या नव-फासीवादी’ क्यों नहीं बता रही।

इसमें कोई संदेह नहीं कि यह टिप्पणी 6 मार्च को कोल्लम में होने जा रहे सीपीएम के 24वीं पार्टी सम्मेलन में बहस के केंद्र में होगी। कुछ लोगों का कहना है कि यह पार्टी में शक्तिशाली प्रकाश करात गुट द्वारा अपनाई कांग्रेस विरोधी नीति की वापसी है- पिछले सितंबर में सीताराम येचुरी की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के बाद, जिन्होंने हमेशा विपक्षी एकता के लिए जोर दिया और मानते थे कि कांग्रेस पार्टी इसका धड़कता दिल है। इसलिए इन दिनों केरल में थरूर की महत्वाकांक्षाओं से बड़ा सवाल यह है कि क्या वामपंथी भाजपा के प्रति नरम रुख अपना रहे हैं? और क्या वे कोल्लम पार्टी सम्मेलन में भाजपा को नहीं, बल्कि कांग्रेस को वामपंथ का मुख्य राजनीतिक दुश्मन बताने की ओर लौटेंगे– यह सब इसलिए क्योंकि राज्य में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ इसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी है?

तो कल्पना कीजिए कि इस सोच की कितनी संभावना है, खासकर जब भाजपा दक्षिण भारत में अपनी जगह बनाने के वास्ते कड़े प्रयास कर रही है। क्या विजयन और नरेन्द्र मोदी केरल में कांग्रेस को खत्म करने के वास्ते सच में एकजुट हो सकते हैं, भले ही यह पूरी तरह से पर्दे के पीछे हो? प्रिय पाठक, इस विचार को जरा यहीं थामकर रखें, क्योंकि अभी और भी बहुत कुछ बाकी है। हाल ही में इंडिया टुडे मूड ऑफ द नेशन सर्वे ने हैरान किया कि केरल में भाजपा का वोट शेयर हर दिन बढ़ रहा है- लोकसभा चुनाव में उसे 17 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन यदि आज चुनाव हों तो यह 24 प्रतिशत हो सकता है। और वोट शेयर में 2 प्रतिशत की गिरावट के साथ वामपंथियों को नुकसान होगा।

आप कल्पना कर सकते हैं कि भाजपा इतनी खुश क्यों है। राजधानी दिल्ली समेत, उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में जीत हासिल करने के बाद- हिमाचल प्रदेश की चार सीटें अपने पास होने और पंजाब की 13 सीटों पर अगली नज़र के साथ- उसे पता है कि अब दक्षिणी मोर्चे में भी सेंध लगाना जरूरी है। कुछ समय से तमिलनाडु पर ध्यान केंद्रित होने की वजह से जाहिर है केरल में विस्तार पर जोर कम रहा।

केरल के सर्वप्रिय गुरुवायूर मंदिर गृहक्षेत्र त्रिशूर से पिछले साल पूर्व अभिनेता सुरेश गोपी ने लोकसभा सीट जीतकर भाजपा के खिलाफ रही केरल की वर्जना को तोड़ा था। पार्टी का मानना है कि नायर समुदाय, जो कभी वामपंथियों की रीढ़ हुआ करता था, बहुत जल्द उसकी तरफ झुक जाएगा। भाजपा अपनी इन उम्मीदों में गलत नहीं है। यहां तक कि पिछले कुछ दशकों से केरल के मध्यवर्ग को कट्टर वामपंथी होने के बावजूद पास के मंदिर में जाकर दीया जलाने में कुछ भी गलत नहीं दिखता।

बड़ी समस्या, ज़ाहिर है, यह है कि भाजपा के पास अभी भी राज्य में नेतृत्व करने के लिए कोई उचित चेहरा नहीं है- पूर्व आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर काफी पढ़े-लिखे हैं और थरूर से तिरुवनंतपुरम छीन भी सकते थे, सिवाय इसके कि उन्होंने ऐसा किया नहीं। इसलिए जब चार बार के कांग्रेस सांसद ने पिछले हफ़्ते कहा ‘अगर पार्टी मेरी ताकत का इस्तेमाल करना चाहती है, तो मैं बना रहूंगा, अगर नहीं, तब मेरे पास दूसरे विकल्प हैं’, तो पूरे देश में चटपटी राजनीतिक चर्चा छिड़ गई। तो क्या थरूर कांग्रेस छोड़कर भाजपा या वामपंथ में शामिल होंगे? क्या वे कांग्रेस के भीतर ज़्यादा जगह बनाने को कसमसा रहे हैं, उदाहरण के लिए, मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनने की खातिर दबाव डालना? ऐसे में केरल की तिकड़ी–प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और वेणुगोपाल- क्या थरूर को मनाने में भूमिका निभाएगी? क्या संयुक्त राष्ट्र के पूर्व राजनयिक भारतीयता के आकर्षण को त्यागकर न्यूयॉर्क वापस लौट जाएंगे, और अपनी 30वीं किताब लिखेंगे?

तथ्य यह है कि भले ही केरल में थरूर की ज़मीनी पकड़ रमेश चेन्निथला, वीडी सतीसन और केसी वेणुगोपाल जैसे नेताओं जितनी मज़बूत न हो, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर वे ही हैं, न कि ये तीनों- वेणुगोपाल भी नहीं, हालांकि, उन्हें गांधी परिवार का मज़बूत समर्थन हासिल है। बेशक, यह कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी, लेकिन अगर रामचंद्र गुहा जैसे बुद्धिजीवी थरूर का समर्थन कर रहे हैं, तो केरल में भी ज़मीन थोड़ी बदल सकती है।

बिना शक यह दलील सबको पता है। यह उस व्यक्ति का साथ देने जैसा है जो ठंडे मुल्क से केवल 2009 में आया और फिर भी चार बार लोकसभा सीट जीतने में सक्षम रहा –यह उपलब्धि कोई छोटी नहीं है। इसके अलावा थरूर वेणुगोपाल नहीं हैं, जिनके सिर पर ईश्वर का वरदहस्त है।

निश्चित रूप से, कांग्रेस को प्रथम परिवार की सख्त पकड़ से ढीला करना होगा, जो पार्टी की रोजाना की राजनीति की हर करवट और हरकत का दम घोंट रही है। शशि थरूर की महत्वाकांक्षा–भले ही उनको प्रभावशाली ईसाई एवं हिंदू समुदायों का समर्थन हासिल न हो –इस ओर एक स्वस्थ कदम है। इसी बीच, भाजपा दिनो-दिन अपना भारी-भरकम विजयरथ विन्ध्य पर्वतमाला के पार ले जाने में जोर लगा रही है।

लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं।

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