सहीराम
गणतंत्र दिवस पर एक नया इतिहास ही नहीं बना, एक नयी कहावत भी बन गयी। नया इतिहास यह बना कि गणतंत्र दिवस पर इस बार दो परेड हुईं। एक जवानों की, एक किसानों की। कुछ लोगों ने कहा कि एक गण की थी, एक तंत्र की। अब तक जवानों की परेड होती आयी थी, इस बार किसानों की भी हुई। इसे लोगों ने कुछ यूं व्याख्यायित किया कि पहले सिर्फ तंत्र की ही परेड होती थी, इस बार गण की भी हुई। इससे जय जवान, जय किसान का नारा साकार हुआ।
यह तो था नया इतिहास। अब नयी कहावत सुनिए। पहले कहा जाता था कि एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है। अब नयी कहावत यूं हो सकती है कि एक व्यक्ति पूरे किसान आंदोलन को बदनाम कर सकता है। हालांकि उसके साथ कुछ औरों का भी नाम आ रहा है, एक के बारे में बताया जाता है कि वह एक घोषित गैंगस्टर है और अब राजनीति में आ गया है। लेकिन इसमें कोई नयी बात नहीं है। गैंगस्टरों के राजनीति में आने में बताइए क्या नया है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि गैंगस्टर राजनीति में आ रहे हैं तो पहले से उनको बढ़ावा देने वाले नहीं थे।
पर दोष तो फिल्म वालों पर भी नहीं डाला जा सकता। सनी द्योल ने कह दिया है कि आरोपित से उनका कोई लेना-देना नहीं है। पता नहीं क्यों? लोग पापा धर्मजी से जिस तरह की शिकायतें कर रहे थे, उससे इसका जवाब तो दिया ही जा सकता था कि हम किसान आंदोलन से दूर नहीं हैं। वैसे फिल्म वाले जिस तरह सरकार के पक्ष-विपक्ष में बंटे हुए हैं, इस मामले में कौन किसके साथ होगा, पता नहीं। खैर, बहुत दिन से किसान आंदोलन लोगों का बेहद लाड़ला बना हुआ था कि देखो दो महीने से किसान कितने अनुशासित हैं। किसी के लिए कोई परेशानी नहीं खड़े कर रहे। आंदोलन करना सीखना हो तो इनसे सीखो। बड़ी सहानुभूतियां मिल रही हैं, बड़ी हमदर्दियां उमड़ रही थीं।
सरकार को तो खैर, पहले भी नहीं रास आ रहा होगा, पर खलल डालने वाले जैसों को सचमुच ही नहीं रास आया होगा। जब तक हंगामा न हो तो मजा कैसे आएगा। किसान कह रहे थे कि हंगामा खड़ा करना हमारा मकसद नहीं है, हुड़दंगियों ने कहा कि हंगामा खड़ा करना ही हमारा मकसद है। इस हंगामे से देश शर्मसार हुआ तो किसान नेता भी शर्मसार हुए। लेकिन किसानों के आंदोलन को किसानों का आंदोलन न मानने वाले तो सचमुच ही खुश हो गए। वे ऐसे खुश हुए जैसे कह रहे हों कि देखो हम सच साबित हुए। लेकिन कौन सच साबित हुआ, यह तो इतिहास तय करता है न!