स्मृतियों का दामन थामे मन कभी-कभी अतीत के बियाबान में पहुंच जाता है और भटकने लगता है। उसी तकलीफ के साथ जिससे वर्षों पहले उबर भी लिए। असल में कुछ यादें, कुछ बातें अवचेतन मन में स्थिर-सी हो जाती हैं और गाहे-ब-गाहे मस्तिष्क पर आ टिकती हैं। ये दुख की यादें कितनी ही देर तक मन में, और ध्यान में उतर कर उन बीते दुखों के घावों की पपड़ियां खुरच-खुरच कर उस दर्द को पुनः ताजा करने लगती हैं। जब याद ताजा होने लगती हैं तो जाहिर है उनसे जुड़ी हर बात भी जुड़ती ही है। पता भी नहीं चलता कि यादों के झुरमुट में फंसे हम जाने-अनजाने ही उन दुखों का ध्यान कर रहे हैं जिनसे बड़ी बहादुरी से बहुत पहले निपट भी लिए।
कहते हैं जो भी हम ध्यान करते हैं वही हमारे जीवन में घटित होता है और इस तरह हमारी ही नकारात्मक सोच और बीते दुखों का ध्यान करने के कारण हमारे वर्तमान के अच्छे-खासे दिन भी फिरने लगते हैं। परंतु ये मन आज पर टिकता ही कहां है। यह भी तो उतना ही सत्य है कि आप कल को यानी बीते हुए कल को पूरी तरह कैसे बिसार सकते हैं। या यह भी कि बीते हुए कल से आप अच्छा-अच्छा याद करें और बुरा-बुरा भूल जाएं, कैसे हो सकता है ऐसा?
ये ‘कल’ एक उम्र में आने वाले कल (भविष्य) के सुनहरे सपने लेकर जब युवाओं के ध्यान मे सजता है तो बहुत कुछ करवा जाता है परंतु ढलती उम्र के साथ यादों के बहाने बीते कल (अतीत) में जाकर बीते कष्टों और नकारात्मक अनुभवों का आंकलन करने में लग जाता है। फिर खुद ही कई समस्याओं को न्योता देने लगता है। उन यादों के झुरमुट से कुछ खुशियां, कुछ अच्छे अनुभव और ज्ञान लेकर झटपट वर्तमान की झोली में डाल नकारात्मक अनुभवों की यादों को लेट गो करके तटस्थ भाव से वर्तमान पर ध्यान केन्द्रित कर पाएं तो ठीक वरना ‘बीती ताहि बिसार दे’ की कहावत ही सही क्योंकि कहीं हमारे अतीत से जुड़ी ये कुछ नकारात्मक यादें हमारे अवेयरनेस को बोझिल कर हमारे आज की खुशियों को भी फीका ना कर दें। यानी यह बात सही है कि बीती हर बात को बिसार दीजिए।
कई लोग अतीत की अपनी बातों को बड़े जोर-शोर से सुनाते हैं। हमने ये किया, वो किया। असल में आप अभी क्या हैं और क्या कर रहे हैं, यह बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए वर्तमान स्थिति में अपनी भूमिका को समझिए और उसका निर्वहन बहुत अच्छे से कीजिए। यही सुख का आधार बनेगा। इस आधार से ही आपके अपनों को सीख मिलेगी।
साभार : सुधा देवरानी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम