बीस साल की छोटी उम्र में प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल तक पहुंचे लक्ष्य सेन की कामयाबी बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। उनसे पूर्व यहां तक कुछ भारतीय खिलाड़ी पहुंचे, लेकिन उनकी उम्र लक्ष्य के मुकाबले काफी अधिक थी और खेल का अनुभव भी ज्यादा था। वहीं लक्ष्य सेन का अभी काफी खेल बाकी है, जो उनकी भविष्य की कामयाबी की उम्मीदों को और बढ़ा देता है। लेकिन इससे पहले वे चैंपियनशिप के सेमीफाइनल में मौजूदा चैंपियन मलेशिया के ली जी जिया को हरा चुके थे। चैंपियनशिप में दोनों के बीच करीब एक घंटा सोलह मिनट चला मुकाबला बताता है कि सेमीफाइनल में लक्ष्य ने जिया को कड़ी चुनौती दी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि लक्ष्य ने जिस ली जी जिया को हराया, उनकी वैश्विक रैंकिंग सात नंबर की थी, जबकि लक्ष्य की तत्कालीन रैंकिंग सात थी। ऐसे में उनके खेल की मुक्तकंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने अपने से कहीं बड़ी वरीयता वाले खिलाड़ी को हराकर फाइनल में अपनी जगह बनायी। इसे उनकी बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जाना चाहिए।
सुखद यह है कि फाइनल मुकाबले से पहले भी लक्ष्य अपने खेल का दमखम दिखा चुके थे। इसी चैंपियनशिप में दुनिया में तीसरी वरीयता प्राप्त बैडमिंटन खिलाड़ी एंडर्स एंटोन और पांचवीं वरीयता प्राप्त एंथनी गिंटिंग को भी हरा चुके हैं। उल्लेखनीय है कि इस चैंपियनशिप में पहले भी प्रकाश नाथ, प्रकाश पादुकोण,पुलेला गोपीचंद जैसे दिग्गज अपना दमखम दिखा चुके हैं। महिलाओं में साइना नेहवाल ने यह उपलब्धि हासिल की। कालांतर गोपीचंद व पादुकोण ने स्वर्णिम सफलता हासिल की।
बहरहाल, लक्ष्य भले ही सफलता से एक कदम पहले चूके हों लेकिन अपने दमखम के खेल से उन्होंने देश-दुनिया में अपने प्रशंसकों की सूची बढ़ाई। उन्हें देश-दुनिया में बधाई देने वालों की होड़-सी लगी रही और सोशल मीडिया पर खूब सराहना मिली। इसकी एक वजह यह भी रही है कि इस मुकाम पर पहुंचने से पहले उन्होंने विश्व चैंपियन, ओलंपिक चैंपियन, ओलंपिक कांस्य पदक विजेता व ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियन सरीखे दिग्गजों को परास्त किया।
दरअसल, लक्ष्य सेन की यह खुशकिस्मती रही है कि बैडमिंटन का खेल उन्हें पिता से विरासत में मिला है। पिता डीके सेन बैडमिंटन के एक अच्छे खिलाड़ी रहे हैं। उन्हें खेल-जीवन में शिखर की सफलता तो नहीं मिल पायी, लेकिन कालांतर एक अच्छे प्रशिक्षक के रूप में उनकी गिनती होती है। लक्ष्य सेन के पहले गुरु पिता डीके सेन ही थे। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में 16 अगस्त 2001 में जन्मे लक्ष्य सेन प्रारंभ से ही खासे उत्साही और मेहनती रहे हैं। करीब छह फुट के लक्ष्य सेन की लंबाई उनके खेल का अतिरिक्त गुण रहा है। उनके भाई चिराग सेन भी बैडमिंटन में अच्छे खेल का प्रदर्शन कर चुके हैं। वे कई अंतर्राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धाओं में अपना दमखम दिखा चुके हैं। पिता के अलावा लक्ष्य सेन ने पुलेला गोपीचंद, विमल कुमार और योंग सू यू से प्रशिक्षण हासिल किया है। वे प्रकाश पादुकोण की बैडमिंटन अकादमी में भी प्रशिक्षण ले चुके हैं। इतना ही नहीं, जूनियर वर्ग में दुनिया के चोटी के खिलाड़ी रह चुके हैं। हाल के महीनों में उन्होंने अपने खेल को खूब तराशा है। उनकी फॉर्म अच्छी रही है। बीते वर्ष में लक्ष्य सेन विश्व चैंपियनशिप में ब्रांज मेडल जीत चुके हैं वहीं भारत में आयोजित की गई इंडिया ओपन में सुपर-500 का खिताब भी वे जीत चुके हैं। इसके अतिरिक्त लक्ष्य सेन वर्ष 2018 में युवा ओलंपिक खेलों में रजत पदक जीत चुके हैं। इतना ही नहीं, हाल ही में संपन्न जर्मन ओपन चैंपियनशिप में वे दूसरे नंबर पर रहे हैं।
जहां तक ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप में आखिरी मुकाम पर चूकने का सवाल है तो भले ही वे अनुभव के चलते डेनमार्क के खिलाड़ी विक्टर एक्सल्सन से हार गये हों, लेकिन उनकी जीत की भूख कायम है। कहीं न कहीं फाइनल का दिन विक्टर के लिये किस्मत का दिन रहा। वहीं उन्होंने अपने अनुभव से हवा के रुख को अपनी जीत में तब्दील कर दिया। ये अनुभव लक्ष्य के लिये आने वाली अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मददगार साबित होगा। निश्चित तौर पर, हासिल अनुभव में सुधार के साथ वे कामयाबी की नई इबारत लिखेंगे।
निस्संदेह, लक्ष्य ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने से चूक गये। हमें स्वीकार करना चाहिए कि विक्टर बेहतर खेले। वे पिछले ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता भी रहे हैं, लेकिन धैर्य लक्ष्य ने भी नहीं छोड़ा और जमकर मुकाबला भी किया। पक्की बात है कि विक्टर का दुनिया का नंबर एक खिलाड़ी होने का दबाव भी लक्ष्य पर रहा होगा। कह सकते हैं कि लक्ष्य का जज्बा विक्टर के अनुभव का विकल्प नहीं बन पाया। खेल का अनुभव जीत का निर्धारण करता है, जिसे हासिल करना लक्ष्य का लक्ष्य होना चाहिए। बहरहाल, लक्ष्य इससे पहले प्रकाश नाथ, प्रकाश पादुकोण व पुलेला गोपीचंद की विरासत को और समृद्ध करने में कामयाब रहे। इसी कड़ी में साइना नेहवाल का उल्लेख भी समीचीन होगा, जिन्होंने वर्ष 2015 में इस चैंपियनशिप के फाइनल तक अपनी जगह बनायी थी।