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सीमाओं की आंतरिक सुरक्षा की चुनौती का मुकाबला

वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम

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वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत, पहली प्राथमिकता सीमावर्ती राज्यों से स्थानीय पलायन रोकनेे, दूसरे सीमावर्ती राज्यों के निवासियों को केन्द्र-राज्य सरकारों के कार्यक्रमों का शत-प्रतिशत लाभ मिले। तीसरा सीमा व उसकी सुरक्षा को और मजबूत किया जाए।

भारत की हजारों किलोमीटर की सीमा कई देशों से लगती है जिनमें चीन,म्यांमार, पाकिस्तान और बांग्लादेश ऐसे हैं जहां से हमारे लिए खतरा है। इन सीमाओं की रक्षा के लिए भारतीय सेना व सीमा सुरक्षा बल मजबूती से तैनात है। लेकिन एक नई आंतरिक समस्या सिर उठा रही है। यानी दुश्मन हमें भीतर से कमजोर करना चाहता है। इसके तहत सीमावर्ती इलाकों में वह अपने लोग तो बसा ही रहा है, हमारे इलाकों में कई तरह के ढांचे तैयार करवाने की कोशिश कर रहा है। समस्या यह है कि उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कठिन जीवन होने के कारण वहां से बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है और कई महत्वपूर्ण जगहों पर तो स्थानीय निवासी हैं ही नहीं। उत्तराखंड में तो यह बहुत बड़ा सिरदर्द है जहां 275 किलोमीटर की सीमा चीन से लगती है। वहां के गांवों में बड़े स्तर पर पलायन से वहां सन्नाटा है और दुश्मन के लिए मौका है। ऐसा ही खतरा पंजाब और बंगाल में है जहां दुश्मन बहुत सक्रिय है।

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बांग्लादेश से लगती बंगाल, त्रिपुरा और असम के सीमावर्ती इलाकों में तो डेमोग्राफिक बदलाव देखे जा रहे हैं। वहां सीमा पर धार्मिक ढांचे भी बनाये जा रहे हैं। जिससे सीमा की सुरक्षा को खतरा है। इन राज्यों में बड़े पैमाने पर बांग्लादेशियों और यहां तक कि रोहिंग्याओं का घुसपैठ होता रहा है और इन्हें इन धार्मिक स्थानों में शरण तक मिल जाती है। यह खतरे की घंटी है क्योंकि इससे हमारी सीमाएं असुरक्षित हो जाती हैं। इसे ध्यान में रखकर ही गृह मंत्रालय ने बंगाल सहित सत्रह राज्य सरकारों को पत्र लिखा है और उनसे फौरन कार्रवाई करने को कहा है। इतना ही नहीं गृह मंत्री ने बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान वगैरह देशों से सटे राज्यों की सरकारों को कहा है कि वे सीमा के अंदर 30 किलोमीटर तक बने अवैध धार्मिक ढांचों को गिरा दें।

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दरअसल आसन्न खतरे को देखते हुए भारत सरकार और गृह मंत्रालय ने अपनी नीति में अग्रसक्रिय यानी पहले ही सक्रिय हो जाने की नीति अपनाई है ताकि किसी तरह की विपरीत समस्या से मुकाबला करने का अवसर न आये। डेमोग्राफिक चेंज यानी जनसांख्यिकीय बदलाव देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है और यह स्वाभाविक रूप से नहीं हुआ है। इससे दुश्मन को मदद मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर से यह मुद्दा उठाया था और कहा था कि सीमावर्ती राज्यों में एक साजिश के तहत जनसांख्यिकीय बदलाव किया जा रहा है। यह देश की सुरक्षा को बड़ा खतरा है। इसका मुकाबला करने के लिए प्रधानमंत्री ने उच्च अधिकार वाली जनसांख्यिकी बदलाव मिशन तैयार करने की घोषणा भी की ताकि स्थानीय आबादी को बाहर वालों से बदलने की साजिश को रोकें।

इस रणनीति के तहत हाल ही में दो दिनी वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम वर्कशॉप किया गया। इसमें गृह मंत्री ने जिला कलेक्टरों से आग्रह किया कि वे अपने-अपने जिलों में सीमा से 30 किलोमीटर तक के अवैध धार्मिक ढांचों को ढहा दें। यह रणनीतिक कदम समस्या खड़ी होने से पहले उठा लिया जाए।

जीवंत गांव कार्यक्रम यानी वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम तीन बिंदुओं पर आधारित हैं। पहला तो यह है कि सीमावर्ती राज्यों से स्थानीय पलायन रोका जाये। दूसरे सीमावर्ती राज्यों के निवासियों को केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों का शत-प्रतिशत लाभ मिले। तीसरा यह है कि इस प्रोग्राम के तहत सीमा और उसकी सुरक्षा को और मजबूत करने के उपाय किये जायें। इस कार्यक्रम के तहत पहले से चिन्हित गांवों को जल्दी ही राष्ट्रीय और सीमा सुरक्षा के केन्द्र में लाया जायेगा। सरकार वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देगी। साथ ही वहां की संस्कृति को बनाये रखने में मदद करेगी। इन इलाकों में पर्यटन के जरिये रोजगार सृजित होंगे। अरुणाचल प्रदेश में तो कार्यक्रम कार्यान्वयन से कई सीमावर्ती गांवों में जनसंख्या में बढ़ोतरी भी हुई है।

इस जीवंत गांव कार्यक्रम का केन्द्र सरकार ने पूरी तरह से वित्त पोषण किया है। ताकि हमारे सीमावर्ती क्षेत्र सुरक्षित और जीवंत रहें। इन गांवों पर कुल 6,839 करोड़ रुपये का खर्च करने की योजना बनाई गई है। यह धन अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के उन गांवों पर 2028-29 तक खर्च किया जायेगा, जिनकी रणनीतिक भूमिका है। केन्द्र सरकार सुधार, निष्पादन और परिवर्तन के मंत्र को लेकर चल रही है ताकि देश के सुरक्षातंत्र को मजबूत किया जा सके। सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सीमावर्ती क्षेत्रों को अतिक्रमण तथा अवैध निर्माण से बचाने का काम चलता रहेगा क्योंकि यह उसकी संपूर्ण सुरक्षा रणनीति का मुख्य तत्व है।

सरकार का मानना कि देश की बाह्य सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा दोनों पर एक साथ जोर दिये बगैर बात नहीं बनेगी। भारतीय सेना दुनिया की सबसे मजबूत सेनाओं में से है और उसे आमने-सामने की लड़ाई में हराना नामुमकिन है। इसलिए दुश्मन नये-नये तरीके अपनाता है और आंतरिक सुरक्षा पर चोट पहुंचाना उसका पुराना शस्त्र है। यह धीमे-धीमे व स्थानीय लोगों की अनुपस्थिति में किया जा सकता है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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