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गति से दुर्गति और यमलोक एक्सप्रेस-वे

व्यंग्य/तिरछी नजर
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शमीम शर्मा

सड़क पर मरने वालों का आंकड़ा सुनकर लगता है कि सड़कें परमधाम का मार्ग बन गई हैं। ये सड़कें यमलोक का एक्सप्रेसवे हैं। यही कारण है कि यमराज का स्कोर हर दिन बढ़ता ही जा रहा है। यूं सड़क पर चलना तो हिमालय पर जप-तप करने जैसा कष्टकारी हो गया है।

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यमराज भी आजकल हैरानी से कहते होंगे कि पहले तो लोग बुढ़ापे में टसकते हुए आया करते पर आजकल तो छोटी उम्र वाले युवा आते हैं। वो भी खुद चलकर नहीं, एंबुलेंस में लेट कर। अब तो युवा पीढ़ी का यमराज के साथ ही उठना-बैठना होता है।

ट्रैफिक सिग्नल पर तो लगता है कि यमराज आने-जाने वालों को कह रहे हैं कि बिना हेलमेट पहने स्पीड से बाइक उड़ाते हुए क्यों मेरी गोद में आ रहे हो। युवाओं ने मान ही लिया है कि हेलमेट तो पापा लोगों के लिये होता है। वे डर को सड़क पर छोड़कर जान हथेली में ले लेते हैं। बात सीधी और साफ है कि हेलमेट सिर्फ सिर नहीं बचाता, घर की हंसी-खुशी भी बचाता है। सेफ्टी मंत्र यही है कि सीट बेल्ट लगाओ और यमराज से अप्वाइंटमेंट कैंसिल करो।

हर लेन में स्पीड में झूमता वीडियो फेम स्टंटबाज। हर सड़क पर बिना हेलमेट के तेज बाइकिया, हर चौराहे पर मोबाइल में खोया कार वाला। बाइक या कार चलाते हुए लोग तो मानो यमराज का नंबर ढूंढ़ रहे हैं। भाई लोगो! मोबाइल पर बात करनी है तो पहले रुक जाओ वरना अगली कॉल सीधी ऊपर से आयेगी।

अगला मोड़ आखिरी हो या नहीं, यह किस्मत नहीं, लापरवाही तय करती है। ऐसे लगता है कि जैसे लोग नहीं, यमराज खुद गाड़ी चला रहे हों। मानना पड़ेगा कि गति ही दुर्गति है। यमराज भी श्ाताब्दियों से काम करते-करते थक गये हैं। इसलिये कहते हैं- पहले मैं लेने आता था, अब लोग खुद ही चले आते हैं- सीट बेल्ट छोड़, हेलमेट फेंक और मोबाइल थाम। अब एक्सीडेंट हादसा नहीं, एक चुना हुआ रास्ता बन चुका है। या तो अपनी रफ्तार पर ब्रेक लगाओ या फिर यमराज को अपना ड्राइविंग पार्टनर बना लो। सीधा ले जायेगा। यही कारण है कि अब यमराज भैंसे पर नहीं आता।

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एक बर की बात है अक नत्थू नै चैराहे पै अपणी साइकल रामप्यारी ताई कै ठोक दी। रामप्यारी कराहते होये बोल्ली- हां रै बेट्टा! घंटी नी मार सकै था? नत्थू बोल्या- ताई! तेरै पूरी साइकल मारी, तसल्ली कोन्या होई? घंटी की कसर रहैगी?

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