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सेल्फी लेते रहे और खुशियां निकल गईं

तिरछी नज़र
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रिश्ते अब कैमरे के फ्रेम में तो हैं पर दिल के फ्रेम से गायब हैं। ये डिजिटल दुनिया हमें कनेक्ट कम और डिसकनेक्ट ज्यादा कर रही है- अपनों से, खुद से और असल खुशी से।

‘सेल्फी लेते रह गए और जिंदगी निकल गई’ ये कोई शायरी नहीं, यह हमारी पीढ़ी की त्रासदी है। मां की आंखें बूढ़ी हो गईं, पर हमने एक बार भी बिना कैमरे के उन्हें गौर से नहीं देखा। पापा की हथेलियां दरक गईं पर उनके संघर्ष का क्लोज़अप नहीं लिया। आज हर हाथ में मोबाइल है, हर चेहरे पर कैमरा है और हर दिल में खालीपन है! तस्वीरों में मुस्कुराहट है पर हकीकत में थकावट है। रील्स में खुशियां हैं पर घर में तन्हाइयां हैं।

आज के दिन हर मोड़, हर रेस्टोरेंट, स्कूल-कॉलेज कैंपस, मंदिर, पार्क, पुल, पहाड़, झरना-नहर, खेत और श्मशान घाट तक में अब एक हाथ में मोबाइल और दूसरे में ‘पोज’ होता है। हमारा खाना ठंडा हो सकता है, पर उसका फोटो गर्म होना चाहिए। अब जिंदगी में रिश्ते नहीं, सिर्फ क्लिक है, क्लाउड है और लाइक्स हैं!

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मोबाइल की स्क्रीन पर उंगलियां चलती रहीं... और उधर जिंदगी सरकती रही। रिश्ते अब कैमरे के फ्रेम में तो हैं पर दिल के फ्रेम से गायब हैं। ये डिजिटल दुनिया हमें कनेक्ट कम और डिसकनेक्ट ज्यादा कर रही है- अपनों से, खुद से और असल खुशी से। जीते जी जो बेटे पापा को देखकर मुस्कुराते तक नहीं थे, अब उन्हीं की तस्वीर पर कैप्शन लिखते हैं- मिस यू पापा। और नीचे 373 लाइक्स। अरे पगले! जब वो जिंदा थे, तब लाइक नहीं चाहिए था, तब थोड़ी सी तवज्जो चाहिए थी।

और फिर एक दिन फोन में 50,000 फोटोज होते हैं, पर देखने वाला कोई नहीं होता। यह कोई आम चलन नहीं, यह एक धीमी मौत है, मुस्कुराते हुए आत्महत्या। मोबाइल कंपनियां हमारा दिमाग खा रही हैं... और हम खुश हैं! हर महीने नया कैमरा, हर साल नया मॉडल। लेकिन कभी हमारे भीतर के इंसान को अपडेट करने की बात नहीं होती।

हमने वो समय देखा है जब आशीर्वाद स्पर्श से मिलता था, अब फोटो में हाथ जोड़े इमोजी भेजी जाती है। पहले जब कोई दूर होता था, चिट्ठियां आती थीं अब पास रहते हुए भी ‘सीन’ लिखा हुआ रह जाता है। अब स्टोरी नहीं, संवेदनाओं की जरूरत है। स्क्रीन नहीं, संवाद की जरूरत है। क्या हमारी पहचान 30 सेकंड के रील में सिमट कर रह गई है? सत्य यह है कि दुनिया अदाओं की बजाय अद्भुत कामों को पसंद करती है। जीवन सिर्फ मेकअप, मिरर और म्यूजिक के लिए नहीं बना। इसलिये अब रील्स नहीं, असली जिन्दगी की रिकॉर्डिंग चालू करो! रील नहीं रोल मॉडल बनो।

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एक बर की बात है अक नत्थू दीवार पै लिखी लाइन पढकै बोल्या- या ए कसर रहैगी थी। उड़ै लिख राख्या था- रील बनाने की आदत छुड़वाओ। मिलें हर सोमवार पुराने बस स्टैंड के पीछे।

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