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बाजार मुस्कुराया पर महंगाई की फिक्र

जयंतीलाल भंडारी दीपावली त्योहार के इन दिनों में शहरी और ग्रामीण बाजारों में बढ़ती मांग और उत्साह का सुकून दिखाई दे रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईआई) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि महंगाई में आई कमी से...

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जयंतीलाल भंडारी

दीपावली त्योहार के इन दिनों में शहरी और ग्रामीण बाजारों में बढ़ती मांग और उत्साह का सुकून दिखाई दे रहा है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईआई) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि महंगाई में आई कमी से कच्चे माल की लागत एक-तिहाई घट गई है। पिछले माह अक्तूबर, 2023 में ई-वे बिल या इलेक्ट्रॉनिक परमिट जनरेशन का आंकड़ा 10.3 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। किसी माल को राज्य के भीतर और बाहर भेजने के लिए कारोबारी ऑनलाइन ई-वे बिल निकालते हैं। करीब 50 हजार रुपये से ज्यादा का माल दूसरी जगह भेजने के लिए ई-वे बिल निकालना जरूरी है। ई-वे बिल की संख्या में वृद्धि अर्थव्यवस्था में मांग और आपूर्ति बढ़ने के रुझान का प्रारंभिक संकेत मानी जाती है। इस समय देश की कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ गया है। घरेलू निवेशकों के दम पर शेयर बाजार लगातार बढ़ रहा है।

यकीनन यह कोई छोटी बात नहीं है कि इन दिनों जहां कच्चे तेल की कीमतें ऊंचाई पर हैं तथा वैश्विक खाद्यान्न संकट से वैश्विक महंगाई बढ़ी हुई है और दुनिया के बाजार ढहते हुए दिखाई दे रहे हैं, वहीं ऐसी प्रतिकूलताओं के बीच भी भारत के बाजारों में रौनक दिखाई दे रही है। गौरतलब है कि अक्तूबर, 2023 में प्रकाशित केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक थोक एवं खुदरा महंगाई के सूचकांक महंगाई में कमी का संकेत दे रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में यह कमी इस बार सूचकांक से तय होने वाली इस दर में अनाज, सब्जी, परिधान, फुटवियर, आवास एवं सेवाओं की कीमतों में आई गिरावट की वजह से हुई है। साथ ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों की क्रयशक्ति बढ़ी है।

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लेकिन महंगाई की आशंका के मद्देनजर सरकार महंगाई नियंत्रण के लिए रणनीतिक कवायद करते हुए दिखाई दे रही है। 6 नवंबर को केंद्र सरकार ने भारत आटा नाम ब्रांड से देशभर में 27.50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर पर गेहूं के आटे की बिक्री शुरू कर दी है। 28 अक्तूबर को महंगाई रोकने के मद्देनजर केंद्र सरकार ने वादा कारोबार पर अंकुश के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है।

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इसके तहत सेबी ने सात तरह की एग्री कमोडिटी के वायदा कारोबार पर पाबंदी को एक साल के लिए बढ़ा दिया है। इनमें गेहूं, सरसों, चना और मूंग जैसे अनाजों के साथ ही तिलहन में सोयाबीन, क्रूड पाम (सीपीओ) के साथ गैर-बासमती ट्रेडिंग शामिल है। इन सभी एग्री कमोडिटी के वायदा कारोबार पर दिसंबर, 2024 तक पाबंदी जारी रहेगी। अभी दिसंबर, 2023 में पिछले आदेश के अनुसार प्रतिबंध खत्म हो रहा था। उल्लेखनीय है कि खाद्य वस्तुओं की महंगाई कोविड के दौर में तेजी से बढ़ी थी। इसके बाद सरकार ने सोयाबीन के बाद गेहूं, चना और अन्य तेल के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया था। सरकार का उद्देश्य वायदा कारोबार में मनमानी तेजी-मंदी को रोककर हाजिर बाजार में स्थिरता लाना है।

इसी तरह देशभर में प्याज की आपूर्ति में कमी के कारण प्याज के खुदरा मूल्य के ऊंचाई पर पहुंचने के मद्देनजर 28 अक्तूबर को केंद्र सरकार ने प्याज के बढ़ते मूल्य पर अंकुश लगाने और घरेलू बाजार में पर्याप्त उपलब्धता बनाए रखने के लिए प्याज पर न्यूनतम निर्यात मूल्य तय कर दिया है। अब 800 डालर प्रति टन से कम मूल्य पर प्याज का निर्यात नहीं किया जा सकेगा। यह न्यूनतम निर्यात मूल्य 31 दिसंबर, 2023 तक के लिए तय किया गया है। सरकार ने कीमतों पर अंकुश के लिए बफर स्टाक से कम मूल्यों पर प्याज की खुदरा बिक्री भी बढ़ा दी है। केंद्र सरकार ने बफर के लिए अतिरिक्त 2 लाख टन प्याज की खरीद की भी घोषणा की है।

गौरतलब है कि सरकार महंगाई नियंत्रण के लिए मौद्रिक आयात नियंत्रण और स्टॉक सीमा निर्धारण के उपायों को भी अपना रही है। 6 अक्तूबर को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने लगातार चौथी बार नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया है। खुदरा महंगाई के तय दायरे से अधिक होने के कारण रिजर्व बैंक ने यह फैसला लिया है। जब महंगाई ज्यादा होती है तो आरबीआई रेपो रेट बढ़ाकर अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह को कम करने की रणनीति अपनाता है। आरबीआई के रेपो रेट स्थिर रखने के फैसले से फिलहाल मकान, वाहन समेत विभिन्न कर्जों पर मासिक किस्त (ईएमआई) में कोई बदलाव नहीं होगा और महंगाई में नरमी आएगी। केंद्र सरकार ने विगत 29 अगस्त को घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम 200 रुपये घटाकर भी बड़ी राहत दी है।

केंद्र सरकार द्वारा खाद्य पदार्थों के निर्यात पर लगातार सख्ती बरती जा रही है। पिछले साल 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद कम उत्पादन के कारण गेहूं के निर्यात पर जो पाबंदी लगाई थी, वह अब तक जारी है। सरकार ने बासमती चावल के निर्यात के लिए 1200 डॉलर प्रति टन को न्यूनतम मूल्य तय किया है। प्याज पर 40 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया है। सरकार ने उबले चावल के निर्यात पर भी 20 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है। गेहूं और चावल की बढ़ती कीमतों को काबू करने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है। इसलिए सरकार ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के जरिए रियायती दर पर गेहूं और चावल दोनों बेच रही है। इसी तरह सब्जियों, दालों और तिलहन के दाम काबू में रखने के लिए भी उपाय किए गए हैं। यह निर्धारित हुआ है कि दाल के थोक व्यापारी या बड़ी रिटेल चेन अधिकतम 50 टन तुअर और 50 टन उड़द स्टॉक में रख सकेंगे। वहीं सभी खुदरा व्यापारियों के लिए यह सीमा पांच-पांच टन की होगी। दाल आयातक पोर्ट से दाल मिलने के बाद अधिकतम 30 दिनों तक ही दाल को अपने पास रख सकेंगे। आगामी 31 दिसंबर तक दाल की स्टॉक नियम का पालन करना होगा।

इस समय खासतौर से गेहूं के दाम नियंत्रण के लिए खुले बाजार में मांग की पूर्ति के अनुरूप इसकी अधिक बिक्री जरूरी है। आटा मिलों को अधिक मात्रा में गेहूं देना होगा। साथ ही गेहूं के शुल्क मुक्त आयात की अनुमति दिए जाने की जरूरत है। यह भी ध्यान में रखा जाना होगा कि इस वर्ष सरकार 341 लाख टन के मुकाबले किसानों से 262 लाख टन गेहूं ही खरीद पाई है। यह भी ध्यान रखा जाना होगा कि एक अक्तूबर तक सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक करीब 240 लाख टन था जो पिछले 5 साल के औसत करीब 376 लाख टन से की कम है।

निश्चित रूप से दीपावली त्योहार से जो बाजार मांग वृद्धि शुरू हुई है, वह आगे भी बनी रहने की अनुकूलताएं उभरकर दिखाई दे रही हैं। पर यह जरूरी होगा देश में जमाखोरी करने वालों के खिलाफ तेज कार्रवाई जारी रहे। अतिरिक्त नकदी की निकासी पर रिजर्व बैंक को ध्यान देना होगा। आवश्यक खाद्य पदार्थों के उपयुक्त रूप से आयात की रणनीति से मजबूत आपूर्ति से खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी को नियंत्रित किया जाना होगा। खासतौर से खाद्य सामग्रियों की महंगाई नियंत्रण के लिए नई कारगर रणनीति के तहत सरकार और रिजर्व बैंक को कीमत निर्धारण से जुड़ी विभिन्न एजेंसियों के साथ सामंजस्य से आगे बढ़ना होगा।

लेखक अर्थशास्त्री हैं।

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