मुख्य समाचारदेशविदेशहरियाणाचंडीगढ़पंजाबहिमाचलबिज़नेसखेलगुरुग्रामकरनालडोंट मिसएक्सप्लेनेरट्रेंडिंगलाइफस्टाइल

नेता की दृष्टि वक्र और फिक्र का जिक्र

तिरछी नज़र
Advertisement

विनय कुमार पाठक

कलमदास बड़े चिंतित हैं अभी। उनकी चिंता की वजह हमारे जनप्रतिनिधियों की तबीयत को लेकर है। समाचार आ रहा है कि प्रदूषण को रोकने के लिए वे अभी से ही सक्रिय हो गए हैं और लगातार तीन दिनों से यह समाचार आ रहा है। यह जनप्रतिनिधियों के स्वभाव के बिलकुल विपरीत है। हमारे जनप्रतिनिधि तो सांप के बिल में जाने के बाद बड़े ज़ोर से सांप द्वारा बनाई गई लकीर को लाठी से पीटने के आदी हैं। किसी भी परिणाम के लिए वे विरोधी को कारण बनाने में माहिर हैं। यदि वे अभी से कुछ कदम उठाने की बात कर रहे हैं तो कहीं न कहीं उनके मस्तिष्क पर किसी घटना से बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।

Advertisement

अभी तो बरसात में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जो हर साल होती हैं जिन पर उन्हें ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सड़क का टूटना, पूल का बहना, गड्ढों और सड़क में गठबंधन होना, नाला जाम होना, नाले में गिरकर लोगों का मरना और न जाने कितनी बातें हैं जिसके लिए आरोप-प्रत्यारोप का वेब सीरीज चलाया जा सकता है। फिर क्यों अभी से ये प्रदूषण के लिए चिंतित हो रहे हैं।

जब प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता, तथा प्रदूषण के मामले में फिर हमारे देश के शहर सूची में सबसे ऊपर आ जाते तो फिर ऐसा किया जाता। फिर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता। उसके बाद पराली की निराली गाथा का वर्णन होता। दिवाली पटाखों पर ठीकरा फोड़ा जाता। हवा के षड्यंत्र करने की बातें होती कि वह पड़ोसी राज्य, जहां विरोधी दल की सरकार है से प्रदूषण लेकर आ रही है।

जो सत्ता में नहीं हैं वे पराली के निस्तारण का काम कितना आसान है, यह बताते। साथ ही यह जताते कि उनकी सरकार आएगी तो प्रदूषण की समस्या कोई समस्या नहीं रहेगी क्योंकि अन्य इतनी समस्याएं वे ला खड़ी करेंगे कि प्रदूषण की समस्या बहुत छोटी समस्या लगने लगेगी। जो सत्ता में हैं वे प्रदूषण को शत प्रतिशत विरोधियों की चाल बताते। अगर ऐसा होता तो यह सामान्य बात होती।

पर अभी से, जब कि एक्यूआई सौ से भी नीचे है, प्रदूषण की चिंता करना कहीं न कहीं हमारे जनप्रतिनिधियों के तबीयत खराब होने का सूचक है। जनप्रतिनिधि चूंकि जन का बहुत ख्याल रखते हैं, जन का भी दायित्व है कि अपने प्रतिनिधि का ख्याल रखे। जन का अंश होने के नाते यही काम कलमदास भी कर रहे हैं। और ठीक जन प्रतिनिधि की शैली में कर रहे हैं। अर्थात‍् फिक्र से ज्यादा फिक्र का जिक्र कर रहे हैं।

Advertisement
Show comments