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जेब ढीली कर सुनहरे सपनों का चांस

व्यंग्य/तिरछी नज़र
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सहीराम

जो लोग ट्रंप साहब से परेशान थे कि वे तो विदेशियों को अमेरिका से निकाल बाहर कर रहे हैं, हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़कर वापस उनके मुल्क भिजवा रहे हैं- उनके लिए यह खुशखबरी है। जो लोग यह सोच कर माथा पकड़े बैठे थे कि लो पच्चीस फरवरी तो निकल गयी और बच्चा पैदा हुआ नहीं, अब हमारे बच्चे की अमेरिकी नागरिकता का क्या होगा, पता नहीं। तो यह खुशखबरी उनके लिए भी है। दुनियावाले बेवजह ही ट्रंप साहब को कोसते रहते हैं कि विदेशी विरोधी हैं। लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। उनका कहना है कि भैया मुफ्तिए नहीं चाहिए, गरीब गुरबा नहीं चाहिए। जेब में माल है तो आओ- खुशामदीद। पांच मिलियन डॉलर दो और अमेरिकी गोल्ड कार्ड ले लो। गोल्ड हो तो सारे काम सधते चले जाते हैं। गोल्ड कार्ड होगा तो आपकी अमेरिकी नागरिकता भी हो जाएगी।

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पहले ग्रीन कार्ड होता था तो नागरिकता पक्की मान ली जाती थी। पर ट्रंप साहब तो ठहरे वैसे ही ग्रीन विरोधी। नहीं यार बात सिर्फ मुसलमानों की नहीं है। ग्रीन मतलब पर्यावरण भी तो होता है न। ट्रंप साहब तो पेरिस संधि से ही हट गए। वे मानते हैं कि पर्यावरण वगैरह सब ढोंग हैं, चोंचले हैं। वैसे भी अब ग्रीन का जमाना नहीं है। पश्चिम में तो ग्रीन पार्टियां चुनाव ही हार रही हैं। इसीलिए ट्रंप ने कहा छोड़ो ग्रीन-व्रीन। आप तो गोल्ड कार्ड लो। कीमत मात्र पांच मिलियन डॉलर।

ट्रंप साहब के इस ऑफर को गोल्डन अवसर की तरह लेना चाहिए। अपने यहां गोल्ड लोन टाइप की तरह-तरह की स्कीमें होती हैं। लेकिन ट्रंप साहब गोल्ड कार्ड लेकर आए हैं। ले लो जी, ले लो गोल्ड कार्ड ले लो-सिर्फ पांच मिलियन डॉलर का ही तो है। जी, यह पांच मिलियन डॉलर कितने होते हैं। यही कोई पैंतासील करोड़ रुपये। रुपये की जो हालत है उसे देखते हुए हो सकता है जब तक आप पैंतालीस करोड़ रुपये जमा करें तब तक यह रकम बढ़कर पचास करोड़ रुपये हो जाए।

खैर, यह सुना था कि लातिनी अमेरिका वगैरह में कुछ देश हैं ऐसे जहां पैसा देकर नागरिकता ली जा सकती है। जैसे अपने मेहुल भाई ने ली कहीं की। जी वही मेहुल भाई, जो नीरव मोदी के साथ बैंकों का हजारों करोड़ रुपया मार कर भागे थे। अब जो बैंकों का हजारों करोड़ मार कर भागते हैं वे तो पैंतालीस पचास करोड़ दे ही सकते हैं अमेरिकी गोल्ड कार्ड के लिए। ऐसे में जमीन-जायदाद बेचकर सत्तर-अस्सी लाख या एक करोड़ खर्च करके डंकी रूट से अमेरिका जाने वालों की क्या बिसात कि वे अमेरिका में घुस सकें। लेकिन जी, अगर यह लोग नहीं गए तो अमेरिका के छोटे मोटे काम कौन करेगा। क्योंकि पैंतालीस-पचास करोड़ खर्च कर गोल्ड कार्ड लेने वाला तो करेगा नहीं। नहीं क्या?

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