ध्यान से ही ज्ञान
ध्यान का फल ज्ञान है, कोई जगत में लगाए या परमात्मा में। संसार में जिसका ज्ञान मिल जाता है, वहां से ध्यान हट जाता है, क्योंकि ध्यान ज्ञान बन गया है। यह ज्ञान बनना ही शायद ध्यान का फल है। पदार्थ में जोड़ा ध्यान व्याकुलता को जन्म देता है, क्योंकि जब एक पदार्थ का ज्ञान मिल जाता है, दूसरे को जानने की चाह जग जाती है। पर इतने बड़े जगत में कितना कुछ अनजाना है! कितना कुछ है जिसे हमने अभी पाना है, और कितना अथाह है जिसे हमने समझना है।
अपनी इस व्याकुलता को भूलने के लिए मानव क्या-क्या नहीं करता? वह अपने आप को इतर कामों में लगाकर उस प्रश्न से बचना चाहता है, जो उसे व्याकुल कर रहा है। वह जगत को दोनों हाथों से बटोरकर अपनी मुट्ठी में कैद करना चाहता है, समेटना चाहता है, पर वह भी नहीं कर पाता; क्योंकि जगत में सभी कुछ नश्वर है। वह तब भी जगता नहीं, बल्कि नींद के उपाय किए जाता है। सोता रहता है। जब तक कोई मांग है, तब तक भीतर की स्थिरता को अनुभव नहीं किया जा सकता। मांग हटेगी तो ज्ञान जगेगा। संसार भीतर का प्रतिबिंब है। परमात्मा सदा रहस्य बना रहता है, वह हर कदम पर आश्चर्य उत्पन्न होने की स्थिति पैदा कर देता है। यदि कोई परमात्मा में ध्यान लगाए, तो वह ज्ञान होने के बाद भी नहीं हटता, क्योंकि परमात्मा का ज्ञान कभी पूरा नहीं होता।
संत व शास्त्र कहते हैं, आत्मा जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति—इन तीन अवस्थाओं में रहती हुई इस जगत के सुख-दुख का अनुभव करती है। ध्यान में उसे तुरीय या चौथी अवस्था का बोध होता है, जिसमें रहकर वह अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव करती है, जो सत्य है। सत्य शाश्वत है और सदा एक-सा है। सत्य तो हमेशा सत्य ही रहेगा, सत्य को समझना जरूरी है। जाग्रत अवस्था में मन, बुद्धि, अहंकार और दसों इंद्रियां सभी अपने-अपने कार्य में संलग्न होते हैं। स्वप्नावस्था में कर्मेंद्रियां सक्रिय नहीं रहतीं, पर ज्ञानेंद्रियां, मन व अहंकार सजग होते हैं। सुषुप्ति अवस्था में मात्र अहंकार बचता है।
स्वप्न में देखे विषय मन की ही रचना होते हैं, वे उतने ही असत्य हैं जितना यह जगत—जो दिखता तो है, पर वास्तव में वैसा है नहीं। जगत के असत्य होने का प्रमाण अनित्यत्व के सिद्धांत से मिलता है। वास्तविक सत्य का बोध क्योंकि अभी तक हुआ नहीं, यह सब सत्य प्रतीत होता है। वास्तविक सत्य वही परमब्रह्म है, जिस तक जाना ही मानव का ध्येय है। इसी ध्येय के साथ आगे बढ़ना ही जीवन का असल मकसद है।
साभार : अमृता-अनीता डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम