Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

विश्वसनीय बनाएं सामुदायिक सेवा की सज़ा को

सज़ा के तौर पर सामुदायिक-सेवा को श्ाामिल करना भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में ‘पुनःस्थापनात्मक न्याय’ की अवधारणा के दर्शन कराता है। जिसमें अपराधियों को बिना हिरासत में लिए सुधारात्मक उपायों का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। के.पी. सिंह माह जनवरी...

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

सज़ा के तौर पर सामुदायिक-सेवा को श्ाामिल करना भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में ‘पुनःस्थापनात्मक न्याय’ की अवधारणा के दर्शन कराता है। जिसमें अपराधियों को बिना हिरासत में लिए सुधारात्मक उपायों का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है।

के.पी. सिंह

Advertisement

माह जनवरी 2025 में, जम्मू में तीसरे अतिरिक्त दण्डाधीश के न्यायालय ने एक व्यक्ति को यातायात में बाधा डालने और सार्वजनिक स्थल पर हल्ला-गुल्ला करने का दोषी पाते हुए एक सप्ताह की सामुदायिक-सेवा करने की सज़ा सुनाई। उसे डैन्सल में एक स्वास्थ्य केन्द्र में सफाई करने के आदेश दिए। एक अन्य मामले में, इसी अदालत ने एक अन्य दोषी को एक सप्ताह तक प्रतिदिन तीन घंटे के लिए झंज्जर कोटली में एक सार्वजनिक पार्क को साफ करने का आदेश दिया। दोनों मामलों में पुलिस थाना प्रभारी को अनुपालना सुनिश्चित करवाने और फोटोग्राफिक साक्ष्य के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करने के आदेश दिये।

Advertisement

इसी माह, ऐसे ही तीसरे मामले में कटरा की एक उप-न्यायाधीश अदालत ने अपराधी को लगातार तीन दिनों तक एक पार्क की सफाई और रख-रखाव करके सामुदायिक-सेवा का प्रदर्शन करने का निर्देश दिया। कटरा विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को सजा के आदेश की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया गया। 6 मार्च 2025 को मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट चण्डीगढ ने एक यातायात उल्लंघनकर्ता को प्रवर पुलिस अधीक्षक (यातायात) के रीडर की देखरेख में पांच दिनों तक सामुदायिक-सेवा करने के आदेश दिए हैं।

‘सामुदायिक-सेवा’ को भारतीय न्याय संहिता (बी.एन.एस.) की धारा 4 के अन्तर्गत सज़ा की सूची में पहली बार जोड़ा गया है। छह प्रकार के अपराधों में लोक सेवकों के द्वारा व्यापार (धारा 202), सार्वजनिक-सेवा करने की सज़ा प्रस्तावित है। कदाचार (303(2), नशे में गाड़ी चलाना (धारा 355) और मानहानि (धारा 356 (2), जैसे जुर्म शामिल हैं। सज़ा के तौर पर सामुदायिक-सेवा को शामिल करना भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में ‘पुनःस्थापनात्मक न्याय’ की अवधारणा के दर्शन होते हैं, जिसमें अपराधियों को बिना हिरासत में लिए सुधारात्मक उपायों का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है।

‘सामुदायिक-सेवा’ शब्द को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (बीएनएसएस) की धारा 23 में एक स्पष्टीकरण के रूप में जोड़कर परिभाषित किया गया है, जिसमें कहा गया है ‘सामुदायिक सेवा’ का अर्थ उस काम से होगा जो अदालत एक सजा के रूप में निर्धारित कर सकती है। जिसके लिए दोषी को कोई पगार नहीं दी जाएगी। बिना पगार के काम करवाना संविधान के अनुच्छेद 23 द्वारा प्रतिबन्धित है। यह देखना रोचक होगा कि फिर किस प्रकार बिना वेतन के सामुदायिक सेवा करने के आदेश को उचित ठहराया जा सकता है।

सामुदायिक-सेवा की परिभाषा में शब्द ‘काम जो अदालत आदेश दे सकती है’ और ‘जो समाज को लाभान्वित करता हो’ अस्पष्ट है और अनिश्चितताओं से भरे हैं, क्योंकि सुनवाई करने वाली अदालत की कल्पना के लिए बहुत कुछ छोड़ दिया गया है। जीवन की घटनाओं के बारे में प्रत्येक इंसान की व्यक्तिगत धारणाएं होती हैं, अतः सामुदायिक-सेवा के लिए उपयुक्त कार्य देने हेतु पीठासीन अधिकारी के लिए उचित कार्य न ढ़ूंढ़ पाने की गुंजाइश हमेशा बनी रहेगी। उच्च न्यायालय के ‘नियमों और आदेशों’ में इस प्रकार के कार्यों की एक विचारोत्तेजक सूची के रूप में शामिल करके इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।

सामुदायिक-सेवा की सज़ा की निगरानी, पर्यवेक्षण और रिपोर्टिंग के लिए निष्पादन एजेंसी को नामित करने के बारे में भ्रम प्रचलित है, क्योंकि विभिन्न प्रकार के सरकारी और निजी क्षेत्र के पदाधिकारियों को अदालतों द्वारा यह कार्य दिया जा रहा है, बिना इस बात को महसूस किए कि ऐसे व्यक्तियों को इस तरह के कार्य करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, और न ही वे ऐसे दोषियों को सम्भालने के लिए पर्याप्त कौशल रखते हैं। इसके अतिरिक्त, नियमों/दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति में, वे इस तरह के महत्वपूर्ण कर्तव्य को करने के लिए आवश्यक दस्तावेजीकरण के बारे में भी पूरी तरह से अनभिज्ञ होते हैं। यह याद रखना चाहिए कि सामुदायिक-सेवा बीएनएस के अन्तर्गत एक सम्पूर्ण सज़ा है जिसके निष्पादन के लिए पूर्णरूप से आपराधिक न्याय प्रणाली की एजेंसियां ही जिम्मेदार हैं। सरकार के ‘व्यवसाय के नियमों’ में ‘कानून और न्याय’ गृह मंत्रालय के विषय के रूप में सूचीबद्ध किए गए है। गृह विभाग के अधिकार क्षेत्र के बाहर किसी एजेंसी को सामुदायिक-सेवा की सज़ा को निष्पादित करने के लिए कर्तव्य सौंपना एक बड़ी प्रशासनिक भूल होगी। यह वांछनीय है कि सामुदायिक-सेवा को गृह विभाग के कर्तव्यों की सूची में शामिल किया जाए और इसके निष्पादन के लिए आवश्यक तौर-तरीके निर्धारित किए जाए।

आपराधिक मामलों में सज़ा का निष्पादन करना जेल विभाग की प्राथमिक जिम्मेदारी है, उसके लिए नियम और प्रक्रियाएं राज्यों के ‘जेल मैनुअल’ में निर्धारित हैं। चूंकि, सामुदायिक-सेवा की सज़ा वर्तमान में ही बीएनएस में श्ाामिल की गई है, अतः जेल के नियमों और विनियमों में इसका उल्लेख नहीं है। इसलिए, कुछ जेल प्रशासक और मैजिस्ट्रेट अक्सर सामुदायिक-सेवा की सज़ा पाए दोषियों और परिवीक्षा पर छोड़े गए अपराधियों में अन्तर करने में चूक जाते हैं। परिवीक्षा पर अपराधी को छोड़ना एक सज़ा नहीं है। यह सजा-पूर्व का सुधारात्मक आदेश है जिसमें पहली बार अपराध करने वाले अपराधी को पर्यवेक्षण में छोड़कर सुधरने का एक मौका दिया जाता है। इसे ‘रुका हुआ फैसला’ कह देना ज्यादा उचित होगा।

यह भी नहीं भूलना चाहिए कि पुलिस और जेल विभाग अपराध और आपराधिक सज़ा के सभी रिकार्ड का भण्डार है। यदि किसी दोषी को सामुदायिक-सेवा करने की सज़ा दी जाती है और सज़ा के निष्पादन के लिए एक ऐसे प्राधिकरण को रिपोर्ट करने के लिए निर्देशित किया जाता है तो जेल अधिकारी न हो तो जेल प्रशासन के लिए इस तरह की सज़ा का उचित रिकार्ड रख पाना लगभग असम्भव हो जाएगा। अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर छोड़े जाने वाले व्यक्तियों के रिकार्ड रखने के अनुभव से यह बहुत अच्छी तरह से स्पष्ट हो जाता है, कि परिवीक्षाधीनों आंकड़े उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है।

सामुदायिक-सेवा की सज़ा को निष्पादित करने के लिए प्रक्रियाओं और तौर-तरीकों के अभाव में सजा के बारे में पर्याप्त रिकार्ड रख पाना भी असम्भव हो जाएगा। सज़ा देना कानूनी अदालतों के अधिकारक्षेत्र में है, परन्तु सज़ा कैसे दी जाएगी यह राज्यों का अनन्य क्षेत्राधिकार है। आदर्श रूप से, राज्यों को आपराधिक न्याय व्यवस्था के अन्तर्गत ही एक उचित तंत्र बनाना चाहिए और आपराधिक मामलों में सभी प्रकार की सज़ाओं के निष्पादन के लिए प्रक्रियाएं निर्धारित करनी चाहिए।

लेखक हरियाणा के पुलिस महानिदेशक रहे हैं।

Advertisement
×