गंभीर पहल से ही सुलझेगा मणिपुर संकट
मणिपुर में कानून व्यवस्था पटरी पर लाने को केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन जैसे कदम उठाए जिनसे शांति की उम्मीद जगी है। हालांकि वहां समस्याएं राजनीतिक समाधानों से अधिक गहरी हैं। निस्संदेह, मई 2023 में जातीय हिंसा की वजह हाईकोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या से उपजी गलतफहमी थी लेकिन कई अन्य कारण भी हैं।
आखिरकार, भाजपा और उसके ज़रिए, भारत सरकार ने पिछले कुछ समय से मणिपुर में फैली अव्यवस्था को सुलझाने की दिशा में कुछ निर्णायक कदम उठाए हैं। सरकार ने पहले एक अनुभवी नौकरशाह को राज्य का राज्यपाल नियुक्त किया, फिर भाजपा शासित मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को पद छोड़ने को कहा और चार दिन बाद 13 फ़रवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
ये सभी कदम एक साथ और जल्दी-जल्दी उठाए गए। लेकिन काफी वक्त से यह लंबित था। स्वयं भाजपा और राज्य में भाजपा सरकार उम्मीद के विपरीत आस लगाए हुए थी कि 3 मई, 2023 को राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद से सरकार ने जो कमज़ोर कदम उठाए हैं, उनसे मामले सुलझ जाएंगे। बीच-बीच में कुछ समय के लिए शांति काल के अलावा लंबे समय तक टकराव अनवरत जारी रहा। इसके चलते मैतेई और कुकी जातियों के बीच संबंध बहुत तनावपूर्ण हो गए।
समस्या कई अन्य कारणों से भी बढ़ गई, जिसके विभिन्न पहलुओं पर गंभीर प्रभाव पड़े। दो कारण भाजपा को ठोस कदम उठाने से रोक रहे थे : एक तो यह कि हम एक लोकतंत्र हैं, दूसरा यह कि राज्य में भी सत्ता उसी दल के पास थी, जिसकी केंद्र में सरकार है। ऐसे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पार्टी के लिए शर्मिंदगी की वजह बनता क्योंकि इसका मतलब होगा कि खुद अपनी ही पार्टी की सरकार के कामकाज पर सवाल उठना। इसके अलावा, पार्टी को ऐसा उत्तराधिकारी मुख्यमंत्री नहीं मिल पाया जो सभी को स्वीकार्य हो। हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी ने अब कड़ुवा घूंट पीना तय कर लिया है। देर आयद... दुरुस्त आयद! भविष्य की ओर देखते हुए, बहुत काम किए जाने की जरूरत है। सबसे पहले, समस्या की उत्पत्ति को देखें ताकि इससे निपटने में मदद मिल सके। म्यांमार में सैन्य शासन यानी जुंटा का अपने देश के संपूर्ण भूभाग पर, खासकर मणिपुर सीमा से लगते इलाके पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं है। इन क्षेत्रों में कई समूह अपनी सरकार से युद्धरत हैं और यहां तक कि कुछ इलाका उनके अधीन भी है। इसके अलावा, हिंसा के कारण, गोल्डन ट्राइंगल नाम से कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय ड्रग व्यापार रूट पर, मुख्य रूप से मोरेह शहर और मणिपुर के क्षेत्र से होकर गुजरने वाला, असर हो रहा था क्योंकि म्यांमार में अफीम की खेती के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में कमी आई थी या विस्तार नहीं हो पाया था। कई कुकी और संबंधित जनजातियां अपने स्थानीय रिश्तेदारों की मदद से मणिपुर में, मुख्य रूप से कुकी बहुल चूड़ाचांदपुर क्षेत्र में आन बसे और उन्होंने मणिपुर में भी अफीम उगाना शुरू कर दिया। स्थानीय लोग भी इस मुनाफेदार खेती में उनके साथ लग गए।
जब यह बात राज्य सरकार के संज्ञान में आई, तो अवैध अप्रवासियों की पहचान करने के लिए कार्रवाई की गई। स्थानीय लोग,जिसकी पीठ पर बहुत अमीर एवं ताकतवर अंतर्राष्ट्रीय ड्रग माफिया का हाथ था,इस कार्रवाई का विरोध करने लगे। वे सरकार को पीछे हटने को मजबूर करना चाहते थे। उनके सौभाग्य से -और राज्य के दुर्भाग्य से- मैतेइयों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने वाली याचिका पर, मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा आए आदेश की गलत व्याख्या ने परेशानी पैदा करने का एक कारण प्रदान किया।
27 मार्च, 2023 को जारी इस आदेश में कहा गया था :‘राज्य में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर शीघ्रता से विचार किया जाना चाहिए...’। इसमें केवल याचिका पर विचार करने के लिए आदेश था, न कि मैतेइयों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए। लेकिन कुकियों ने जानबूझकर इसे गलत ढंग से प्रस्तुत किया, यह कहते हुए कि मैतेइयों को एसटी का दर्जा दे दिया गया है। हालांकि बाद में उच्च न्यायालय ने इस पैराग्राफ को हटा दिया, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।
दोनों पक्षों ने रैलियां निकालनी शुरू कर दीं, कुछ हिंसा भी भड़की और दोनों समुदायों द्वारा नाकेबंदी और जवाबी नाकेबंदी होने लगी। मैतेई बहुल घाटी में और कुकी एवं अन्य संबंधित जनजाति बहुल पहाड़ी इलाके में। स्थिति बदतर होती चली गई। हालात इतने खराब हो गए कि घाटी के लोग चुड़ाचांदपुर नहीं जा सकते थे और इसके विपरीत चूड़ाचांदपुर वाले घाटी में नहीं आ सकते। कुकियों ने एक अलग प्रशासन की मांग की। वे नहीं चाहते थे कि मैतेई लोगों को एसटी का दर्जा मिले क्योंकि उन्हें लगा कि इससे न केवल उनकी नौकरी का कोटा प्रभावित होगा बल्कि मैतेई लोग वैध तरीके से पहाड़ियों में जमीन भी खरीद सकेंगे। इसलिए, दोनों समुदायों के बीच एक तरह से पूर्ण पैमाने पर जातीय संघर्ष छिड़ गया, जिसमें हिंसा के कारण जान-माल का नुकसान हुआ और दोनों पक्षों के लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
आरोप है कि ड्रग माफिया ने अपनी मोटी जेबों के दम पर इस स्थिति को और बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाई है। जल्द ही, सरकार और उसकी मशीनरी तक भी हिंसा का असर हो गया। दुर्भाग्यवश, दोनों समुदायों के बीच इस तरह का दोफाड़ कुछ हद तक पुलिस सहित सरकारी अमले में भी फैल गया। इसने स्थिति को और खराब कर दिया। अपराधी और निष्क्रिय पड़े विद्रोही समूह भी इस लड़ाई में कूद पड़े और इसका नतीजा यह हुआ कि सरकारी मशीनरी पूरी तरह चरमरा गई। पुलिस स्टेशनों और शस्त्रागारों पर भी हमला किया गया और 5,000 से अधिक हथियार लूट लिए गए। यह भी आरोप है कि पुलिस ने डरकर या मिलीभगत के कारण कई हथियार सौंपे। अवांछनीय तत्वों और हिंसक समूहों के हाथों में इतनी बड़ी संख्या में हथियार राज्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं। इनमें से बमुश्किल एक-चौथाई हथियार ही बरामद हो पाए हैं। हालात और बदतर बने जब कुकी समूह हिंसा फैलाने के लिए ड्रोन तक का इस्तेमाल करने लगे।
जाहिर है, उन्हें बहुत मदद हासिल है। चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों के इस क्षेत्र में अपने निहित स्वार्थ हैं और उन्होंने दूसरों की लड़ाई में अपने लिए मौका पाया है। म्यांमार की स्थिति भी एक बड़ा कारक है। सरकार ने प्रतिक्रिया में और अधिक सैन्य बल भेजे हैं, लेकिन स्थिति पूरी तरह से उसके नियंत्रण में नहीं है। इसलिए, अब राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद संबंधित अधिकारियों के लिए काम करना आसान हो जाएगा। उनकी प्राथमिकता हिंसा को रोकना और लुटे हथियारों को वापस लेना होना चाहिए। एक साथ बहुत सारे काम करने की जरूरत है। मुख्य कार्यों में मामलों की जांच करना, राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना, समुदायों के बीच सद्भाव और शांति बहाली, विस्थापितों का पुनर्वास, अवैध अप्रवासियों से निबटना, निष्पक्ष पुलिस और नौकरशाही बनाना, अवैध प्रवास और ड्रग्स और हथियारों की तस्करी रोकने के लिए म्यांमार के साथ लगती सीमा सील करना, दूसरे देशों के मंसूबों को विफल करना और राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करना शामिल है।
आइए उम्मीद करें कि जल्द ही शांति स्थापित हो जाएगी। पूर्वोत्तर का यह खूबसूरत राज्य न केवल अपने लिए बल्कि पूरे भारत के लिए शांति और खुशहाली का हकदार है।
लेखक मणिपुर के गृह सचिव रहे हैं।