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भीड़ का तंत्र और भाड़ का मंत्र

तिरछी नज़र
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शमीम शर्मा

आमतौर पर हम गुस्से में सामने वाले को जरूर कहते हैं कि भाड़ में जा। पहली बात तो यह जानना कठिन है कि किसी को भाड़ में भेज कर हमें क्या मिलता है। दूसरी बात यह कि आज की तारीख में युवा पीढ़ी को पता ही नहीं होगा कि भाड़ होता क्या है। ‘भाड़’ शब्द भड़भूजा से निकला है और भड़भूजा उसे कहते हैं जो भाड़ में चने, मक्की, जौ आदि भूनने का काम करता है। तो भाड़ का मतलब है वह भट्ठी जहां चने आदि भूनने का काम किया जाता है। यह भट्ठी यानी भाड़ बड़े आकार की होती है और अगर वहां कोई व्यक्ति चला जाये तो वह जलकर खाक हो जायेगा। ‘भाड़ में जा’ इसीलिये कहा जाता है कि नष्ट हो जा और मुझे परेशान मत कर।

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कभी-कभार एकाध चना बर्तन से उछल कर भाड़ में गिरकर तेज आंच में झुलस जाता है। तब यह कहावत बनी होगी कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता। अर्थात‍् अकेला आदमी दूसरों के सहयोग के बिना बड़ा काम नहीं कर सकता। पर दशरथ मांझी जैसे लोगों ने इस कहावत को झुठला दिया था जिसने अकेले अपने दम पर पूरे बाईस साल तक छैनी-हथौड़ी से पर्वतों को काटकर राह बना डाली। यह काम लोहे के चने चबाने जैसा दुसाध्य कार्य था।

चुनौतियों से लड़ने का हौसला हो तो व्यक्ति हर परिस्थिति के भाड़ को फोड़ने का दम रखता है पर हमारे नेता दशरथ मांझी को मिसाल मानने की बजाय इस बात में यकीन रखते हैं कि अकेला चना तो भाड़ नहीं फोड़ सकता पर कई चने मिल जायें तो भट्ठी की एक-एक फट्टी उखाड़ी जा सकती है। इसी मंतव्य से वे इकट्ठे तो हो जाते हैं पर लम्बे समय तक उन्हें एक साथ रखना तराजू में मेढक तौलने जैसा असंभव कार्य है। इसमें कोई शक नहीं है कि एक और एक जब ग्यारह बनते हैं तो नाकों चने चबवाने की ताकत आ ही जाती है।

चने पर याद आया कि एक कहावत और है—थोथा चना बाजे घना यानी कि जिस व्यक्ति के पल्ले कुछ भी नहीं है, वह अपनी शेखी बघारने में लगा रहता है। चुनावी वेला में हर छुटभैया नेता थोथे चने की तरह बज तो खूब रहे हैं पर वे कानफाड़ू शोर से ज्यादा कुछ नहीं हैं। मेरा तो जनता को सुझाव है कि भाड़ में चाहे चले जाना पर भाड़े पर बुलाई भीड़-भाड़ वाली जगह पर मत जाना।

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एक बर की बात है अक बैंक के क्लर्क नैं फोन पै नत्थू ताहीं गुस्से मैं कह दिया अक भाड़ मैं जा। या बात सुणकै मनेजर क्लर्क तै धमाकाण लाग्या अर बोल्या- इसी भूंडी बात नहीं कही जाती, माफी मांग। क्लर्क नैं फेर फोन मिलाया अर बोल्या- भाई नत्थू ईब भाड़ मैं जान की टाल कर दिये।

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