कृष्ण प्रताप सिंह
अभी कुछ साल पहले तक शहीद-ए-आजम भगत सिंह के शहादत दिवसों व जयंतियों पर चर्चा का सबसे मौजूं विषय यह होता था कि इंकलाब के उनके अधूरे अरमान को मंजिल कब व कैसे हासिल होगी, वह अभी भी देश पर उधार क्यों है और उसका जिम्मा लेने या सूद चुकाने को कोई तैयार क्यों नहीं दिखायी देता? साथ ही यह भी पूछा जाता था कि उनको अभीष्ट इंकलाब का रास्ता हमवार किये बिना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि कैसे दी जा सकती है?
लेकिन आज, राजनीतिक उपभोक्तावाद की राह पर तेजी से बढ़े जा रहे देश, दिल्ली व पंजाब के सत्ताधीशों, उनकी पार्टियाें व ‘परिवारों’ ने जिस तरह इस शहादत दिवस से ऐन पहले भगत सिंह को मनपसंद राजनीतिक उत्पाद में बदलने, साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की छीना-झपटी की खुद अपने ही द्वारा प्रवर्तित स्वार्थी परम्परा का नया शिकार बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। उस पर बात करना कहीं ज्यादा जरूरी हो गया है।
लेकिन यहां एक और तथ्य गौरतलब है। यह कि भगत सिंह के अनुकूलन की कोशिशें अब संघ परिवारियों व उनकी सरकारों तक ही सीमित नहीं रह गई हैं। आम आदमी पार्टी की पंजाब की नवनिर्वाचित भगवंत मान सरकार अपने शपथग्रहण के दिन से ही भगत सिंह के बलिदान को अपनी राजनीतिक हित पूर्ति का उपकरण बनाने के सिलसिले में उनको मात देती लगती है।
गौर कीजिए, पहले तो उसने भगत सिंह के नाम की प्रतीकवादी राजनीति करते हुए उनके गांव में आयोजित अपने शपथ ग्रहण समारोह को इस तरह प्रचारित किया, जैसे वह वाकई कोई ऐतिहासिक पहल हो। यह तब था, जब वह समूचे शपथ ग्रहण समारोह में भगत सिंह को खास रंग की पगड़ियों और वेश-विन्यास तक ही सीमित व संकुचित करती दिखी। फिर उसने मुख्यमंत्री भगवंत मान के कार्यालय में केवल भगत सिंह व बाबा साहब की तस्वीरें लगाने के अपने निश्चय के नाम पर महात्मा गांधी की तस्वीर को वहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
फिर जैसे इतना ही काफी न हो, उसने मुख्यमंत्री कार्यालय में भगत सिंह की ऐसी तस्वीर लगवा दी, जिसका ऐतिहासिक वास्तविकता पर विमर्श जारी है। मुख्यमंत्री, उनकी सरकार और पार्टी ही उनके रास्ते पर चलने का दावा कर रहे हों।
सवाल है कि क्या आप सरकार और पार्टी अपने लिए नया भगत सिंह गढ़ रहे हैं? यह उनका भगत सिंह के सपने पूरे करने की दिशा में बढ़ना है या अपने राजनीतिक सपनों को उनके नाम पर पूरा करना है। आम आदमी पार्टी को दिल्ली में भगत सिंह की वैसी याद नहीं आती, जैसी पंजाब में, तो यह उनकी शहादत का सम्मान है? सच पूछिये तो ये सारे के सारे ‘अनुकूलन’ भगत सिंह के संघर्षों और शहादत से न्याय नहीं करते। लेकिन क्या वे कभी इस बात को समझेंगे?