झूठ से लगे पाप और सच से आग
समाज ने एक अनकहा समझौता कर लिया है कि झूठ को हंसकर बर्दाश्त कर लो लेकिन सच को सुनकर बर्दाश्त नहीं, बस उसे जलाकर राख कर दो। या बोलने वाले की बोलती बंद कर दो।
अगर झूठ बोलने पर चेहरे पर मुहांसा निकल आता तो अधिकतर लोगों की शक्ल कटहल जैसी होती। झूठ बोलना बच्चों के लिये पाप है, कुंवारों के लिये अनिवार्य, प्रेमियों के लिये कला और विवाहितों के लिये श्ाान्ति का मार्ग। बचपन से पढ़ते-रटते आ रहे हैं कि झूठ बोलना पाप है। हमने मान भी लिया। लेकिन जिंदगी के कॉलेज में दाखिला लेते ही पता चला कि यहां का पाठ्यक्रम कुछ और ही है।
आज की दुनिया में सच बोलना सबसे खतरनाक एडवेंचर है। पैराशूट से कूदने, शेर के मुंह में हाथ डालने और बर्फीले पहाड़ पर नंगे पांव चढ़ने से भी ज्यादा रिस्की। कारण साफ है- झूठ सुनने में मीठा लगता है और सच सुनने में मिर्ची। सच बोलना आग है और इस आग में जलने का कोई कंपनी बीमा भी कवर नहीं करती।
नेताओं की दुनिया में झूठ बोलना एक कला है। अब अगर कोई मंच पर चढ़कर सच बोल दे कि भाइयो-बहनो! पानी, बिजली, सड़क का हमसे कुछ नहीं होगा, अपने जुगाड़ कर लो तो नेताजी को सभा से सीधा एंबुलेंस में अस्पताल पहुंचा दिया जाएगा।
जब कोई महिला यह पूछे कि कैसी लग रही हूं तो सोचो पति बेचारा झूठ बोले या सच? असल दिक्कत यह है कि हमारे समाज में झूठ बोलने वाले को चालाक, सयाना और समझदार कहा जाता है और सच बोलने वाले को मूर्ख और असामाजिक।
झूठ बोलने वालों के पास बहाने हैं, कहानियां हैं और सबसे बड़ी बात कि समर्थक हैं। सच बोलने वाले के पास सिर्फ एक चीज होती है- सच। समाज ने एक अनकहा समझौता कर लिया है कि झूठ को हंसकर बर्दाश्त कर लो लेकिन सच को सुनकर बर्दाश्त नहीं, बस उसे जलाकर राख कर दो। या बोलने वाले की बोलती बंद कर दो।
हमारा समाज अब दो किस्म के लोगों में बंट गया है- एक वो जो सच जानते हैं लेकिन चुप रहते हैं और दूसरे वो जो झूठ जानते हैं और दिन-रात बोलते रहते हैं। मजे की बात ये कि दोनों ही अपने-अपने सुरक्षित क्षेत्र में रहते हैं। सच बोलने वालों का तो बुरा हाल है। उन्हें देख कर लगता है जैसे वे बारूद-घर में मोमबत्ती लेकर घूम रहे हों। एक मनचले का कहना है कि सारे झूठ एक तरफ और बारात हमारे घर से सात बजे निकलेगी एक तरफ।
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एक बर की बात है अक नत्थू नैं लुकछिप कै एक आम तोड़ लिया। सुरजे माली कै भणक लगी तो भाज्या आया अर धमकाते होये बोल्या- यो तेरे हाथ म्हं आम कित तै आया? नत्थू बोल्या- मन्नैं तो जमीन पै पड्या देख्या है अर मैं इसतैं पेड़ पै टांगण की सोच रह्या था।