‘होली रंगों का त्योहार है— लाल, पीले, नीले, हरे..कैसे दिल भरेगा रंगों से। ज़रा सोचिए, अगर ये रंग न हों तो कैसी बेरंग लगेगी दुनिया..।’-जीवन में रंग दे और रंग ले का संदेश फैलाती होली पर ‘शोले’ फिल्म का यह संवाद याद है न? गौर कीजिए कि संवाद में बोले लाल, पीला, नीला और हरा चारों रंग जिंदगी में उमंग भरने में बेहद अहम हैं। लाल रंग लगाने का उद्देश्य है कि हम अभय का दान देते हैं। यानी लगवाने वाले शख्स को भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। पीला रंग सबके साथ स्नेहपूर्वक वचन व्यवहार करने का प्रतीक है। जब वाणी में मधुरता, मृदुता और मैत्री होगी तो सम्बन्धों में आत्मिक घनिष्ठता बढ़ना तय समझिए।
प्रकृति की तरह हरा रंग सबके प्रति निष्काम भाव भरता है। हरा रंग मलना प्रतीक है कि निस्वार्थ भाव से जीएं और सभी के लिए उपयोगी बने रहें। और नीला रंग अनंत का सूचक है ही। इससे सृष्टि की अनंतता के दर्शन होते हैं। होली में भी नीला रंग अनंत ईश्वर की शक्ति की ओर दृष्टि कराता है।
हवा, पानी और भोजन की तरह रंग भी लाज़मी हैं। रंगों का अस्तित्व रोशनी पर टिका है। सूर्य का प्रकाश रंगीन रोशनी का सबसे शुद्ध और बड़ा स्रोत है। इसमें सात विविध रंग समाए हैं – बैंगनी, नीला, सफेद, हरा, पीला, संतरी और लाल। जब सूर्य का प्रकाश इनसान के शरीर में प्रवेश करता है तो रंग अपने-अपने कोनों में समा जाते हैं। दिमाग, दिल, गुर्दा, फेफड़े, आंत, जिगर आदि हर अंग के अलग-अलग रंग हैं। अगर शरीर बीमार होगा तो रासायनिक तालमेल के अतिरिक्त रंग का तालमेल भी बिगड़ना तय है। शरीर तमाम रंग उचित अनुपात से सोखे तो ही शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है।
अंग्रेजी किताब ‘हीलिंग विद कलर एंड लाइट’ में बताया गया है कि रंग इनसान के आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर बखूबी रंग जमाते हैं। शारीरिक स्तर पर, लाल रंग इनसान की टेंशन को बढ़ाने की भूमिका निभाता है। जबकि नीला रंग सुकून और आराम पहुंचाता है। इसी प्रकार, मानसिक स्तर पर रंग हमारी सोच को बनाते या बिगाड़ते हैं। मिसाल के तौर पर, लाल पेंट किया कमरा नीले के मुक़ाबले खासा छोटा लगता है। भावनात्मक तौर पर, लाल रंग उत्तेजना पैदा करता है और नीला रंग शांति देता है। माना जाता है कि लाल रंग को देखने भर से ग़ुस्से में आगबबूले इनसान का पारा चढ़ जाता है।
इसके विपरीत, नीला रंग गुस्से पर पानी डालने का काम करता है। रंग चिकित्सकों का मानना है कि कई रोग अंगों के रंगों की कमी की वजह से होते हैं। ऐसे रोगों को दूर भगाने का रामबाण तरीका है – अंगों को उनके खासमखास रंग पहुंचाना। इस विधि से कुदरती रंग शरीर में प्रवेश करते हैं। मोती स्लेटी रंग, माणिक लाल रंग, पन्ना हरे रंग, मून स्टेन या टोपाज नीले रंग, हीरा नीले रंग और नीलम बैंगनी रंग का बड़ा स्रोत माना जाता है। इन्हें धारण करने से शरीर में रंगों के अभाव की पूर्ति होती है।
वास्तुशास्त्र तो घर के रंग-रोगन की भी सलाहें देता है। वास्तु के अनुसार घर के मुखिया के शयनकक्ष की दीवारें आसमानी नीली होनी चाहिए। बच्चों के कमरे को सफेद, संतरी और पीले रंग से रंगने की सलाह दी जाती है। गुसलखाने की भीतरी दीवारें भी सफेद ही होनी चाहिए। शयनकक्ष और गुसलखाने में गुलाबी रंग भी किया जा सकता है। पूजा का कमरा पीला या नारंगी करवाना उचित है। रसोईघर में लाल, संतरी या हरा रंग करना चाहिए। घर की बाहरी दीवारों पर हल्का पीला, सफेद, गुलाबी या संतरी बराबर उपयोगी रहते हैं। लोकप्रियता के लिहाज़ से, दीवारों को रंगने में नीला, हरा और भूरा रंग भी ऊपर है। वैज्ञानिक तथ्य है कि जिनकी छत सफेद है, उन्हें गर्मी में बड़ा आराम मिलता है। माना जाता है कि सफेद रंगी छतों को छू कर सूरज की किरणें और तपती गर्मी लौट जाती है।
जीवन में सदा आगे बढ़ने के लिए और सामाजिक व्यक्तियों के कमरे का रंग गहरा और तेज होता है। ऐसी शख्सियतों के कपड़े भी चटकीले होते हैं। दूसरी ओर, अपने में रहने वालों के कमरों की दीवारें भूरी, सफेद या नीले रंग से मिलती-जुलती होनी चाहिए। अमूमन स्वभाव से उलट रंग के कपड़े पहना व्यक्ति विशेष को अखरता है।
एक रंग दूसरे रंग के पेंट के साथ कम या ज़्यादा शोभा देता है। कैसे? पीला रंग भूरा रंग के पेंट के सामने ठंडक प्रदान करता है। और यही पीला रंग हरे के सामने गर्म महसूस करवाता है। नीला रंग सबसे शीतल है। लेकिन सुनहरे या गुलाबी के साथ मिलाजुला कर नीला रंग करने से इसकी शीतलता घट जाती है। हरा रंग आरामदायक है क्योंकि कुदरत के करीब है। और तो और, तड़क-भड़क वाले रंग रोशनी सोखते हैं। अत: ऐसे रंगों का इस्तेमाल स्कूलों, कॉलेजों और दफ़्तरों में नहीं करना चाहिए। जगजाहिर है कि जीवन में चाहते हैं उमंग तो रहिए रंगों के अंग-संग।