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चिप इनोवेशन और मैन्युफैक्चरिंग में अग्रणी पहल

सेमीकंडक्टर नवाचार
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भारत, जो कभी सेमीकंडक्टर चिप्स के आयात पर निर्भर था, अब आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। हाल ही में आयोजित ‘सेमिकान इंडिया 2025’ सम्मेलन इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।

चिप्स—अर्थात‍् सेमीकंडक्टर—आज की तकनीकी दुनिया की रीढ़ हैं। मोबाइल फोन, ऑटोमोबाइल, 5जी नेटवर्क, स्वास्थ्य उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक सेना उपकरण—सभी में सेमीकंडक्टर हर जगह उपयोग हो रहे हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने ‘इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन’ की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य देश को चिप डिजाइन, निर्माण, पैकेजिंग और परीक्षण में आत्मनिर्भर बनाना है। इस लक्ष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता देने हेतु भारत ने कई बड़े कदम उठाए हैं और कई परियोजनाएं राष्ट्रहित में अग्रसर हैं।

भारत, जो कभी सेमीकंडक्टर चिप्स के आयात पर निर्भर था, अब आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। हाल ही में आयोजित ‘सेमिकान इंडिया 2025’ सम्मेलन इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है।

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सेमीकंडक्टर चिप्स आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स का मूलभूत हिस्सा हैं। ये स्मार्टफोन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल, चिकित्सा उपकरणों और रक्षा प्रणालियों में उपयोग होते हैं। इनकी मांग वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ रही है। सेमिकान इंडिया 2025 में 48 देशों के 2,500 से अधिक प्रतिनिधियों, 350 से अधिक प्रदर्शकों, 150 से अधिक वक्ताओं और 20,750 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, इनमें 50 वैश्विक नेताओं ने विचार साझा किए।

सम्मेलन में एक ऐतिहासिक क्षण तब आया जब प्रधानमंत्री मोदी ने भारत का प्रथम पूर्णतः स्वदेशी माइक्रोप्रोसेसर ‘विक्रम 3201’ का अनावरण किया। यह 32-बिट स्पेस-ग्रेड चिप इसरो द्वारा डिज़ाइन की गई तकनीक पर आधारित है, और एससीएल चंडीगढ़ में निर्मित है। इस चिप के माध्यम से भारत ने मिशन-क्रिटिकल इलेक्ट्रॉनिक्स में अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। उल्लेखनीय है कि सेमीकंडक्टर का वैश्विक बाजार कुछ वर्षों में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर जाएगा, और इसमें भारत की भूमिका अहम रहेगी।

उल्लेखनीय है कि इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन के तहत चिप निर्माण के लिए 76,000 करोड़ रुपये के प्रोत्साहन की घोषणा की गई है। इसमें से 65,000 करोड़ रुपये चिप निर्माण के लिए और 10,000 करोड़ रुपये मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला के आधुनिकीकरण के लिए आवंटित किए गए हैं।

वहीं डीप टेक भारत की पहल आईआईटी कानपुर में शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सेमीकंडक्टर, क्वांटम टेक्नोलॉजी और बायोसाइंसेज जैसे क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देना है। वहीं दूसरी ओर, राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली के माध्यम से निवेशकों को केंद्र और राज्य सरकारों से अनुमतियां एक ही प्लेटफ़ॉर्म पर मिलती हैं, जिससे प्रक्रिया सरल और तेज होती है।

भारत में सेमीकंडक्टर डिज़ाइनिंग और निर्माण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। नोएडा और बेंगलुरु में अत्याधुनिक डिज़ाइन केंद्र स्थापित किए गए हैं, जहां बिलियनों ट्रांज़िस्टर्स वाले चिप्स पर काम हो रहा है। 28 स्टार्टअप्स चिप डिज़ाइनिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं, जो नवाचार और विकास में योगदान दे रहे हैं। सरकार ने 10 लाख से अधिक लोगों को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में प्रशिक्षण प्रदान किया है, जिससे मानव संसाधन की क्षमता में वृद्धि हुई है।

12 अगस्त, 2025 को सरकार ने ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश में चार नए सेमीकंडक्टर निर्माण प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी—जिनका कुल निवेश रुपये 4,600 करोड़ है। इनमें सिलिकॉन कार्बाइड फैब ओडिशा में, सीडीआईएल विस्तारित निर्माण पंजाब में और असिप टेक्नोलॉजीज द्वारा पैकेजिंग परीक्षण केंद्र आंध्र प्रदेश में शामिल है। देश की प्रसिद्ध निर्माण कंपनी की सहायक कंपनी एलटीएससीटी ने 10 बिलियन डॉलर के फेब निर्माण का उद्देश्य रखा है, जो 2027 तक पूरा होना है। कंपनी मेम्स, आरएफ और स्मार्ट पावर चिप्स डिजाइन कर रही है, और शुरुआत 2025 में उत्पादन से होनी है।

हरियाणा ने गुड़गांव में स्टार्ट-अप्स हेतु विश्वस्तरीय इनक्यूबेटर की घोषणा की। इसमें इनोवेशन लैब, प्रोटो टाइपिंग सेंटर और प्लग प्ले कार्यक्षेत्र होंगे। वहीं, उत्तर प्रदेश ने ताइवान डेस्क की स्थापना की है, जिससे सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

पिछले दिनों भारत ने सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक बड़ी छलांग लगाते हुए नोएडा और बेंगलुरु में देश के पहले 3 नैनोमीटर चिप डिजाइन सेंटर का उद्घाटन किया। इन अत्याधुनिक सेंटरों की स्थापना रेनेसास इलेक्ट्रॉनिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा की गई है। यह भारत का पहला सेंटर है जो 3एएम जैसे अत्याधुनिक चिप डिजाइन पर काम करेगा, जो भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर नवाचार की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करता है।

भारत, ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ मिलकर वैश्विक सेमीकंडक्टर आपूर्ति शृंखला का हिस्सा बन सकता है। सेमीकंडक्टर क्षेत्र में निवेश से लाखों नई नौकरियां उत्पन्न हो सकती हैं, जो रोजगार के अवसर प्रदान करेंगी। स्थानीय उत्पादन से आयात पर निर्भरता कम होगी, जिससे विदेशी मुद्रा की बचत और आर्थिक स्थिरता में वृद्धि होगी। कुल मिलाकर देश न केवल सेमीकंडक्टर डिजाइन और पैकेजिंग में बल्कि फेब निर्माण एवं हाइ-एंड विकल विकास में वैश्विक मंच पर उभरने को तत्पर है।

लेखक विज्ञान विषयों के जानकार हैं।

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